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पुलिसवाला (policeman)
पुलिसवाला (policeman) : वह दर्द से कराह रही थी। लॉकडाउन के चलते कोई गाड़ी नहीं मिल पा रही थी। अभी-अभी इमरजेंसी नंबर पर कॉल किया। एंबुलेंस वाले ने मना कर दिया कि मैं अभी नहीं आ सकता। जैसे-तैसे करके किसी गाड़ी वाले को मनाया। गाड़ी वाला उसे लेकर रवाना हुआ। अस्पताल पहुँचे। डिलीवरी मैटर था। लेबर पेन तेज होते जा रहा था। वह चिल्ला रही थी लेकिन कोरोना के चलते कोई भी डॉक्टर उसे संभाल पाने में समर्थ नहीं था।
धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ने लगी। बिगड़ती हालत को देखकर उसे भर्ती किया गया। तमाम जांचे की गई। रिपोर्ट में आया कि ब्लड की कमी है और अभी के अभी एक यूनिट ब्लड चाहिए। उस महिला के साथ केवल दो पुरुष थे। जल्दबाजी में भी किसी महिला को भी साथ नहीं ले पाए थे। जैसे ही ब्लड के बारे में पूछा गया दोनों सन्न रह गए। मज़दूर जो ठहरे। ब्लड भी उनकी रगों में कम ही था। उन्होंने योजना बनाई, क्यों ना यहाँ से छुट्टी दिला कर वापस ले चलें और ऐसी बातें करते-करते दोनों बाहर आ गए।
जैसे हॉस्पिटल के बाहर निकालने लगे वहाँ खड़े पुलिस वाले (policeman) ने फटकारा और बोला कि लॉकडाउन चल रहा है। पालन नहीं करते हो। चलो मैं बताता हूँ तुम दोनों को अभी। दोनों डर गए लेकिन पुलिस वाला समझ गया कि ज़रूर किसी परेशानी में हैं। पुलिस वाले (policeman) ने उनको अपने पास बुलाया-बुलाया और थोड़ी देर उनकी बातें सुनी। उन्होंने वह ब्लड की आवश्यकता वाली बात, उसे नहीं बताई। लेकिन उनकी बातों ही बातों में पुलिस वाले को इस बात का अनुमान लग गया कि इन्हें ब्लड की ज़रूरत है।
उसने अपने साथी को फ़ोन करके कहा कि आप मेरी जगह थोड़ी देर संभाल लो। साथी ने उसकी जगह ली और वह पुलिस वाला उन दोनों के साथ अस्पताल गया। वहाँ जाकर उसने रक्तदान किया। रक्त उस महिला को दिया गया। स्थिति थोड़ी ठीक हुई। और उसी वक़्त एक नन्ही परी का जन्म हुआ।
जब मेडिकल स्टाफ उस नन्ही परी को अपने हाथों में लेकर उसके पिता को देने आए तो पिता की आंखों में आंसू थे। वह बहुत खुश था कि आज उनकी पत्नी बच गई और शायद इसी लक्ष्मी के आने के लिए, उसकी पत्नी बची थी।
लेकिन उस लक्ष्मी और उस व्यक्ति की पत्नी को बचाने के लिए, जिस देवदूत ने अपना रक्तदान किया था, उसका शुक्रिया करना भी ज़रूरी था। वह पिता अपनी बच्ची को थोड़ी देर गोद में लेता है, निहारता है और वापस उस बच्ची को मेडिकल स्टाफ को लौटाते हुए उस पुलिस वाले (policeman) की और दौड़ कर चले जाता है जहाँ वह अभी भी अपनी ड्यूटी कर रहा था।
लॉकडाउन में ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ बनी है जो कभी लिखी नहीं जाएंगे लेकिन जो सुनेंगे उनके लिए मिसाल होंगी
भाई-बहन और कोरोना महामारी
सुन-पूरा ६०० किलोमीटर है। पैदल चल लेगी?
हाँ भैया, चल लूंगी।
रात का समय है, थोड़ा जल्दी चल पाएंगे, हाँ लेकिन रास्ते में पुलिस का डर, खाने का सामान भी नहीं और भी अनजान लोग हैं साथ में। हम केवल दो ही हैं।
भैया, आप डराओ मत।
देख एक बार और सोच ले। कोई गाड़ी नहीं रुकेगी हमारे लिए। खाना तो दूर, पानी भी नहीं मिलेगा पीने के लिए, पैरों में बहुत दर्द होगा। एक बार निकल जाने के बाद, ना तो आगे जा पाएंगे ना वापस आ पाएंगे। लगातार आगे बढ़ते ही रहना पड़ेगा।
वह परेशान होकर चिल्ला कर बोली-मरना ही है तो घर की दहलीज़ पर मरेंगें।
यहाँ दूसरों के दया पर भीख मांगते हुए प्राण नहीं त्यागने मुझे।
उसका गला रूंध गया, रुलाई फूट गई।
(आंसू छुपाते हुए) भाई बोला-चल जल्दी कर सामान बाँध ले, चप्पल पहन, हाँ ध्यान रहे सामान कम ही होना चाहिए और ज्यादातर खाने का ही होना चाहिए। आलू और प्याज बाँध लो। कच्चे ही खा लेंगे रास्ते में।
उसे पता था कि बहन की इस समय सबसे बड़ी ताकत वह स्वयं था और किसी भी हालत में उन्हें घर पहुँचना था। बिना सरकारी मदद पर निर्भर रहे। प्रशासन के भरोसे काल के ग्रास नहीं बनना था।
कुछ देर बाद, दोनों तैयार हुए एक बहुत लंबी थका देने वाली यात्रा के लिए।
गली में झांक कर देखा, सब जगह सुनसान थे। कोई नज़र नहीं आ रहा था। मुंह पर दुपट्टा बाँधा और निकल पड़े, एक लंबी और महामारी से युद्ध करने वाली यात्रा के लिए, एक लंबी डगर का चयन कर लिया। बिना ये जाने कि आगे के रास्ते पर उनके लिए कितनी विपदाएँ और चमत्कार आने वाले हैं!
नवल किशोर वर्मा
अध्यापक- रा उ मा विद्यालय चाँदसमा (जोधपुर)
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