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आध्यात्मिक यात्रा (spiritual journey)
आध्यात्मिक यात्रा (spiritual journey) सीमा मंजरी जी द्वारा लिखित एक आलेख है… सीमा मंजरी जी उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं… सीमा जी एक बेहतरीन लेखिका हैं… समय-समय पर उनकी रचनाएँ बिभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं… तो आइये पढ़ते हैं सीमा मंजरी जी द्वारा लिखे कुछ आलेख…
जब भी हम एकान्त में होते हैं तो अक्सर मीठी यादें स्मृति पटल पर अंकित हो जाती हैं। जिन्हें याद करने से ह्रदय का उल्लास, लगाव हो जाने के कारण हमारे नयन सजल हो उठते हैं, और मन फिर से एक बार पंछी बनकर उन्हीं स्थानों में डूब, उतरकर चक्कर लगाने लगता है। जब मधुर स्मृति भरे झरोखे के पट खुलते हैं तो कुछ अप्रतिम यादें हमारे मानस पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं। उन्हीं अमिट यादों में अपनी सोमनाथ यात्रा का एक प्रसंग मुझे बेहद याद आता है। आज जिसे मैं आप सबके साथ सांझा कर रही हूँ ~
मुझे अपने परिजनों के साथ सौराष्ट्र गुजरात के सोमनाथ मंदिर से बाबा सोमनाथ का बुलावा आया और यह सब इतनी जल्दी सब हुआ कि मैं महाशक्ति वान बाबा की दयालुता पर आश्चर्य चकित रह गयी।
बीते दिसम्बर २०१८ में मेरे भैया, भाभी एवं कुछ अन्य परिजन सौराष्ट्र गुजरात के सोमनाथ मंदिर जाकर बाबा सोमनाथ के दिव्य दर्शन लाभ प्राप्त करने का कार्यक्रम बना रहे थे। जैसे ही उनका यह कार्यक्रम मुझे पता चला तो मेरे मन में भी एक हिलोर-सी उठी कि मैं भी उन सबके साथ बाबा के दरबार जाकर दर्शन करूँ। अब तो यह सब जा रहे हैं। क्या पता फिर वहाँ पर दोबारा हम सबका जाना सम्भव हो या न हो। ऐसा सोचकर मैने अपने पति और भाई से मन की बात स्पष्ट कह दी। जिसे सुनकर मेरे भैया भाभी के साथ ही मेरे पतिदेव ने ना नुकर किये बिना ही सोमनाथ मंदिर जाने के लिये हामी भर दी और मुझे बाबा के दरबार में जाने के लिए इजाज़त के साथ ही हरी झंडी मिल गयी।
अब मैंने हँसी ख़ुशी एक सप्ताह के कार्यक्रम के हिसाब से समस्त आवश्यक वस्तुओं के साथ अपना बैग तैयार कर लिया। चूँकि गुजरात में गर्मी रहती है। और हम लोग दिसम्बर में जा रहे थे। तो वहाँ के हिसाब से हमें अधिक गर्म कपडों की आवश्यकता नहीं पडनी थी। यहाँ हमारे उत्तर प्रदेश में तो दिसम्बर की रात में ठंडी शीत लहर वाली तेज ठंड पडती है। यहाँ से दिल्ली एअरपोर्ट तक तो हमने गर्म कपडों के साथ गर्म जैकेट भी पहन रखी थी। किंतु गुजरात के होटल में पहुँचने के बाद हमें वह गर्म जैकेट उतारनी पडी। वहाँ का तापमान सामान्य था। क्योंकि वहाँ पर न तो अधिक गर्मी थी और न ही अधिक सर्दी लग रही थी। तापमान बीस, पच्चीस डिग्री के लगभग था।
हवाई जहाज़ के द्वारा हमें अहमदाबाद तक जाना था। एअरपोर्ट से बाहर निकलने पर पहले से ही बुक किया गया ट्रैवलर वहाँ पर खडा था। अब उससे आगे का रास्ता सोमनाथ तक हमें ट्रैवलर से पहुँचना था। इस आध्यात्मिक यात्रा में मेरे भैया भाभी, उनके बच्चें एवं हमारे अन्य कुछ रिश्तेदार भी हमारे साथ थे। हम सभी मिलकर लगभग बीस बाइस सदस्य थे। हम सब हँसते, गाते, मस्ती में झूमते, अन्त्याक्षरी बोलते, कार्ड खेलते बीच में किसी रेस्टोरेंट में रूककर भोजन करते अपने गंतव्य तक पहुँच गये।
