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गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)
भगवान श्री गणेश में आस्था व उमंग व विश्वास का प्रतीक का पर्व गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)
भारतीय संस्कृति में चार चांद लगाते है यहाँ पर आयोजित होने वाले त्यौहार व पर्व। ऐसे ही ख़ास पर्व श्री गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के मौके पर मैं स्वतंत्र लेखक सूबेदार रावत गर्ग उण्डू आज आपकी सेवा में इस पर्व पर जुड़ी ख़ास जानकारी भरा लघु आलेख पेश कर रहा हूँ और आशा है आपको भी रोचक लगेगा।
लोग गणेश चतुर्थी मनाते हुए भगवान गणेश (विग्नेश्वरा) की पूजा करते हैं। गणेश हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवता हैं जिनकी पूजा परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा की जाती है। वह किसी भी क्षेत्र में कोई भी नया काम शुरू करने से पहले हमेशा लोगों द्वारा पूजा जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है लेकिन अब लगभग सभी राज्यों में एक दिन का जश्न शुरू हो गया है। यह हिंदू धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण त्यौहार है। लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गणेश चतुर्थी पर ज्ञान और समृद्धि के देवता की पूजा करते हैं।
श्री गणेश चतुर्थी ख़ुशी और सुख-समृद्धि का पावन पर्व इस बार कोरोना की छाया में-
लोगों का मानना है कि गणेश हर साल बहुत सारी खुशियों और समृद्धि के साथ आते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं। गणेश को प्रसन्न करने के लिए भक्त इस त्यौहार पर तरह-तरह की तैयारियाँ करते हैं। परंतु इस बार सभी तीज त्योंहार वैश्विक महामारी कोरोना की छाया में है। इस सभी त्यौहार आदि लोग कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए घरों में सुरक्षित रहकर मना रहे है।
श्री गणेश जी के प्रति आस्था व विश्वास पर लोग उनके स्वागत और सम्मान के लिए गणेश की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद (अगस्त या सितंबर) के महीने में शुक्ल पक्ष में चतुर्थी से शुरू होता है और ११ वें दिन अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है। हिंदू धर्म में गणेश की पूजा का बहुत महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी पूजा करता है, उसे सुख, ज्ञान, धन और लंबी आयु प्राप्त होती है।
गणेश चतुर्थी पर पूजा विधान व महत्त्व-
लोग गणेश चतुर्थी के दिन सुबह स्नान करते हैं, साफ़ कपड़े पहनते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। वे कई चीजों की पेशकश करते हैं और मंत्र, आरती और भक्ति गीत गाकर भगवान से प्रार्थना करते हैं और हिंदू धर्म के अन्य अनुष्ठान करते हैं। पहले यह त्यौहार केवल कुछ परिवारों में मनाया जाता था। बाद में इसे मूर्ति स्थापना और मूर्ति विसर्जन के अनुष्ठान के साथ एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा ताकि एक बड़े अवसर के साथ-साथ कष्टों से मुक्त हो सकें। यह १८९३ में लोकमान्य तिलक (एक समाज सुधारक, भारतीय राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी) द्वारा एक उत्सव के रूप में शुरू किया गया था। उस समय उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की रक्षा के लिए गणेश की पूजा करने का अनुष्ठान किया था।
अंनत चतुर्दशी के दिन होता है गणेश विसर्जन के साथ समापन-
गणेश चतुर्थी को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है, कुछ ऐसे हैं जैसे एकदंत, असीम शक्तियों के देवता, हेरम्बा (बाधा निवारण) , लम्बोदर, विनायक, देवों के देव, ज्ञान के देवता, धन और समृद्धि के देवता और कई और। गणेश विसर्जन के पूरे हिंदू अनुष्ठान के साथ लोग ११ वें दिन (अनंत चतुर्दशी) को गणेश को देखते हैं। वे भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे अगले वर्ष फिर से बहुत सारे आशीर्वादों के साथ वापस आएँ।
सांप्रदायिक सद्भाव व एकता के प्रतीक लोक देवता बाबा रामदेव जी
इस बार कोरोना की छाया से मेला हुआ रद्द
