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चुनावी तारीख (election date)
इतने दिन सब कुछ शांत था, मानो जाड़े की मध्यरात्रि का सन्नाटा। फिर अचानक तय हो गई पंचायती चुनाव की तारीख (election date) और शांत माहौल में हलचल-सी मच गई। गाँव की गली-गली में चुनावी चर्चा ज़ोर भरने लगी है।
जिसे चुनाव की बारहखड़ी तक का ज्ञान नहीं, वो भी अपने विचार प्रकट करते हुए मिल जायेगें चाय की दुकान पर। उसको मना थोड़े ही कर सकते है। प्रजातंत्र है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, उसको भी अपना मत रखने का अधिकार है, भले ही मत देने मशीन में कोई-सा भी बटन सम्पूर्ण दबाव के साथ दबा कर आ जाये।
हाँ, बटन दबा कर आ गये। अपना मतदान हो गया। अब मत गया किसके पक्ष में है नेमीचंद या नटवरलाल को। इसका कतई भान नहीं है।
“बस बटन दबाया दबाव से।
मतदान हो गया प्रभाव से।”
आपको बता दूं कि चाय की दुकान का चुनावी चर्चा से गहरा नाता है। कड़क चाय की चुस्कियों के साथ कड़क चुनावी चर्चा। एक घूंट चाय अन्दर जाते ही दिमाग़ के सब कपाट खुल जाते हैं। फिर उन्हीं कपाटों के माध्यम से निकलती है चाय की तरह गरमा गरम चुनावी बातें। चाय की दुकान इस लिहाज से भी चुनावी चर्चा के लिए ठीक है कि श्रीमती द्वारा पूर्णबल के साथ फेंके गये बर्तन या बेलन से कनपटी बच जाती है।
श्रीमती भी क्या करे। उनकी भी बाध्यता है यह सब करना वरना पति परमेश्वर पर बर्तन फेंके… ना बाबा ना… पर पति परमेश्वर कहाँ मानने वाले, चुनाव आते ही चार-पांच दोस्तों को बुलाकर आरम्भ कर देते है चुनावी रामायण। दिनभर सुन-सुन के श्रीमती के सिर में दर्द रहने लगा। फिर उन्होंने ढूँढ निकाला बेमिसाल बेलन तरीका। तभी तो आज कल श्रीमान जी के लिए चाय का ठेला ही चुनावी चर्चा का एकमात्र पसंदीदा स्थल बन गया है।
सिर्फ़ चाय की दुकान ही क्यूं, बहुत से ऐसे अन्य स्थल भी है जहाँ लोग ४-५ का दल बनाकर अपना मत प्रकट कर रहे होंगे जैसे
-सब्जी की दुकान
-परचुन की दुकान
-हस्पताल
-बैंक आदि।
कल एक भाईसाहब बैंक में बड़ी-सी रक़म लेने आये लेकिन कतार में उनकी चुनावी रफ़्तार जारी थी। उनका नम्बर आ गया। मैं उनसे दो व्यक्तियों के फासले पर था। मैंने कहा-भाईसाहब पहले अपने पैसे ले लिजिए, फिर बाद में फुरसत से संरपंच के चुनाव की चर्चा करना। वह बोले-संरपंच के चुनाव की चर्चा भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि चुनाव में ख़र्च करने के लिए ही तो पैसे ले रहा हूँ। मैं हतप्रभ हो गया।
लहराती चाल से चलने वाले पियकूराम के चेहरे पर भी लालिमा स्पष्ट दिखने लगी है। चेहरा ख़ुशी से लाल क्यू ना हो, अब तो उनकी बल्ले-बल्ले होने वाली है। किसी भी उम्मीदवार के सामने हंकात्मकता का भाव प्रकट करने पर उनका शाम का जुगाड होने वाला है।
इनके वोट सभी उम्मीदवारों के लिए तैयार रहते है जैसे अकेले के ५-७ मत पड़ते हो। इनकी स्वयं की निगाह में सही भी है क्योंकि थोड़ी-सी दवा गले से नीचे उतरने पर सामने की वस्तुएँ ५-७ दिखती है तो इनको भी आभास होता है कि अपने भी इतने ही वोट होगें।
आप भी सरपंच बन सकते है बस आपकी तिजोरी कड़कड़ाते कागजों से भरी हो। यह तथ्य मायने नहीं रखते कि आप कितने पढे लिखे हैं। आप कितने ईमानदार है। आप अन्दर कितनी सर्वजनहिताय की भावना रखते हैं। आप के पास नोटों के बंडल व मधु के प्याले है तो आपके साथ काफिले होंगे। चुनावी तारीख आते ही गांवों का पूरा माहौल बदल गया है। अब ज़ोर शोर से खर्चे होगें। कुछ मत दवा-दारू के गुलाम बनके बैठेंगे। मीठालाल अपने स्वाद के मुताबिक व्यंजन ढूँढ रहे होंगे। वाह रे चुनावी तारीख तू कितनी अच्छी है, जो आ गई है। अब बहुत से लोगों के न्यारे-वारे होने वाले हैं।
विजय गोयल
जैसलमेर, राजस्थान
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