मेरे तो मन में बाबा सोमनाथ के दर्शन करने की उत्कंठा लगी थी। मन बार ~बार बाबा के दर्शन करने के लिए भाव विभोर हो जाता। और मैं उनके दर्शन करने के लिए लालायित हो जाती थी।
प्रातः चार बजे हम सब उठे। नहा धोकर जब होटल के कमरे से बाहर निकले तो सुहानी भोर में शीतलहरों से कँपकँपी-सी आने लगी। तब कमरे में आकर हमने गर्म स्वेटर पहने। और मन्दिर प्रागंण के लिए निकल पड़े। होटल से मन्दिर पाँच सात मिनट की पैदल दूरी पर था। दूर सडक से ही मन्दिर की चोटी के दिव्य दर्शन हो रहे थे। भक्तों को पंक्तिबद्ध होकर दर्शन लाभ प्राप्त हो रहा था। वहाँ मन्दिर प्रांगण में पहुँचकर मन्दिर की अनुपम शोभा को देखकर ह्रदय ख़ुशी से झूम उठा। बाबा सोमनाथ का मन्दिर बहुत विशाल मन्दिर था।
भीतरी भाग में खम्बों और परकोटे पर बेहद खूबसूरत चित्रकारी से सजावट की गई थी। अन्दर बाबा के दर्शन करने के लिए मन्दिर प्रांगण में ही प्रसाद के साथ गंगाजल की सुविधा भक्तों के लिए दुकान लगी थी। जहाँ से हमने प्रसाद के साथ गंगाजल भी लिया। मन्दिर प्रांगण बाबा के जयकारों से गूँज रहा था। सभी भक्तों के ह्रदय में हर्ष, उल्लास और भक्ति, प्रेम की लहरें दौड रहीं थीं। भक्तवृन्द लाइन में लगकर धीरे, धीरे बाबा के समीप पहुँचने के लिए आगे बढ़ते जा रहे थे।
मन्दिर प्रांगण में चहुँओर साइड में स्थान बना था। जहाँ पर साफ, स्वच्छ दरी बिछी हुई थी। वहाँ पर बहुत से पण्डित जी माथे पर चंदन लगाये हुये थे एवं अनेक भक्तजन भी वहीं बैठकर मन्त्रजाप, माला जाप, साधना, पूजा, अर्चना आदि कर रहे थे। जब हम बाबा सोमनाथ की पिण्डी के सामने पहुँचे तो वहाँ विशाल पिण्डी के रूप में बाबा के दर्शन किये। वहाँ बाबा की पिण्डी पर चलायमान यन्त्र के द्वारा, जो जल हमने सामने भरे कलश में डाला, वही गंगाजल हमें लोटे से चढता हुआ सामने पिण्डी पर दिख रहा था। बाबा पर गंगाजल चढाने का समय निश्चित होता है। वहाँ संध्या समय पिण्डी के खूबसूरत श्रंगार भरे दर्शन भक्तों को होते हैं। उस समय बाबा की असीम शक्ति और कृपा से अभिभूत होकर मैं उनके चरणों में नतमस्तक हो गयी। ह्रदय में प्रेम, अनुराग, श्रद्धा भाव से पूरित होने के कारण नयनों में प्रेमाश्रु छलक आये। तत्पश्चात परिक्रमा करके बाबा की जलहरी से जल अपने ऊपर छिडककर स्वयं को समर्पित करते हुये मैने अपने शीश को बाबा के चरणों में रख दिया।
सोमनाथ मन्दिर प्रांगण के चहुँओर में बहुत विशाल एवं मनोरम स्थल से युक्त बहुत सुन्दर वाटिका बनी है।