राजस्थान की धन्य धरा पर अनेक महापुरुष व लोक देवी-देवता हुए है जो आज बड़ी आस्था विश्वास व श्रध्दा से पूजे जाते है। मैं स्वतंत्र लेखक सूबेदार रावत गर्ग उण्डू आज बाबा रामदेव जी पर आधारित एक विशेष आलेख आपकी सेवा में पेश कर रहा हूँ। राजस्थान के मारवाड़ की धरती पर लोक देवता हुए श्री बाबा रामदेव जी महाराज जिन्हें साम्प्रदायिकता का प्रतीक माने जाते है हिन्दू व मुसलमान दोनों ही धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते है। बाबा रामदेव जी महाराज जन्म या अवतार स्थल बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र के उण्डू काश्मीर में हुआ था। वर्तमान में यह जगह बाड़मेर से करीब सौ किलोमीटर दूर उण्डू के पास ग्राम पंचायत काश्मीर से हाल ही में अलग हो नवसृजित ग्राम रामदेरिया है। यहाँ पर मंदिर निर्माण किया गया है। संपूर्ण सुविधाएँ व्याप्त है।
बाबा रामदेव ने बाड़मेर जिले के उण्डू काश्मीर में लिया था अवतार-
लोक देवता बाबा रामदेव जी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र के उण्डू काश्मीर (वर्तमान रामदेरिया) में जन्म अवतार लिया था। किंवदन्ती है कि ये भगवान श्री कृष्ण का अवतार थे। श्रद्धालु इनके जन्म की कथा को कुछ यूँ बयान करते हैं। दिल्ली के शासक अनंगपाल के पुत्र नहीं था। पृथ्वीराज चौहान उनकी पुत्री का पुत्र था। एक बार अनंगपाल तीर्थयात्रा को निकलते समय पृथ्वीराज चौहान को राजकाज सौंप गये। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें राज्य पुनः सौंपने से इन्कार कर दिया। अनंगपाल और उनके समर्थक दुखी हो राजस्थान के बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ग्राम उण्डू-काश्मीर में बस गये थे। इन्हीं अनंगपाल के वंशजों में अजमल और मेणादे थे।
निसंतान अजमल दम्पत्ति श्री कृष्ण के अनन्य उपासक थे। एक बार कुछ किसान खेत में बीज बोने जा रहे थे कि उन्हें अजमल जी रास्ते में मिल गये। किसानों ने निसंतान अजमल को शकुन खराब होने की बात कह कर ताना दिया। दुखी अजमल जी ने भगवान श्री कृष्ण के दरबार में अपनी व्यथा प्रस्तुत की। भगवान श्री कृष्ण ने इस पर उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे। बाबा रामदेव के रूप में जन्में श्री कृष्ण पालने में खेलते अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से लोगों की आस्था का केन्द्र बनते गये। लोक भावनाओं के अनुसार उन्होंने पीरों को उनके बर्तन मक्का मदीना से मंगवा कर चमत्कृत किया, भैरव राक्षस के आतंक से रामदेवरा के लोग को मुक्त कराया, बोयता महाजन के डूबते जहाज़ को बचाया।
सगुना बाई के बच्चों को जीवित करना, अंधों को दृष्टि प्रदान करना और कोढयों को रोगमुक्त करना उनके अन्य चमत्कारों में से कुछ थे इसलिए आज भी लोग उनसे मनौतियाँ मांगते हैं और मनौती पूरी होने पर भेंट चढाते हैं। यहाँ भाद्रपद महिने में भी मेला भरता है जिसमें आस-पास के गांवों के लोग इकट्ठे होते हैं। उण्डू काश्मीर में जन्म लेकर बाल्यावस्था यही गुजारी फिर उण्डू काश्मीर से सौ सवा सौ किलोमीटर दूर स्थित रामदेवरा में बच गए थे। रामदेवरा अथवा रूंणीचा धाम असल में रामदेव जी की कार्यस्थली रही है। यहीं उन्होंने रामसर तालाब खुदवाया, यहीं समाधि ली और अपने ३३ वर्ष के छोटे से जीवन में दीनदुखियों और पिछडे लोगों के कल्याण के लिए काम करके देवत्त्व प्राप्त किया।
रामदेवरा किसी समय जोधपुर राज्य का गाँव था जो जागीर में मंदिर को दे दिया गया था। इस गाँव के ऐतिहासिक व प्रामाणिक तथ्य केवल यही तक ज्ञात हैं कि इसकी स्थापना रामदेवजी की जन्म तिथि और समाधि दिवस के मध्य काल में हुई होगी। वर्ष १९४९ से यह फलौदी तहसील का अंग बन गया और बाद में जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील बन जाने पर उसमें शामिल कर दिया गया। रामदेव जी के विवाह की गाथा लोकगीतों में आती है पर संतान व अन्य तथ्यों की पुष्टि नहीं होती। इनका विवाह निहाल दे नामक महिला से हुआ था। डाली बाई और हरजी भाटी इनके अनन्य भक्तों में से थे। डालीबाई का मंदिर रूंणीचे में बाबा की समाधि के पास बना है। कहते हैं कि डालीबाई बाबा रामदेव को टोकरी में मिली थी। रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण १९३१ में बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था। इस पर उस समय ५७ हज़ार रुपये की लागत आई थी।
