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पर्यावरण का महत्त्व (importance of environment)
पर्यावरण का महत्त्व (importance of environment):
ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण किया और फिर उसके चारों तरफ़ एक भौतिक तत्वों का आवरण निर्मित किया, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके। इसी आवरण को जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है हम पर्यावरण कहते हैं।
पर्यावरण जिसमें जल, जंगल, जमीन, हवा और सूर्य का प्रकाश भी सम्मिलित है। इसी सूर्य के प्रकाश को संतुलित करके हम तक पहुँचाने के लिए प्रकृति ने हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल के ऊपर एक सुरक्षा कवच का निर्माण किया है जिसे हम ओजोन परत के नाम से जानते हैं। हमें ये भली-भाँति पता है कि यदि ये ओजोन परत किसी कारण से क्षतिग्रस्त हुई, जो कि धीरे-धीरे हो भी रही है तो सूर्य का प्रकाश जो अभी हमारे लिए जीवनदायक है वही कई गुना तेज़ होकर अग्नि की लपटों के समान हम पर गिरेगा और समस्त जीवन पल भर में स्वाहा हो जाएगा।
वर्षों से पर्यावरणविद्व हमें चेताविनि देते आ रहे हैं कि हमारी कुछ अनचाही भूलें कुछ ऐश्वर्यदायक भौतिक संसाधनों के प्रयोग हमारे वातावरण में गर्मी बढ़ा रहे हैं जिसे उन्होंने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ नाम दिया है। हमारा ग्लोव अर्थात हमारी पृथ्वी जिसपर हम रहते हैं वह निरन्तर गर्म हो रही है जो जीवन के लिए ठीक नहीं है और इस ग्लोबल वार्मिंग का कारण है चारों ओर से फैलाया जा रहा गर्म धुआं जिसमें कार्बनडाइऑक्साइड, मोनो कार्बन, सल्फर, मीथेन, नाइट्रोजन जैसी कितनी ही ऐसी गैसें जो हमारे ग्लोब की गर्मी को बढ़ाने के साथ ही ओज़ोन परत को भी नुक़सान पहुँचा रही हैं।
किंतु हम सब जानते हुए भी इसे रोकने के स्थान पर दिन-प्रतिदिन और बढ़ाते जा रहे हैं। ऐसे ही कई प्रकार के रेडियोधर्मी विकिरण से कई पक्षी प्रजाति लुप्त हो चुकी हैं और कई छोटे कीट-पतंगें जो प्रकृति में जीवन संतुलन का कार्य करते थे वे अब समाप्त हो चुके हैं। मनुष्य का भौतिक संसाधनों का लालच वायु प्रदूषण के साथ ही दिन-प्रतिदिन जंगलों को काटकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की प्राकृतिक शक्ति को भी नष्ट करता जा रहा है और जल का भी क्षरण और निरन्तर दोहन किसी भी क्षण शुद्ध जल का संकट उत्पन्न कर सकता है।
इस सब का परिणाम अभी इस कोरोना महामारी के चलते देखने को मिला जब ऑक्सीजन के लिए त्राहि मच गई। हमारे शास्त्रों और पर्यावरण के विद्वानों का कथन है कि पीपल, शमी और बरगद के पेड़ सबसे ज़्यादा ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं और नीम का पेड़ सबसे अधिक जीवाणु रोधक होने के साथ ही पर्यावरण को शुद्ध करने का कार्य करता है। किंतु अफ़सोस अब ना तो नीम नज़र आता है और ना ही बरगद और पीपल, फिर हवा शुद्ध कैसे हो। गाड़ियाँ और चिमनियाँ तो निरन्तर बढ़ रही हैं और वृक्ष कम होते जा रहे हैं। यदि ये असंतुलन ऐसे ही चलता रहा तो पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने का दंड प्रकृति हमें ऐसे ही महामारियों के रूप में देती रहेगी।
इसलिए हमें जागरूक होने की आवश्यकता है अपने पर्यावरण अपने जीवन कवच के प्रति और ये कर्तव्य हम सबका है, इसमें सभी को मिलकर ही कार्य करना होगा। मेरी सरकारों से इस सम्बंध में एक अपील है कि कालोनियों के नक़्शे तब तक पास ना किये जायें जब तक की हर कॉलोनी में ऐसा पार्क ना हो जिसमें नीम, पीपल और बरगद का वृक्ष लगा हो। ऐसे ही लोगों को भी चाहिए की घर बनाते समय इतनी जगह अवश्य खाली छोड़े जिसमें नीम गिलोय और शमी का वृक्ष लग सके। उसके बदले आप दूसरी मंज़िल बनाकर इस जगह की पूर्ति कर सकते हैं। हम सभी को भविष्य के जीवन को सुरक्षित रखना है तो पर्यावरण अर्थात जल, जंगल, जीव और ज़मीन की सुरक्षा के विषय में गंभीरता से सोचना होगा और इनके संरक्षण का कार्य मिलजुलकर करना होगा। वृक्षों के महत्त्व पर कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूंगा-
