नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
जानकीनाथ और प्रभावती
माता पिता वह धन्य थे,
आँगन में जिनके वीर अद्भुत जन्मा था।
वैभव के साये में जिसका जन्म हुआ,
धन धान्य अकूत था।
फिर भी खोया-खोया क्यों वह बालक रहता था,
अन्याय सहना सबसे बड़ा अपराध हैं
बात वह सबसे बोला करता था।
प्रसिडेंसी कॉलेज के प्रोफ़ेसर जब
भारतीय विधार्थियों से करते अशिष्ट व्यवहार थे,
विरोध घनघोर किया उनका।
बीमारी की हालत में भी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए
मेधावी इतने कि सिविल सेवा की परीक्षा में,
चौथा उनका सूची में स्थान था।
पर नहीं स्वीकार अंग्रेज़ी हुकूमत का आदेश बजाना था।
जब अंदर दिया आजादी
का जलता हैं,
तो कहाँ मन कहीं और लगता हैं।
विवेकानंद का दर्शन जिसका दर्पण हो,
वह कब लक्ष्य से चूकेगा।
कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहे पर उग्रवादी विचार न गाँधी जी से मेल खाए,
फॉरबर्ड ब्लाक का स्वतंत्र फिर अस्तित्व था।
” सफलता को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अकेले ही चलता हैं
लोग तो संग तब आते हैं जब आप सफल हो जाते हैं “
अकेले ही तुम चल पड़े,
फिर आजाद हिंद फ़ौज में शामिल कितने हृदय हो गये।
रंगून के जुगनी हॉल में जब तुमने कहा ” स्वतंत्रता बलिदान चाहती हैं
अब प्राणों की आहुति माँगती हैं “
देशभक्ति का जज़्बा क्या ख़ूब था।
हिल गयीं हुकूमत ऐसा वह शोर था,
किया तुम्हें अपने ही देश में नजरबंद
कितना खौफ़ तुम्हारा उनके दिल में था।
रूप बदलकर रातों रात तुम यूरोप पहुँच गये
जर्मनी और रूस को साथ अपने कर लिया।
रानी लक्ष्मी बाई रेजिमेंट गठित कर,
महिलाओं के देश सेवा के भाव को सम्मानित कर दिया।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल के रूप में
परिचय नारी का दे दिया।
“तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा”
उद्घोष कमाल कर गया।
विश्व सम्राज्यवाद ख़त्म करना उनका ध्येय था,
नेताजी की उपाधि अर्जित कर
सर्वस्व अर्पित कर दिया।
ग्यारह बार जेल गये,
बर्मा के कारावास में क्षय रोग से पीड़ित हुए
किन्तु मन कहाँ विचलित हुआ।
आजादी के सफ़र में परिवार कहाँ था,
बस राष्ट्र हित ही नजरों में तुम्हारी सर्वोपरि था।
शहीदी तुम्हारी पराक्रम दिवस बन गईं,
न अब फिर से बन जाए गुलाम हम
लड़ो लड़ाई न्याय की।
घर से निकलकर आवाज़ को करो बुलंद,
न हो अत्याचार मानवता पर
ऐसी मुहिम को अब बंदे तू जारी रख।
भारत रत्न सुभाष बन कर त्याग को उनके मान दे,
यहीं भाव निष्ठा का पद चाप तेरे बने।
एकता का तिलक कर,
राष्ट्र को प्रणाम कर।
नेहा अजीज़
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