इस बार कोरोना महामारी की छाया में बाबा रामदेव मेला रद्द किया प्रशासन ने-
वैश्विक महामारी कोरोना के वायरस कोविड १९ के चलते बाबा रामदेव अवतार धाम-रामदेरिया (उण्डू-काश्मीर) व समाधि स्थल रामदेवरा (रूणिचा) में लगने वाला विशेष मेला सरकार के निर्देशानुसार प्रशासन ने रद्द करवाया गया है। इस में देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है। भादवा शुक्ला द्वितीया से भादवा शुक्ला एकादशी तक भरने वाले इस मेले में सुदूर प्रदेशों के व्यापारी आकर हाट व दूकानें लगाते हैं। पैदल यात्रिायों के जत्थे हफ्तों पहले से बाबा की जय-जयकार करते हुए अथक परिश्रम और प्रयास से रूंणीचे पहुँचते हैं। लोकगीतों की गुंजन और भजन कीर्तनों की झनकार के साथ ऊँट लढ्ढे, बैल गाड़ियाँ और आधुनिक वाहन यात्रियों को लाखों की संख्या में बाबा के दरबार तक पहुँचाते हैं।
यहाँ कोई छोटा होता है न कोई बडा, सभी लोग आस्था, भक्ति और विश्वास से भरे, रामदेव जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुँचते हैं। यहाँ मंदिर में नारियल, पूजन सामग्री और प्रसाद की भेंट चढाई जाती है। मंदिर के बाहर और धर्मशालाओं में सैकडों यात्रियों के खाने-पीने का इंतज़ाम होता है। प्रशासन इस अवसर पर दूध व अन्य खाद्य सामग्री की व्यवस्था करता है। विभिन्न कार्यालय अपनी प्रदर्शनियाँ लगाते हैं। प्रचार साहित्य वितरित करते हैं और अनेक उपायों से मेलार्थियों को आकृष्ट करते हैं।
मनोरंजन के अनेक साधन यहाँ उपलब्ध रहते हैं। श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ-साथ मेलार्थी अपना मनोरंजन भी करते हैं और आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी भी। निसंतान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और सवामणी करते हैं। रोगी रोगमुक्त होने की आशा करते हैं तो दुखी आत्माएँ सुख प्राप्ति की कामना और यू एक लोक देवता में आस्था और विश्वास प्रकट करता हुआ यह मेला एकादशी को सम्पन्न हो जाता है। इस बार कोरोना महामारी की वज़ह से मेला रद्द हुआ है। बाबा रामदेव जयंती बीज पर बाबा आपकी मनोकामना पूर्ण करावें ऐसी हार्दिक शुभकामनाये।
जय बाबा री!
राष्ट्र भाषा हिन्दी है हिन्दुस्तान का गौरव
हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष ‘१४ सितंबर’ को मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी ‘राष्ट्रभाषा’ भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। आइए मैं स्वतंत्र लेखक सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, सहायक उपानिरीक्षक-भारतीय रक्षा सेवा आज हिन्दी भाषा दिवस पर केंद्रित विशेष आलेख पेश कर रहा हूँ। आशा है कि आपको पंसद आएगा। यह हिन्दी भाषा हमारे हिन्दुस्तान का सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हम आपको बता दें कि हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।
इतिहास के झरोखे से हिन्दी-
भारत की स्वतंत्रता के बाद १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्त्वपूर्ण निर्णय के महत्त्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष १४ सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
वर्तमान दृष्टि से हिन्दी का महत्त्व-
धीरे-धीरे हिन्दी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिन्दुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए, साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा।
राष्ट्र भाषा हिन्दी है हिन्दुस्तान का गौरव-
हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष ‘१४ सितंबर’ को मनाया जाता है। हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिन्दुस्तान को बाँधती है। इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसी कर्तव्य हेतु हम १४ सितंबर के दिन को ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती।
