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दर्द और हुंकार का समन्वय : मैं भी इंसान हूँ (I am also human)
दर्द और हुंकार का समन्वय – मै भी इंसान (human) हूं
समीक्षक: जय प्रकाश वाल्मीकि
लेखक, कवि बनने के लिए उच्च डिग्री ही पर्याप्त नहीं होती। जिस व्यक्ति का मन समाज, राष्ट्र तथा प्राणी मात्र के प्रति संवेदनाओं से भरा हो, तथा ह्रदय में निर्झर बह रहा हो, वही व्यक्ति इस ओर अग्रसर होता है। यह अलग बात है कि शिक्षित, विद्वान जन अच्छे शब्दों से अपनी रचनाओं को ज्यादा परिष्कृत रूप दे देते हैं, किंतु स्वानुभूति की सपाट बयानी आज शब्दादंबरो पर भारी पड़ रही है। दलित साहित्य का यहीं तो सौंदर्य है।
नवोदित कवि अमित मेघनाद संवेदनशील है, समाज की दीनहीन दशा के प्रति उनके अंतर्मन में जो दर्द था। उसी दर्द को व्यक्त करने के लिए कलम से बेहतर और कोई हथियार हो ही नहीं सकता।
मै ना लेखक ना कवि महान हू, हिन्दी उर्दू दोनो से अनजान हू।
दबाया कुचला गया हूं देश में, इसलिए लिखने को परेशान हुं।
(मै लिखने में नादान हूं _पुष्ट ४०)
अमित मेघनाद का यह पहला कविता संग्रह “मै भी इंसान हूं” है जिसे कलमकार पब्लिशर्स प्रा लि दिल्ली द्वारा हाल ही में प्रकाशित किया गया है । कवि जिस जाति समुदाय में जन्मे हैं, वे उसकी पीडा से व्यथित हैं। सिविर की सफ़ाई करते हुए वाल्मीकि जाति के व्यक्ति आज भी काल के गाल में समा रहे हैं। जब मैं यह समीक्षा लिख रहा था। मेरे सामने 31मार्च 2022 का दैनिक भास्कर समाचार पत्र रखा हुआ है जिसमें छपे समाचार के अनुसार राज्यसभा में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की और से बताया गया कि सिवीर सेप्टिकटैंक की सफाई करते हुए 325 जानो की जान गई।
यह भी बताता गया कि देश में हाथ से मैला साफ कर ढोने में लगे पहचान शुदा लोगो में 58 हजार 98 लोग है (देखे पुष्ट 10) जो लोग इस कार्य में अकाल मौत मरते है उनके माताओं पिताओ, बहन भाईयो का रूंधन मरने वाले के बेटे बेटियों की सिसकियां तथा उनका अंधकारमय पर “सफ़ाई से सैनिक शहीद क्यों नहीं (पुष्ठ 92_93) शीर्षक कविता सहित सफ़ाई श्रमिको पर अन्य रचनाओं में उनकी पीड़ा आदि का जो शब्दचित्र बना कर पाठको के समक्ष रखा वह पाठक की संवेदनाओं को जागता है तथा समाज को इस घृणित पेशे को छोड़ देने का आह्वान, झाड़ू की जगहकलम पाने की ललक तथा शासन द्वारा उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के कागजी प्रयासों पर भी अमित मेघनाद जी ने अपनी कलम चलाई है। और यह सब उन्होंने अपनी अनुभूतियों से लिखा है।
वाल्मीकि जाति में कई ऐसी महान विभूतियों का जन्म हुआ। उनमें ऐसे वीर, वीरांगनाएं थी, जिनके शौर्य पर वाल्मीकि समाज गर्व महसूस करने के साथ साथ उन्हे अपने स्वाभिमान को बनाएं रखने के लिए अपना आदर्श भी बनाना चाहिए। अमित जी ने इन्हीं भावनाओ के तहत वीरांगना गजना पर छह वीरांगना नांगेली (४९) माई खाको (पुष्ट७९) पर तथा मातादीन, भुरा, धोला वाल्मीकि पर गर्व से कविताओं का सृजन किया। की वे लोग कितने स्वाभिमानी थे, न्याय ओर स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। किंतु परंपरा वादी विचारधारा के जाति पोषको ने उनके बलिदानों को जन मानस के सामने ठीक से रखा ही नहीं। प्रसन्नता इस बात की हैं कि दलित साहित्य करो द्वारा हमे उनका परिचय मिल रहा है। मै भी इंसान हूं प्रस्तुत काव्य संग्रह मै अमित मेघनाद जी ने प्रगतिशीलता की ओर भी कदम बढाते हुए,मुहूर्त से कुछ नहीं होता,(५०) कावड़: श्रद्धा या अंध विश्वास,(९९) हवन यज्ञ क्यों करूं (११५) पाखंड से क्या मिलेगा (११६) आदि कविताओ की रचाना की।
दलित साहित्य के प्रेरणास्रोत बाबा साहेब आंबेडकर हैं। इसलिए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कविताओ १४ अप्रैल को जगमग कर दो। (पुष्ट २५) भीम के अहसान (पुष्ट ६९) बाबा की कलम को नमन (पृष्ठ ६९) आदि के द्वारा उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं। अमित जी अपनी बात अर्थात प्रस्तावना में लिखती हैं_”शादी के बाद उनकी पत्नी दर्शाना ने उनके जीवन को नई दिशा दी।”मैं समझता हूं कियह नई दिशा जैसा कि प्रचलित हैं संत तुलसी दास जी, महाकवि कालिदास जी की की पत्नियों की तरह नहीं रही होगी। दर्शाना जी ने द्वारा दी गई नई दिशा आपसी सामंजस्य पूर्ण रही होगी। बेटियों का दर्द, उनके प्रति स्नेह, बेटियों पर गर्व सहित धर्म के पाखंड, कर्मकांड, अंधविश्वासों पर प्रहार करती जितनी भी कविताएं हैं उनके सृजन की प्रेरणास्रोत दर्शाना जी ही रही होगी। यह कितने हर्ष की बात होती कि अमित जी मेघनाद अपने प्रथम उक्त कविता संग्रह को अपनी विदुषी जीवन संगिनी दर्शाना जी को समर्पित करते।
अमित जी ने यद्यपि दलितों समाज से जुड़े सभी बिंदुओं को छुआ है यदि वे सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज, बाल विवाह, शादी विवाह में होने वाले आडंबर, मृत्यु सहित अन्य सामाजिक अवसरों पर होने वाले खर्चीले रीति रिवाजों पर भी कुछ रचनाएं संकलित कर देते तो संभव हैं सामाजिक जनजागरण हेतु पाठको को उनकी रचनाएं नई दिशा देती। अमित जी की लेखनी में दलित पीड़ित का दर्द है, सामाजिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, दलितों की ऊपर उठने की जिद्दोजाहद तथा सुप्त चेतना से जागृत होने की हुंकार है, हर अमित जी की पुस्तक पठनीय है। मुझे आशा है, दलित साहित्य में उसकी अपनी पहचान बनेगी। उनकी कृति “मै भी इंसान हूं” के लिए अमित मेघनाद जी को मै बधाई देते हुए मै उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
भवदीय
जय प्रकाश वाल्मीकि
स्वतंत्र लेखक
14, वाल्मीकि कॉलोनी,
द्वारिका पुरी के पास,
शास्त्री नगर,
जयपुर _3o2026(राज)
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२- ऐ नवजवानों
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