यहाँ पर यात्रियों के बैठने के लिए बैंच लगी हुई हैं। मनोरम फूलों और हरियाली से हरा भरा मन्दिर प्रांगण ह्रदय को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। मन बहुत ही अभिभूत हो रहा था। वह स्थान चारों तरफ़ समुद्र स्थल से घिरा हुआ था। जहाँ ठांठें मारकर समुद्र की अनंत लहरें अद्भुत गर्जन कर रहीं थीं। मानो प्रातः भोर की नवल उमंग लिये दिनकर की रूपहली रश्मियाँ सागर की लहरों से अठखेलियाँ कर रही हों। यह सुहावना, मनमोहना दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था कि सागर भी लालिमा युक्त स्वर्णिम किरणों को बाँहों में भरकर क़ैद कर लेना चाहता है और सतरंगी किरणें लहरों के साथ खेलती हुई कभी पास तो कभी दूर आती, जाती आँखमिचौली खेल रही हो।
वहीं उस स्थान पर एक ओर खम्बस्थल पर दिशासूचक यन्त्र लगा था। हजारों बर्षों पहले ही जब तक विज्ञान ने उन्नति भी नहीं की थी। तबसे यह यन्त्र सटीक निर्णय दे रहा है। ज्योतिष गणना के द्वारा वह दिशा सूचक यन्त्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
रात्रि साढे आठ बजे से मन्दिर प्रांगण के एक ओर संगीत संध्या का मनोरम कार्यक्रम अमिताभ की आवाज़ में स्लाइड के द्वारा दिखाया जा रहा था। इस कार्यक्रम को देखने के लिए पैंतीस रूपये पर व्यक्ति के टिकट का मूल्य था। रात्रि आठ बजे जब हम वहाँ पर पहुँचे तो वह स्थान लोगों से खचाखच भरा हुआ था। सब लोगों के दिल में मन्दिर इतिहास को जानने समझने की उत्कंठा थी। जहाँ पर इस कार्यक्रम के द्वारा मन्दिर के संक्षिप्त इतिहास को दिखाया गया था। मन्दिर के गुम्बद पर रंगीन रोशनी में चित्रों के द्वारा रजतपट के प्रसिद्ध कलाकार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी की बुलंद और गम्भीर गूँजती आवाज़ संगीत संध्या में चार चाँद लगा रही थी।
इसमें बताया गया कि किस प्रकार से मौहम्मद गौरी ने बहुत बार मन्दिर की सम्पदा को लूटा और मन्दिर की सुन्दरता को नष्ट कर दिया था। किंतु राजा, महाराजाओं के द्वारा एवं एक शिवसाधिका नर्तकी के प्रयास आराधना से मन्दिर का पुनः, पुनः जीर्णोध्दार किया गया। तत्पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा, अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं अन्य अनेक लोगों के अथक प्रयासों से मन्दिर आज भी अपनी स्थापत्यकला और संस्कृति के भव्य रूप को समेटे हुये है।
इस कार्यक्रम को देखकर हम सब आनंद से अभिभूत हो गये थे। बच्चों को यह कार्यक्रम इतना पसन्द आया कि हम तीन दिन वहाँ पर रहे वह तीनों दिन वह हम सबको भी साथ लेकर संगीत का कार्यक्रम देखने के लिए गये।
वह मनोरम दृश्य और प्रभु प्रेम की भावभरी अनुभूति मुझे भीतर तक मेरे ह्रदय को गहन झंकृत कर गयी। वह सुन्दर छवि आँखों में समाकर रह गयी। मैं आज भी उन देवदुर्लभ पलों को याद करके रोमांचित हो जाती हूँ। बाबा से बार ~बार प्रार्थना करती हूँ कि बाबा मुझे अपने मनोरम स्थलों के दिव्य दर्शन कराते रहें और मुझे बार, बार बुलाकर कृतार्थ करते रहें।
मानव शरीर के लिए योगासन का महत्त्व