पहले के समय में अंग्रेज़ी का ज़्यादा चलन नहीं हुआ करता था, तब यही भाषा भारतवासियों या भारत से बाहर रह रहे हर वर्ग के लिए सम्माननीय होती थी। लेकिन बदलते युग के साथ अंग्रेज़ी ने भारत की ज़मीं पर अपने पांव गड़ा लिए हैं। जिस वज़ह से आज हमारी राष्ट्रभाषा को हमें एक दिन के नाम से मनाना पड़ रहा है। पहले जहाँ स्कूलों में अंग्रेज़ी का माध्यम ज़्यादा नहीं होता था, आज उनकी मांग बढ़ने के कारण देश के बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हिन्दी में पिछड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें ठीक से हिन्दी लिखनी और बोलना भी नहीं आती है। भारत में रहकर हिन्दी को महत्त्व न देना भी हमारी बहुत बड़ी भूल है।
हिन्दी भाषा अंग्रेज़ी बाज़ार में पिछड़ापन-
आजकल अंग्रेज़ी बाज़ार के चलते दुनियाभर में हिन्दी जानने और बोलने वाले को बाज़ार में अनपढ़ या एक गंवार के रूप में देखा जाता है या यह कह सकते हैं कि हिन्दी बोलने वालों को लोग तुच्छ नजरिए से देखते हैं। यह कतई सही नहीं है। हम हमारे ही देश में अंग्रेज़ी के गुलाम बन बैठे हैं और हम ही अपनी हिन्दी भाषा को वह मान-सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, जो भारत और देश की भाषा के प्रति हर देशवासियों के नज़र में होना चाहिए। हम या आप जब भी किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के बीच खड़े होकर गर्व से अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग़ में आपकी छवि एक गंवार की बनती है। घर पर बच्चा अतिथियों को अंग्रेज़ी में कविता आदि सुना दे तो माता-पिता गर्व महसूस करने लगते हैं। इन्हीं कारणों से लोग हिन्दी बोलने से घबराते हैं।
राष्ट्र भाषा हिन्दी पर हो पुरजोर-
आज हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाते हैं। इन स्कूलों में विदेशी भाषाओं पर तो बहुत ध्यान दिया जाता है लेकिन हिन्दी की तरफ़ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता। लोगों को लगता है कि रोजगार के लिए इसमें कोई ख़ास मौके नहीं मिलते। हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ है गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए एक प्रयास। कोई भी व्यक्ति अगर हिन्दी के अलावा अन्य भाषा में पारंगत है तो उसे दुनिया में ज़्यादा ऊंचाई पर चढ़ने की बुलंदियाँ नज़र आने लगती हैं चाहे वह कोई भी विदेशी भाषा हो, फ्रेंच या जर्मन या अन्य।
सभी आपसी एकता क़ायम कर करें प्रगतिशील समाज का निर्माण
किसी भी समाज या संगठन के सफल व निर्विघ्न रूप से प्रगतिशील हो तो समाज की एकता से राष्ट्र की एकता संभव होती है कहा भी है कि संगठन में शक्ति है ऐसे ही विषय पर आज मैं स्वतंत्र लेखक, रचनाकार सूबेदार रावत गर्ग उण्डू आपकी सेवा में लघु आलेख पेश कर रहा हूँ आशा करता हूँ आपको पंसद आएगा। ऋग्वेद मंत्रों में कहा गया है कि हे मनुष्यों, तुम सब के विचार एक जैसे हो, मन एक समान हो। मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे मन एक होकर ज्ञान प्राप्त करे।
अगर परस्पर विरोधी दिशाओं में चलोगे तो समाज को हानि होगी। जब हमारे संकल्प समान होंगे, हृदय परस्पर मिले हुए होंगे, हम सभी को मित्र की दृष्टि से देखेंगे तो समाज सुगठित रहेगा। जब हम सबके विचार, समिति, मन और चित्त समान उद्देश्य वाले होंगे तो हम परस्पर मिलकर रह सकंेगे। जब हम क़दम से क़दम मिलाकर चलते हैं तो सफलता मिलती है। समाज में मनुष्य एक दूसरे से प्रेमपूर्वक और शालीनता पूर्ण व्यवहार करें।
एकता अखंडता से ही उन्नत समाज और उन्नत राष्ट्र:
वेद उपदेश देते हैं कि हमें अपने देश और देशवासियों की कीर्ति के लिए मिलकर काम करना चाहिए। इतना ही नहीं, हमें दूसरी धार्मिक निष्ठाओं व आकांक्षाओं का पूर्ण आदर करना चाहिए। हम अपनी मातृभूमि के ऋणी हैं क्योंकि इसने बहुत ही दयालुतापूर्ण, आकर्षक और उपयोगी द्रव्य साधन प्रदान किए हैं और इसलिए हमें इनकी ऐसे आराधना चाहिए जैसे हम ईश्वर की उपासना करते हैं। जब हम दूसरों में अपना प्रतिबिम्ब और अपने में दूसरों का प्रतिबिम्ब देखेंगे तो शान्ति बने रहेगी और उसे कोई भी भंग नहीं कर सकेगा। वेदों में विचारों की सार्वभौमिक अनुरूपता की बात की गई है।
परस्पर एकता का परिचय देकर मज़बूत समाज बनाएँ:
