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स्वाभिमान (Self respect)
स्वाभिमान (Self respect) : लीला बहुत ही खुश मिजाज साँवली सुरत की सुंदर औरत थी जिसकी उम्र लगभग ४० की थी पिता की परिवार की आर्थिक हालात सामान्य से भी कमजोर था पिता बीमारी के कारण लीला का विवाह कम उम्र में एक किसान परिवार में कर दिया पति के घर की भी आर्थिक हालात कुछ ठीक नही थी, पति के घर में थोडे से जमीन में जो भी पैदावार होता था उसी से घर तंग हालात में चलता था पति का भी बाहरी कोई आमदानी नही था दो गाय थे उसी का दूध को बेचकर लीला कुछ घर खर्च चलाती थी, लीला संतोषी औरत थी वो अपने दो बच्चों के साथ खुश रहती थी, पति आलसी प्रवृति का था काम करने से जी चुराता था !
अक्सर अपने बच्चों को अपने बचपने की बात बताया करती, लीला अपने रिश्तेदार बुआ जो संपन्न परिवार की थी जो अक्सर लीला के घर बच्चों के साथ छुट्टी मनाने उसके पिता के घर आती थी बुआ के बच्चे भी लीला के उम्र के ही लगभग थे परंतु वे सभी शहर में रहते थे व संपन्न होने के कारण अच्छे पढाई करते , बुआ के बच्चों के साथ छुट्टी में जो मौज मस्ती किये बगीचे में फल, फूल तोड़ना पेड़ पर झूला झूलना नदी पर छलांग लगान ये सभी बात बताकर खुश हो जाया करती थी
लीला को उन पर बहुत ही गर्व था, उनकी पढ़ाई व पद से बहुत ही गर्व करती, अक्सर उनके घर में कोई त्यौहार या बड़ा कोई काम या फिर कोई बीमार पड़ने पर लीला को वो शहर बुलाते व उससे मदद लेते थे लीला खुश होकर उनके मदद के लिए सहर्ष जाती बदले में वे लीला के बच्चों के लिए पुराने कपड़े, जूता, खिलौना जो उनके बच्चे उपयोग नही करते उसे देते लीला को भी पुराने एक, दो साड़ी देकर खुश करते लीला ये सब लेकर गांव जब आती तो बच्चे भी ये सब सामान देखकर बहुत खुश होते, लीला को कितना भी कोई परेशानी हो परंतु वो कभी किसी से कोई मदद नही मांगती उसने अपने अंर्तमन में स्वाभिमान (Self respect) का दीप जलाये रखी थी.
यही शिक्षा अपने बच्चों को भी देती ,बहुत दिनों से लीला को बुखार आ रहा था गांव के वैद्य को दिखाकर दवा ल् रही थी ,परंतु बुखार ठीक ही नही हो रहा था दिनदिनें दिन शरीर बहुत ही कमजोर हो गया था लीला की ऐसी हालात को देखकर बच्चे बोले -अम्मां तुम शहर अपने बुआ के यहां जाकर कोई अच्छे डाँक्टर के दिखा कर इलाज करा वो न अम्मां वो सब जरूर तुम्हारी मदद करेगें , बच्चों की बात लीला को सही लगा लीला घर से दूसरे दिन बुआ के घर जाने तैयार हुई साथ में पेड़ के कुछ अमरूद नया चावल लेकर बुआ के घर के विए बस में बैठकर (रायपूर ) आ गई बुआ अचानक लीला को देख अरे लीला कैसे तुम अचानक!
लीला ने झोले से अमरूद व चावल को द्ते हुई अपन् स्वास्थ के बारे में बुआ से कहने लगी बुआ ने घर के पास ही डाँक्टर क् पास जाकर दिखाई डाँक्टर ने बीमारी को देख कुछ दिन यही रूक कर इलाज की सलाह दे दवा गे दी, दवा लेकर बुआ के साथ घर आई बुआ घर आने के बाद लीला यही रहे गी ये सोचकर बोली -लीला मेरे घर कल तुम्हारे भाई के लिए अच्छे घर से रिश्ता आ रहा है तुम एक काम करो तुम्हारा यहां कोई परीचित या रिश्तेदार हे तो तुम वहां चली जा वो सब बहुत ही रईस खानदान के है तुम्हे इस हालात में देख उन पर गलत प्रभाव पड़ सकता है, लीला या तुम गांव से ही दो दिन बाद आकर दिखा देना.
बुआ की बात सुनकर लीला कुछ सोचे बिना ही हाथ में थैला लेकर घर से निकल पड़ी, शरीर दो कदम चलने का भी साथ नही द् रहा था ,पर लीला किसी और के यहां जाऩे स् अच्छा है अपना कुटिया ठीक है ,स्वाभिमान (Self respect) दीप अंर्तमन में जला कर लीला गांव वापस आ गई , घर में वापस देखकर बच्चे झोला में अपने लिए सामान टटोलने लगे ,लीला चुपचाप खाट में जाकर सो गई और सोचने लगी , शायद अमीरों के रिश्ते गरीब ले नही होते है ?? मेरी गरीबी का उनके घर ,समाज में कोई जगह नही है ??? क्या पद ,पैसा के सामने रिश्ता को कोई मूल्य नही ?? ये सोच ही रही थी ,बच्चे अपने माँ की मौन को पढ़ लिए ,गरीबी में भी स्वाभिमान (Self respect) का दीप जलाओ अंर्तमन में का सीख देती हुई जग से सदा के लिए चली गई !
गुजरती शामे बहुत कुछ कहती है
मिनी की अचानक आवाज आई अम्मा जल्दी बाहर आवो जल्दी अम्मा ,अम्मा ऐसे जोर, जोर से आवाज करने लगी मानो बिजली का झटका लग गया हे, अम्मा काम से आकर हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल रही थी, मिनी की आवाज सुनकर घबड़ा गई है भगवान क्या हुआ जैसे तैसे कपड़े को लपेटकर बाहर दरवाजे की ओर दौड़ी सामने मिनी व सुनील को देखकर ऐसे स्तब्ध से खड़ी हो गई जैसे सांप ने सुंघ लिया हो, सुनी को सामने देखकर जो 10 साल से कहा था कोई अता पता ही नही मिनी और लीला तो जिस हालात में छोड़कर बिना बताये एक दिन घर से बाहर निकल गया.
घर के लोगों ने बहुत खोज खबर ली पर कोई पता न चला थक मिनी को तो पालना लीला के सामने बहुत बड़ा सवाल था आखिर कब तक परिवार के ऊपर आश्रित रहती वो भी दे लोग ऐसा सोचकर वो काम करने लगी थी सुनील, लीला का छोटा परिवार बहुत खुशहाल परिवार था अक्सर लीला गुजरती शामे जो कुछ कहती थी उसी याद के सहारे अपने दिन गुजारे व अचानक सुनील गलत संगति मे. घर छोड़कर गुमनाम चले जाना व गलती का एहसास होने पर फिर घर वापस आना ,लीला के लिए जीवन के सुख ,दुख की यादें और गुजरती शामे बहुत कुछ कह रही है !
अनंत अनुसुईया झा
सुरजपूर छतीसगढ
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