चारों ओर फैली हरितिमा, धरती का हरा गलीचा है।
ऐसा है भारत देश मेरा, जो एक सम्पूर्ण बगीचा है।
इसकी धरती है हरी भरी, हमने इसे खून से सींचा है।
पाते हैं हम शुद्ध हवा, उसका कारण ये हरित ही है।
ये वृक्ष हमारे बन्धु हैं, जिनसे नित अमृत झरता है।
ऐसा है भारत देश मेरा, जो एक सम्पूर्ण बगीचा है।
ये पेड़ नहीं हैं भाई हैं, ये मानव जीवन रक्षक हैं।
जो काट रहे इन वृक्षों को, वे जीवन सुख के भक्षक हैं।
इसलिए हे भारत के वीरों, हरितिमा का नित सम्मान करो।
कटने ना पाए कोई वृक्ष, इसका तुम सदा ही ध्यान करो।
प्रेमचंद जी की जन्मशती
यूं तो कहानियां पढ़ने का शौक बचपन से ही हो गया था, जिसकी शुरुआत उस समय के बाक़ी सभी बच्चों की तरह चंपक, चंदा मामा और नंदन जैसी बाल पत्रिकाओं से ही हुई थी। उसी समय मुंशी जी की कहानियों से मेरा परिचय पाठ्यपुस्तक की कहानियों द्वारा हुआ। ठीक से याद नहीं पड़ता कि पहले, “दो बैलों की कथा” पढ़ी थी या, “ईदगाह” । किन्तु दोनों ही कहानियां बिल्कुल अपने आस-पास की घटना जैसी लगी थीं। जिसमें अभावग्रस्त दादी पोते जो हर बार मेला लगने पर ग़रीबी से दुखी होते हैं। या बैल मांग कर ले जाते पड़ोसी या रिश्तेदार जिन्हें जानवरों की खुराक या प्यार से ज्यादा, अपना काम समाप्त करने की चिंता होती है बस।
हामिद, आमना, हीरा, मोती सब अपने आसपास दिखाई देते। जैसे ये कहानियाँ नहीं हमारी वास्तविक ज़िन्दगी है। तभी ‘पंच परमेश्वर’ से साक्षात्कार हुआ, रोज़ जाने कितने घरों में पंचायत देखने को मिलती। किन्तु, वहाँ वास्तविकता थोड़ा भिन्न होती, तब मैं मन ही मन मुंशी जी से पूछता की क्या अब पंच की गद्दी का प्रभाव मन्द हो गया है। आपके तो नमक के दरोगा ने भी रिश्वत को ठोकर मार दी थी जो उसकी नोकरी, जिसको उसके पिता ही ने पीर का मज़ार कहा था और रिश्वत को चादर और चढ़ावे की संज्ञा दी थी। किन्तु यहाँ तो पंच जिसे परमेश्वर कहा गया, वह ही…!
ऐसे ही एक दिन कहीं एक मार्मिक कहानी ‘कफ़न‘ पढ़ी जिसपर लोगों ने आपकी आलोचना भी की थी कि ” कोई भूख मानवता से ज़्यादा नहीं होती अतः घीसू और माधव का अपने चरित्र-हनन कर दिया, किन्तु भूख में जानवर अपने बच्चे निगल जाता है ये बात लोग भूल गए और शराब के बाद मानवता को नाली में डूबते अपनी माँ को ही माँ की ‘गाली’ देते अनेको बार मैंने कदाचित मानव ही को देखा है। आपने भी देखा होगा?
लेकिन एक कहानी अल्गोझ्या ने मुझे झिंझोड़ दिया, जिसमे बाप-बेटा, सौतेला-सगा, ऐसे किरदार गढ़े गए। रग्घू जो पन्ना का सौतेला बेटा है, जो बाप की मृत्यु के बाद उसके तीन बच्चों को बाप बन कर पालता है; उनका ध्यान रखता है और तरक्क़ी करके खुशाल भी बन जाता है। किन्तु उसकी स्त्री, मुलिया के आने के बाद कैसे सारा घर बिखर जाता है। कहानी ‘घर जंवाई’ में हरिधन ओर गुमानी के बहाने आप ने किस सरलता से ससुराल में रहने के नुक़सान और होने वाले अपमान को चित्रित किया। जो अविस्मरणीय है, ससुराल में यहाँ उसकी स्त्री भी उसे सम्मान नहीं देती वही अपने घर सौतेली माँ भी लाड़ करती है।
ऐसे ही कितनी कहानियां बचपन में ही पढीं थी। उसके बाद पढ़े उपन्यास, सबसे पहले शायद ‘गबन‘ पढ़ा था, उसमें रमानाथ का झूठे गबन के डर से भागना और जालपा का इसे ढूँढने के लिए शतरंज की पहेली का सहारा लेना। बहुत सुंदर लगा, भाषा शैली ऐसी की हमही आपस में बातें करते हों। गोदान, जिसमें एक ओर राय साहब है जो खुदको अंग्रेज़ी हुकूमत में रंगे हैं वहीं गरीब होरी है जिसकी गाय के बहाने उसके दुख के बहाने इस समय की स्थिति को चित्रित किया है। निर्मला, कर्मभूमि, प्रेमा आदि सभी कहनियों को मैंने पूरी रुचि से पढ़ा।
ऐसे महान कथाकार जिनके नाम से इस समय के काल को प्रेमचंद युग कहा गया हो उनके बारे में कुछ लिखूं ऐसी सामर्थ्य मुझमें नहीं है। आज जन्मदिवस के अवसर पर आदरणीय प्रेमचंद जी को शत-शत नमन।
नृपेंद्र शर्मा “सागर”
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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