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प्रथम गुरु (first Teacher)
first Teacher: ऋषि मुनियों का शुभ सतसंगा।
अपने अपने मत सब चंगा।
निराकार माने प्रभु कोई।
एक मत साकार भी होई॥
बहस चलत निकला बहु काला।
उलझ गया था प्रश्न विशाला॥
सब के पास तर्क बहुतेरे।
अभिमानी थे बहुत घनेरे॥
प्रमाण सहित कहते चौपाई।
संस्कृत भाषा पड़े सुनाई॥
देख बहस तब वेद पुनीता।
प्रकट हुए तब लेकर गीता॥
मत झगड़ो आपस में भाई।
स्वयं कृष्ण ने गीता गाई॥
हर शंका का मिले निवारण।
सब मिल करना पाठ परायण।
निराकार साकार सरूपा।
दोनों सत्य ब्रह्म के रूपा॥
जो जिस भाव भजे भगवाना।
वही रूप उसने पहचाना॥
समाधान पाकर ऋषि राई।
चार वेद की करें बड़ाई।
बड़े भाग्य प्रभु दर्शन दींने।
सफल जन्म हमारे कीन्हे॥
भला कीन्ह जो आप पधारे।
ज्ञान दिया अरु भ्रमहि निवारे॥
जग हितार्थ प्रभु तव अवतारा।
मुक्ति मार्ग पाया संसारा॥
प्रथम गुरु शिक्षक कहलाते।
धर्म कर्म व्यवहार बताते॥
ज्ञान भक्ति मानव के कर्मा।
आदि गुरु सिखलाते धर्मा॥
इक्कीस की विदाई
सन इक्कीस कि करें विदाई।
मत आना फिर से तू भाई॥
तूने जग को बहुत रुलाया।
अपने अपनों से बिछुड़ाया॥
आने पर हमने गुण गाए।
रात रात भर जश्न मनाए॥
शुभकामनाएँ अरु बधाई।
वर्ष नाम से ही पहुँचाई॥
बदले में तूने दुख दीन्हा।
दुश्मन मानव को ही चीन्हा॥
नये रूप की ला बीमारी।
हालत पस्ता करी हमारी॥
बड़े भाग्य जो बच पाए है।
खुशियाँ खोकर पछताए है॥
नव वर्ष यह नहीं हमारा।
देखा देखी दिया सहारा॥
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हमारी।
नये साल की खुशियाँ न्यारी॥
व्रत उपवास व पूजन करते।
देवी माँ के शरणन पड़ते॥
जीवन के सारे दुख हरती।
संकट से माँ रक्षा करती॥
नो दिवसी चलता नित पूजन।
हवन यज्ञ अरु मंत्रहि गूँजन॥
वातावरण शुद्ध हो जाता।
रोग किटाणु जी नहीं पाता॥
पिछली गलती न दोहरावे।
ईस्वी सन क्यों जश्न मनावे॥
हनुमान का लंका प्रवेश
लंका निकट गये हनुमाना।
धरा रूप लधु मसक समाना॥
बैठी द्वार राक्षसी एका।
नाम लंकनी रक्षा ठेका॥
देख कहा क्यों छिपके जाता।
चोर पकड़ना मुझको आता॥
मुष्ठ प्रहार किया हनुमाना।
चोट लगी तब जागा ज्ञाना॥
हाथ जोड़ बोली सुन भाई।
ब्रह्मा जी इक कथा बुझाई॥
कपि प्रहार जब सहन न होई।
जानो तब कुल बचे न कोई॥
धन्य भाग्य जो दर्शन दीन्हा।
राम दूत हनुमत हम चीन्हा॥
गुप्त मार्ग सब कह समझाये।
हनुमत से निर्भय वर पाये॥
धर लधु रूप चले हनुमाना।
लंक प्रवेश किया बलवाना॥
देखा लंका का हर कोना।
लंका पति का दिखा बिछौना॥
सीता माता कहीं न पाईं।
सुमरत रामहि आप सहाई॥
तभी एक गृह अद्भुत देखा।
राम नाम का सुंदर लेखा॥
राम राम कपि नाम पुकारा।
जाग विभीषण आये द्वारा॥
विप्र रूप हनुमत को देखा।
कर प्रणाम पूछत कर रेखा॥
प्रकट रूप करते पहचाना।
धन्य भाग्य विभीषणहि जाना॥
वन अशोक वाटिका सुहाता।
राखी वही जानकी माता॥
राजेश कौरव सुमित्र
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
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