इस क्षणभंगुर नाशवान संसार में आकर जीव सुख की लालसा, कामना करता हुआ भौतिक सम्पति, पदार्थों के पीछे भागता रहता है। इन्हीं भौतिक सुख, ऐश्वर्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से जीव अपने तन, मन, शरीर, इन्द्रियों का ध्यान नहीं रख पाता। अपनी सम्पूर्ण आयु में दौड़ते, भागते जीवन में अनेक संघर्षरत प्रयत्न किया करता है। मानव जीवन में अधिकतर सभी प्राणी इस संसार में प्राप्त होने वाले दैहिक, वाचिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति की कामना किया करते हैं। एवं आत्मा से परमात्मा के मिलन की आस लगाये चिन्मय सच्चिदानन्द परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भी प्रयत्न किया करते हैं।
इस संसार में आने के बाद संसार के मोह माया विषय वासनाओं के जंजाल में घिरकर मनुष्य कलह, क्लेश, द्वेष, छल, छद्म आदि विकारों में लिप्त हो जाते हैं और अनेक कठिनाइयों का सामना करते हैं। जब हम अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं देते, तब शरीर विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है और हम बीमार हो जाते हैं। शरीर में विजातीय द्रव्यों की मात्रा बढने से शरीर में निर्जीवता एवं निर्बलता बढने लगती है।
मानव जीवन के लिए यह जीवन एक चुनौती है। इस चुनौती का सामना करना व्यक्ति का धर्म एवं कर्तव्य पथ है। जब हमारा शरीर स्वस्थ होगा तो मन भी शांत होगा। योगासन के अभ्यास द्वारा व्यक्ति के मन में उत्साह, बुद्धि में शक्ति एवं चेहरे पर कांति आती है। समस्याओं से घिरा मनुष्य योगासन के द्वारा सुख, शांति का अनुभव करता है। इन सबसे छुटकारा पाने के लिए बहुत बार व्यक्ति अनेक प्रकार के कथा, सत्संग, जप, तप, हवन, यज्ञ अनुष्ठान सेवा, पूजा आदि करके आनंद प्राप्ति एवं ईश्वर अनुग्रह की प्राप्ति करना चाहते हैं।
इन सभी साधनों में मनुष्य योग साधना द्वारा शारीरिक, मानसिक दुर्बलता को दूर कर सकते हैं। एवं अपने जीवन को सरल, सुगम एवं महत्त्वपूर्ण बना सकते हैं। योगासन के अभ्यास द्वारा व्यक्ति का शरीर लचीला बनता है। व्यक्ति के शरीर में रक्त संचरण में सुधार होता है। व्यक्ति की कार्य करने की शक्ति बढती है। व्यक्ति में आयु अधिक होने पर भी युवक के समान फुर्तीलापन बना रहता है।
योग शब्द युज धातु से बना है। इसका अर्थ है कि ~ मिलाप या जोड़ना। आत्मा और परमात्मा का मिलन होना, दो में एकता का भाव होना ही योग है।
श्रीमद्भागवतगीता के अनुसार ~
योग अनुष्ठान में चित्त जहाँ रम जाता है। वहाँ परमात्मा को देखकर आत्मा की संतुष्टि होती है।
योगश्चित्तवृत्ति निरोधः~
व्यक्ति के चित्त का संसार के बाहरी विषयों में न भटकना और शांत हो जाना ही निरोध कहलाता है।
योगासन का अभ्यास बच्चें, बूढे, जवान सभी प्रकार की आयुवर्ग के मनुष्यों के तन मन को स्वस्थचित्त रखने में अत्यन्त सहायक होता है। योगासन के अभ्यास द्वारा व्यक्ति जीवन में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, संवेदनात्मक जैसे जीवन में प्राप्त होने वाले अनेक प्रकार के संघर्षों में सामन्जस्य करना सीख जाते हैं। योगासन के अभ्यास द्वारा व्यक्ति के मानसिक मनोबल, संकल्पबल में दृढता आती है। योगासन का अभ्यास करने से शारीरिक रूप से भी व्यक्ति के अंग उपांग भीतरी यन्त्र जैसे यकृत, गुर्दे, आँत, पाचक रस, फेफड़े ह्रदय, माँसपेशियाँ आदि अंग बेहतर क्रियाशील बनते हैं।