परस्पर मिलकर विचार करो। विचारों से वाणी शुद्ध बनेगी और वाणी से कार्याे में एकता आएगी। जब हम सब मिलकर विचार करने में समर्थ होते हैं तो अपने हित और दूसरों के कल्याण के समन्वय का ज्ञान होने लगता है। इस संसार में हर प्रकार के लोग हैं और सब को यह जीवन यात्रा करनी है। विद्वानों, देवों का स्वाभाव रहा है कि साथ चलें, साथ संवाद करें और मिलकर विचार करें क्योंकि ऐसे स्वाभाव वाले लोग दूसरों के हित में अपना हित समझते हैं। समाज में रहने का यह एक मूल मंत्र है और केवल आत्महित न देखकर परहित भी देखना होगा। सृष्टि की यही स्थिति है सह-अस्तित्व का विधान्। केवल विवेकहीन अपने हित और स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हैं।
संगठन में शक्ति को चरितार्थ करावें समाज:
हम सब आपस में मित्र हों। जिस तरह भी मैं देखूं हर एक को मैं अपना मित्र समझूं। यह मंत्र मनुष्य समाज को यह प्रेरणा देता है कि हम मन और मस्तिष्क से एक साथ हों ताकि सामाजिक एकता बनी रहें। जब तक हम समाज में एकता की भावनाएँ रखेंगे हमारा समाज स्वस्थ और प्रगतिशील होगा। धैर्य, आत्म, संयम, प्रेम, आनन्द, सन्तोष इन सब के प्रबंधित, संयमित करने की आवश्यकता है और ऐसा करना अकेले रहकर संभव नहीं है अर्थात् समाज के दूसरे सदस्यों के सहयोग के बिना नहीं कर सकते। कोई भी समाज समृद्ध नहीं हो सकता अगर इसके सदस्य स्वार्थी या ऐसे दोष वाले होंगे जो सहनशीलता की सीमा से बाहर हों। ऐसे समाज को केवल परिवर्तन की आंधी ही बदल सकती है। वेदों के उपदेश का सार है भाईचारा, दूसरों को हानि न पहुँचाना, दया, करूणा, सत्यनिष्ठा, साधुता। सभी दिशाओं में व हर समय भाईचारा और शांति बनी रहे।
सर्वांगीण विकास हेतु चुने अपने गाँव की सरकार
मतदान न केवल नागरिकों को राजनीतिक दलों के लिए मतदान करने में सक्षम बनाता है, बल्कि यह उन्हें नागरिकता के महत्त्व का एहसास करने में भी मदद करता है। पंचायती राज के रूके चुनावों का ऐलान हो चुका है जनता सोच समझकर अपने गाँव के सर्वांगीण विकास हेतु चुने उम्मीदवार… मैं सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, सहायक उपानिरीक्षक-रक्षा सेवाएँ और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी आज इस विषय पर केंद्रित विशेष आलेख पेश कर रहा हूँ आशा है आपको पंसद आएगा। बहुत से लोग यह सोचते हुए वोट नहीं करते कि एक वोट से कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन जैसा कि यह तथ्य है। एक राष्ट्र की राजनीतिक नींव का उपयोग चुनावों के लिए किया जाता है।
मतदान के हमे लाभ-
मतदान एक बुनियादी प्रक्रिया है जो एक देश की सरकारी प्रणाली को बनाती है। यह नागरिकों को अपनी सरकार चुनने में सक्षम बनाता है। यह लोगों को सरकार में अपने प्रतिनिधि चुनने की भी अनुमति देता है। प्रत्येक सरकार का उद्देश्य अपने नागरिकों के लाभ के लिए विभिन्न नीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना है। यह मुद्दों और स्पष्टीकरण के बारे में सरकार से सवाल करने के अधिकार वाले व्यक्ति को भी सक्षम बनाता है।
मतदान एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में एक नागरिक की राय व्यक्त करने का तरीक़ा है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए मतदान महत्त्वपूर्ण है। चुनाव के दिन, मतदाताओं के पास निम्नलिखित पद के लिए सरकार में अपने प्रतिनिधियों को चुनने की क्षमता होती है और वे सुरक्षा मुद्दों जैसे उपायों पर भी निर्णय ले सकते हैं जो विकास परियोजनाओं और विभिन्न प्रगति के लिए धन उधार लेने के लिए सरकारी प्राधिकरण को स्वीकार करते हैं। इसके अलावा, कुछ मामलों में, मतदाताओं द्वारा सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।
मतदान करना है अपना अधिकार-
मतदान का अधिकार सामाजिक जागरूकता को सक्रिय करता है क्योंकि यह राजनीतिक सहयोग को सशक्त बनाता है। नागरिक राजनीतिक प्रतिनिधियों और विधायिका की प्रगति का पालन कर सकते हैं। यह सुसंगत प्रक्रिया सामान्य लोगों को निम्नलिखित विकल्पों के पक्ष में मतदान करने के लिए शिक्षित विकल्पों पर समझौता करने में सक्षम बनाती है। साथ ही, संपूर्ण राष्ट्र के अवलोकन के दौरान विधायिका आम तौर पर मनमाने ढंग से कार्य नहीं कर सकती है। प्रत्येक वयस्क को वोट देने का अधिकार दिया जाता है, भले ही वह सेक्स, वर्ग, पेशा और उसके आगे हो। यह एकरूपता और अनुरूपता का प्रतिनिधि है।