योगासन के नियमित अभ्यास द्वारा व्यक्ति मधुमेह, रक्तचाप, श्वांस रोग, अस्थमा, दर्द, हड्डी के दर्द विकार, पेट के रोगों में बहुत लाभ पहुँचाता है। योगासन करने से व्यक्ति प्रतिदिन समस्त कार्यों को नवीन ऊर्जाशक्ति के द्वारा कर्तव्यनिष्ठा के साथ कार्यों का संपादन करने लगता है। योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि की साधना करने का अभ्यास करने वाले व्यक्ति का शरीर तन मन में आन्तरिक यन्त्रों के द्वारा होने वाली दूषित कार्य प्रणाली को ठीक करने लगता है। योगासन प्राणायाम ध्यान साधना आदि अभ्यास सभी अंग, उपांगो को क्रियाशील बनाकर चयापचय क्रिया में सुधार करते हैं।
प्राचीनकाल से ही हमारे संत महात्मागण, रिषि, मुनियों ने योगाभ्यास के द्वारा तन, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताये हैं। जिन्हें हम और आप अष्टांग योग भी कहते हैं। ये निम्न हैं~ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान, समाधि।
यम ~
मन को धर्म में स्थित रखने के ये पाँच साधन बताये हैं ~
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय,
- ब्रह्मचर्य,
- अपरिग्रह
नियम ~
नियम भी पाँच प्रकार के बताये जाते हैं ~
- शौच,
- संतोष,
- तप
- स्वाध्याय
- ईश्वर प्राणिधान
आसन ~
प्राणी का शरीर स्थिर रहे और उसे मानसिक सुख प्राप्त हो। यह स्थिति ही आसन कहलाती है। आसन सिद्ध हो जाने से नस, नाड़ियों की शुद्धि होती है। व्यक्ति को दीर्घायु एवं आरोग्यता प्राप्त होती है। हमारे योग शास्त्र में अनेकानेक आसनों का वर्णन मिलता है। इनमें पद्मासन, सर्वांगासन, भुजंगासन, हलासन, पवनमुक्तासन, सूर्यनमस्कार, नौकासन, मण्डूकासन, धनुरासन आदि अनेक प्रमुख आसन कहे जाते हैं।
प्राणायाम ~
प्राणों का विस्तार करना ही प्राणायाम साधना कहलाता है। अर्थात ~ श्वांसो को क्रमबद्ध समयान्तराल के साथ नियमपूर्वक ग्रहण करना और छोड़ना ही प्राणायाम कहलाता है। व्यक्ति को प्राणों पर विजय प्राप्त होती है।
प्राणायाम के अभ्यास से सुषुम्ना नाडी प्रभावित होती है और नाडी चक्रों में चेतना आती है। शुद्ध आत्मज्ञान प्राप्त होता है। अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। जिन्हें हम चमत्कार के नाम से भी जानते हैं।
प्रत्याहार ~
इन्द्रियाँ जब बाहरी विषयों को छोड़कर अन्तर्मुखी हो जाती है। तब योग में इस अवस्था को प्रत्याहार कहा जाता है।
धारणा ~
बाहरी जगत के कार्य से मन को हटाकर सूक्ष्म, स्थूल किसी भी विषय में ह्रदय, भृकुटि, जिह्वा, नासिका आदि में मन को लगा देने को ही धारणा कहा जाता है।
ध्यान ~
जिस विषय में धारणा से चित्त वृति लगाई हो उस विषय में धारावत अखंड वृत्ति को प्रवाहित कर देना ही ध्यान कहलाता है। पर्वत जैसे ऊँचे पाप का भी ध्यान द्वारा नाश किया जा सकता है। ध्यान का प्रतिदिन नियमित अभ्यास करने से व्यक्ति की तनाव, चिंता, परेशानी, संवेग, आवेग जैसी मानसिक परेशानियाँ समाप्त हो जाती हैं। व्यक्ति का मन मस्तिष्क दृढ संकल्पशक्ति को प्राप्त करता है। ध्यान से व्यक्ति को त्रिपुटी का ज्ञान प्राप्त होता है।
समाधि ~
ध्यान में जब चित्त ध्यानाकार को छोड़कर केवल ध्येय वस्तु के आकार को ही ग्रहण करता है, तब यह स्थिति समाधि कहलाती है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को ध्यान का अधिक अभ्यास करना चाहिए। संत, महर्षियों द्वारा ऐसा माना जाता है कि धारणा, ध्यान और समाघि की गहन ध्यान साधना में प्रज्ञालोक और ज्ञान ज्योति का उदय हो जाता है।
योगासन का अभ्यास कैसे करें ~
योगासन, प्राणायाम, ध्यान, साधना आदि का अभ्यास बच्चों से लेकर बडों तक ८०…८५ आयुवर्ग तक के सभी व्यक्तियों के लिए बेहद लाभदायक होता है। योगासन का अभ्यास प्रारम्भ करते समय सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। योगासन प्राणायाम ध्यान साधना आदि का अभ्यास सदैव किसी योग्य गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए। योगासन का अभ्यास आरामदायक सूती वस्त्रों को पहनकर करना चाहिए। योगासन का अभ्यास शांत, स्वच्छ, हवादार, कमरा अथवा किसी वाटिका, उद्यान, मैदान आदि स्थानों में एकान्त अथवा सामूहिक रूप से करना चाहिए. योगासन का अभ्यास बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। वरन् दृढ़ता, धैर्य और लगन के साथ करते रहना चाहिए।
योगासन का अभ्यास प्रातः सूर्योदय से पूर्व अथवा सांयकाल को भी किया जा सकता है। सायंकाल में योगासन करने वाले व्यक्तियों को भोजन करने के ढाई, तीन घंटे ही बाद योगासन का अभ्यास करना चाहिए। योगासन करने के बाद एक घंटे तक कुछ भी नहीं खाना पीना चाहिए। योगासन करते समय मन को एकाग्र करते हुये जिस अंग पर योगासन का दबाब पड रहा है वहीं अपने ध्यान को केन्द्रित करना चाहिए। योगासन करते समय व्यक्ति को आने, जाने वाली श्वांसों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
प्रत्येक ली जाने वाली श्वांस के साथ व्यक्ति को अपने शरीर में इस समय प्राप्त होने वाली सकारात्मक चेतनाशक्ति का, प्राणशक्ति को ग्रहण करने का स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। प्रत्येक छोडने वाली श्वांस पर मेरे शरीर की सभी रोग बीमारियाँ, कष्ट, संकट बाहर जा रहे हैं। ऐसा सोचकर मन को एकाग्र कर सजग रखते हुये अपने मानसिक मनोबल को बढ़ाते रहना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति के स्वयं अपनी अच्छी सोच, विचार के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट होने से उसके तन, मन में प्राणदायिनी शक्ति का स्वयमेव ही संचार होने लगता है। व्यक्ति का स्वयं अपना मन ही कर्माधीन बनकर सुख दुःख आदि भोगने का साधन बनता है। स्वस्थ तन, मन में ही स्वस्थ आत्मा का वास होता है। हमारे ग्रन्थ, शास्त्रादि में भी शारीरिक, मानसिक, भाविक, बौद्धिक, आत्मिक विकास के लिए योगासन अभ्यास को ही सर्वोत्तम कहा जाता है।
सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश
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