यह एक मौलिक अधिकार है जिसमें सभी नागरिकों को यह चुनने का अवसर मिलता है कि कौन उनका प्रतिनिधित्व करता है। हर पार्टी जो किसी भी चुनाव में प्रतिस्पर्धा कर रही है, अपने लोगों के लिए विभिन्न लाभों और सामाजिक सुधारों की घोषणा करती है। इनमें से कुछ राजनीतिक दल अपने शुरुआती सुधारों के साथ धोखा दे सकते हैं, या भ्रष्टाचार की मंशा हो सकती है। यह नागरिक की जिम्मेदारी और कौशल है जो यह तय करता है कि कौन-सी सरकार चुनी गई है। अपने देश के नागरिक और अपने समाज के एक व्यक्ति के रूप में मतदान करने का अधिकार, लाभ और दायित्व है। व्यक्तियों का मानना है कि उनके वोट से फ़र्क़ नहीं पड़ता है, बल्कि वोट दूरस्थ मौद्रिक और सामाजिक व्यवस्था को आकार दे सकते हैं।
हमें मतदान ज़रूर चाहिए-
जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने वास्तव में अपना वोट डाला, बहुत से लोग वापस बैठते हैं और मतदान के दिन आराम करते हैं और अन्य को विशेष उम्मीदवारों के लिए मतदान में शामिल किया जाता है। शहर के जीवन की हलचल के बीच मतदान का महत्त्व खो जाता है।
जबकि हर कोई इस और उस के बारे में जागरूक है और शिकायत करता है और सुझाव देता है कि सरकार को इसे बदलना चाहिए और चुनाव आते हैं और आधी आबादी पर ध्यान दिए बिना चले जाते हैं। इसका मतलब है कि करीब आधी आबादी अपने मत के अधिकार का प्रयोग नहीं करती है।
आजादी के इतने वर्षों के बाद, भारत ने ख़ुद पर नियंत्रण और व्यवस्था नहीं पायी है। दोष दोनों नेताओं और लोगों के साथ है। लोग देश की भलाई के बजाय धार्मिक विश्वासों से प्रेरित हैं। हमें उस परंपरा को चुनना चाहिए, जो भारतीय परंपरा को बरकरार रखते हुए देश को आगे बढ़ाती है। लेकिन राजनीति गरीबों के उत्थान, वृद्धों की शिक्षा, पानी, पर्यावरण की रक्षा, कृषि, सड़कों, योजनाबद्ध शहरी विकास, इत्यादि के विकास पर अधिक ध्यान देने के बजाय तुच्छ मामलों में घायल हो गई है।
वोट देना हमारा अधिकार है-
एक लोकतांत्रिक देश के रूप में, भारत चुनाव की नींव पर बना है। हमारी संसद और विधानसभाएँ जनता के द्वारा, लोगों के लिए और जनता के लिए हैं। मतदान एक संवैधानिक अधिकार है जिसका हमें विशेषाधिकार प्राप्त है। हम इसे मान लेते हैं, लेकिन संविधान ने हमें चुनाव का अधिकार दिया है और यह परिवर्तन करने का अधिकार है।
आपका मत परिवर्तन के कारक:
आपका वोट बदलाव लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि आप मौजूदा सरकार से नाखुश हैं, तो आप बेहतर वोट कर सकते हैं। वोटिंग के परिणामस्वरुप एक ही पार्टी दूसरे पाँच साल तक शासन नहीं कर सकी। दिन के अंत में, यदि देश एक बुरी सरकार के साथ फंस गया है, तो यह लोगों को ग़लत मतदान के लिए या बिल्कुल भी मतदान नहीं करने के लिए दोषी ठहराता है।
आपका वोट मायने रखता है-
हर वोट मायने रखता है। हालांकि ऐसा लगता है कि वोट देने के लिए लोगों का एक अंतहीन समुद्र है, हर वोट मायने रखता है। जब राष्ट्रीय दृष्टिकोण “मेरे वोट में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता” सोच से बदल जाता है, तो संख्या में वृद्धि होती है और मतदान करने वाले लोगों की भीड़ में फ़र्क़ पड़ेगा। जिम्मेदारी हर व्यक्ति पर है।
श्री हरि विष्णु पूजन
श्री हरि विष्णु पूजन के साथ मलमास, अधिक मास, पुरुषोत्तम मास का करें आगाज
पुरूषोत्तम मास या अधिक मास का आगाज हो चुका है यह सभी के लिए मंगलमय हो ऐसी कामनाएँ। शुद्ध रूप से अमावस्या समाप्ति के बाद प्रायः पितृविसर्जन के दूसरे दिन से अश्विन शुक्ल पक्ष नवरात्र का शुभागमनं होता है। पर इस वर्ष अधिक मास लगने के कारण ऐसा नहीं है। मैं सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी आज अधिक मास यानी पुरूषोत्तम महीने पर आलेख पेश कर रहा हूँ आशा है आपको पंसद आएगा। प्रत्येक तीन साल के अंतराल पर एक बार आने वाले मास को अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।
इस आसोज यानी आश्विन महीना अधिक मास-
इस वर्ष अधिक मास १८ सितंबर शुक्रवार से प्रारंभ होकर १६ अक्तूबर, शुक्रवार तक रहेगा। यह मास भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। इसलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना का फल दस गुना अधिक मिलता है। हिन्दू पंचांग का निर्माण सूर्य-चंद्र की चाल पर निर्धारित है। फलतः मलमास या अधिक मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से सम्बंधित है। सूर्य वर्ष ३६५ दिन और करीब ६ घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष ३५४ दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच ११ दिनों का अंतर होता है और यही अंतर तीन साल में एक महीने के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है व इसी को मलमास कहा जाता है।
अधिक मास के स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु-
अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। शास्त्रों में इस मास में भगवान विष्णु का पूजन कई गुना फलदाई बताया गया है। इस मास में भगवान विष्णु की आराधना, पुरुष सूक्त का पाठ, विष्णु सहस्रनाम का पाठ, शिवार्चन, शिवार्पण, रुद्राभिषेक आदि वैदिक क्रियाओं के संपादन से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है और दैहिक दैविक भौतिक ताप से मुक्ति मिलती है।
पुरुषोत्तम मास में वर्जित कार्य-
सामान्यतः अधिक मास की अवधि-अवधि में समस्त शुभ कार्य त्याज्य हैं। तिलकोत्सव, विवाहोत्सव, मुंडन, गृहारंभ, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण आदि का क्रय करना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, वृहद अनुष्ठान का शुभारंभ, अष्टाकादि श्राद्ध, कुआं, तालाब का खनन आदि का त्याग करना चाहिए।
इस मास में वे कार्य जो वर्जित नहीं हैं-
इस माह में विशेष कर रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म सम्बंधी कर्म, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं। इस माह में यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है। इस माह में व्रत, दान, जप करने का अवश्य फल प्राप्त होता है।
मातृशक्ति माँ तभी प्रसन्न होगी जब हम नारी शक्ति का सम्मान करेंगे
अभी मातृशक्ति की पूजा-अर्चना, आराधना-उपासना का नौ दिन का पर्व नवरात्रि चल रहा है। भारत की भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का बहुत बड़ा महत्त्व व योगदान रहा है। नारी जाति आज भारत जैसे मातृभूमि गौरवशाली पुरूष प्रधान देश में अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही है यह अत्याचार उत्पीड़न शिकार है। मैं सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, सहायक उपानिरीक्षक-रक्षा सेवाएँ और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी आज नवरात्रि के मौके पर नारी शक्ति सम्मान दें तभी माँ प्रसन्न होगी इसी विषय पर केंद्रित विशेष आलेख पेश कर रहा हूँ। आशा है आप इन्हे पंसद करेंगे।
इसके कुछ महीने बाद वैभव की देवी लक्ष्मी मैय्या की दीपावली आएगी। फिर वसंत पंचमी को हम सरस्वती मैया का पूजन करेंगे। यह सनातन से करते आ रहे हैं और आगे भी इसी उत्साह और पवित्रता के साथ करते जाएंगे। दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती यही तीन नाम हैं जो हम लोग अपनी बच्चियों का सबसे ज़्यादा रखते हैं। नए ज़माने में इन नामों के पर्यायवाची ढूँढ़ के रखते हैं। एक शक्ति की देवी, मधुकैटभविध्वंसिनी, महिषासुरमर्दनी, रूप, यश, शक्तिदायनी। एक है ऐश्वर्य, वैभव की देवी-गरीबों का छप्पर फाड़कर धनधान्य से भर देने वाली। एक ज्ञान, मेधा बुद्धि, चातुर्य की अधिष्ठात्री। वेद, पुराण, कथाओं में अद्भुत बखान है इन देवियों का। कथाओं में तो ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों को अपनी अंगुलियों में नचाए रखती हैं। ये कहानियाँ युगों से चलती चली आ रही हैं। जिस देश में मातृशक्ति की इतनी महत्ता रही हो उस देश को तो कायदे से स्वर्ग होना चाहिए। महिलाओं की स्थिति हर दृष्टि से विश्व में सर्वोपरि होनी चाहिए। पर है क्या…?
आज दुनिया के प्रायः समस्त समर्थ देशों ने पर्यटन पर जाने वाली महिला नागरिकों को यह एडवायजरी जारी कर निर्देशित कर रखा है कि यदि वे भारत जाएँ तो ज़रा संभल कर अपनी यात्रा करें। आज बढ़ता महिला उत्पीड़न, अत्याचार महिला हिसां के साथ बढ़ती ज्यादती की घटनाओं से विश्व में हमारी ख्याति महिलाओं पर बुरी नज़र रखने वालों की है। मतलब वे हमें अव्वल दर्जे के दुष्कर्मी मानते हैं। कब क्या घटित हो जाए भगवान ही जाने। हालात तो ऐसे हो गए हैं कि जो भगवान के करीब दिखते हैं, वे भी ऐसी घटिया हरकतों को अंजाम देने में लगे हैं। जेल में गुरमीत राम रहीम की चर्बी अभी तक अच्छे से पिघल भी नहीं पाई थी कि फलाहारी बाबा, आसाराम जैसे ढोंगी धर्म के नाम ग़लत करने वाले आ गए वे भी नारी उद्धार करते पकड़े गए. कई बाबा जेल में हैं। अगर ऐसी जांच मुहिम चले तो नब्बे फीसदी जेल पहुँच ही जाएँ।
नारी, जिसे शक्ति की प्रतीक माना गया है, वह इतनी निर्बल और बेबस व लाचार क्यों? इतने तो जानवर भी बेबस नहीं हैं। अभी भी स्त्रीधन, भोग की वस्तु समझी जाती है। मधुकैटभ, महिषासुर, गली-गली, सड़क-सड़क, दफ्तर-दफ्तर, बस, ट्रेन, हवाई जहाज़ हर जगह अपने शिकार के लिए मौजूद है। इन राक्षसों की माटी की प्रतिमा को शेरों से नुचवाइए या त्रिशूल से छेदिए। परंतु असली तो आप देख सकते है कि सड़क पर घूम रहे हैं साथ ही मठ मंदिरों, आश्रमों में घात लगाए बैठे हैं कि कब शिकार पकड़ में आए। यह नर राक्षस बडे़ दांत, नाखून और सींग वाले नहीं बल्कि रेशमी अंग वस्त्रम से सुसज्जित है… मेरी माताओं बहनों बचकर कहाँ जाइएगा। आप ऐसे राक्षसों से हरपल सावधान सतर्क रहने के साथ ऐसा कुछ दिखे तो बेझिझक कानून का सहारा लें।
आइए! शुरुआत ही कुछ ऐसी है कि अंकुरण के साथ ही मशीन से पता लगाया पेट में है…गर्भ में पल रही है… वहीं मार दो। सुपारी लेने के लिए सफेद कोट पहने वाले खड़े हैं जिसे जनता भगवान मानते है। अब कौन भगवान है यहाँ जो नृसिंह की तरह ऑपरेशन थियेटर फाड़ के प्रकट हो जाए और प्रह्लाद की तरह बचा ले उस नन्ही अजन्मी बच्ची, कन्या को… ज़ो बच भी गई उनमें न जाने कितनी दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती नाम रखकर सम्बोधित की जाने वाली होंगी। उनके पीछे बचपन से न जाने कितने मधुकैटभ पड़े होंगे। कितने ढोंगी हैं हम। दुर्गा कोख में वध्य। राक्षस सड़क पर आजाद है। यही चल रहा है, यही चलेगा। ये कोई नई बात, यह नया ज्ञान आदि नहीं है। इन सबके बावजूद …फिर आज हम जयकारा लगाते जाइए बोलिए माँ जगदंबा, माँ भवानी, मां दुर्गा मैय्या की जय… जय हो। हर साल नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट जारी होती है। प्रदेशों में होड़-सी मची रहती है कि महिलाओं के साथ अत्याचार उत्पीड़न का बढ़ना गहरी चिंता का विषय है।
हम मातृपूजक लोग कितने ढोंगी हैं। कभी इस बात को तजबीजिए कि मुंह से हर क्षण झरने वाली गाली सबसे ज़्यादा किसके नाम से दी जाती है। क्या ये सच नहीं है कि… माँ और बहन के नाम से? गालियाँ पुरुषवाचक क्यों नहीं? हर क्षण हमारे इर्द गिर्द मातृशक्ति के साथ शाब्दिक व्यभिचार होता है। हम इसे सुनते भर नहीं बल्कि शामिल भी होते हैं। यह व्यभिचार भी एक तरह से भीषण अत्याचार है, लेकिन इसकी रपट कहाँ हो? कौन लिखे? आखिरकार, गुनहगार तो हम सभी हैं।
मातृशक्ति की आराधना उपासना पर्व नवरात्रि में नौ दिन देवी पूजने का अर्थ कहाँ रह जाता है। क्यों करते हैं हम नाहक के ये कर्मकाण्ड। उस बच्ची की वह कविता जो शुरुआत में आपने बांची उससे बड़ी मीमांशा ग्रंथ रच देने पर भी नहीं होगी। चलिए इस नवरात्रि में इन्हीं सब मसलों पर विचार करते हैं। क्योंकि, यह पंडालों में डीजे की धुन पर नाचने व दुर्गा मैय्या की जय बुलाने से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम नारी का आदर सम्मान करें। आइए! इस मातृशक्ति पूजन नवरात्रि पर संकल्प लें कि हम महिला अत्याचार, उत्पीड़न न करेंगे और इन्हे आदर सम्मान देगें।
सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
(सहायक उपानिरीक्षक-रक्षा सेवा व स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी)
निवास:-श्री गर्गवास राजबेरा, बाड़मेर, राजस्थान
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