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ज्ञान का संचार (communication of knowledge)
communication of knowledge: मैंने तुम्हें उङना सिखाया था पर आज तेरी मुट्ठी में आसमान है,
मैंने तुझे उंगली पकङ चलना सिखाया पर आज तू मेरी पहचान है।
तू मेरी शक्ति बनेगा जब मैं शिथिल हो जाऊंगा,
तुझ जैसे शिष्य को पाकर मैं धन्य हो जाऊंगा।
अध्यापक और अध्येता का बहुत ही सुंदर नाता,
मेरे जाने के बाद तू बन मेरी परिभाषा।
नभ चुम्बी इच्छायें हों और हिमालय-सी हो ख्याति,
अपने दृढ़ संकल्प से तू चीर गगन की छाती।
लक्ष्य ऊँचा रख और सपनों को दे उङान,
अवसर आयेंगे अनगिनत बस ध्येय की ठान।
परिश्रम कर इतना कि स्वंय को खो दे,
क्षितिज पर दृष्टि रख, सफलता को बो दे।
कभी न मुङ कर देख, न थक कर हार मान ले,
आकाश को छू लेगा, तू युद्ध की चौपङ मांड ले।
तू ही राजा, तू ही प्रजा अपना मूल्य जान,
आत्मविश्वास की गठरी बाँध, अपने को पहचान।
वैमनस्य द्वेष को त्याग दे, असफलताओं को भूल,
बाधाओं को ठोकर मार, अमरपक्षी बन झूल।
ह्रदय में रख प्रेम और हो मानवता से पूर्ण,
ईर्षा के झंझानिल से हो जा कोसों दूर।
उल्लसित रह और ईश्वर का धन्यवाद् कर,
धरा पर पाँव जमे हों और नज़र मंज़िल पर।
कस्तूरी का मृग है तू, बढ़ निरंकुश बढ़,
जीत होगी अंततः, तू अपना कर्म कर।
ज्ञान की गंगा बहा तू, बन वृक्ष विराट,
सुविचार बीज़ अंकुरित कर, शीतल छाया बाँट।
प्राण वायु प्रवाहित होगी, हो जीवन ऊर्जावान,
अज्ञानता का तिमिर छँटेगा, कर अक्षय ज्ञान का संचार॥
माँ का प्यार
मैं जानता हूँ इक दिन जब आई तुझे पहली उबकाई थी
मेरी कल्पना मात्र से ही तू हौले से मुस्काई थी
तब से मैं हर पल तुझे महसूस करता था
माँ मुझे महफ़ूज रखेगी रह सब्र मन में था
पल पल तूने मुझे अपना खून पिलाया
मै तंदरुस्त रहूँ इसी चाह में पसीना बहाया
मेरी नन्ही टाँगे जब तेरे अंदर अठखेलियाँ करती।
तेरा अंतर्मन खिल जाता और तू हँसती
मेरे इस सपरश से तू सब भूल जाती थी
सपनों में खोई थक कर सो जाती थी
जब मैंने इस दुनिया में पहली बार आँखे खोली
तेरी ममता का स्रोत फूट पड़ाऔर भर गई झोली
माँ तू मुझे पा कर फूला नहीं समाई थीं
तेरे अथाह दुलार से सभी माँएँ लजाई थी
माँ तेरे आँचल में मेरा संसार समाया था
क्या दुख क्या सुख मुझे समझ नहीं आया था
मुझ पर आने वाली हर विपत्ति के समय के लिए तू मेरी ढाल थी
मेरी छोटी-सी मुसकान पर तेरी हर सांस निसार थी
मैंने जब चलना सीखा तो तू भी मेरी ही चाल चली
तेरी वही पयार की मूरत मेरी आँखों में है बसी
तेरे हाथों से जो निवाला खाया उसका स्वाद आज भी मुझे याद है
तुझ से दूर रह कर छपन भोगना भी बेकार है
अगली बार आऊंगा तो बता क्या खिलायेगी
मै जानता हूँ तू मुझ पर असीम ममता लुटायेगी
पर अब ऐसा लगता है मैं माँ तुझ से मिल न पाऊँ गा
तेरी सूरत नयनों में लिए कूच कर जाऊँगा
दिल में इतना दर्द है माँ कि सहन नहीं कर पा रहा
दृष्टि धुंधला रही है कुछ नज़र नहीं पा रहा
आँखे पूरी खुली है पर तेरी सूरत ओझल हो गई है
मै अब आकाश में उङ चला हूँ मेरी ज़मीन नीचे रह गई है
अब तो माँ मैं तुझको तारों में “सुशांत” नज़र आऊंगा
माँ का प्यार नहीं मरता है सबको यही बताऊंगा
प्रकृति के रंग अनेक
प्रकृति के रंग अनेक हैं, प्रीत का केवल एक।
लाख यत्न कर ले कोई, मिटे नहीं।
इंद्रधनुष है जैसे रंगों का सुखद मिलन,
प्रीत का रंग है कोमल भावनाओं का संगम।
शेष रंग फीके पडें किंचित समय के संग,
प्रीत का रंग है इतना गहरा, न छूटे जीवन पर्यन्त।
आओ आज सब मिलकर खेलें प्रेम के रंग
खुशियों से भर लें झोली और उल्लसित हो अंग प्रत्यंग।
जातिवाद का रंग जो कर रहा आज मानसिकता को पतित
विलक्षण शक्ति वाला मानव हो रहा विक्षिप्त।
राजमद में भूल गया है मनुष्यता का सबक
वेद, कुरान और गुरबाणी से सीख जीवन का सबब।
स्वार्थपरकता का त्याग कर, अहम को छोड़
ईर्ष्या को भूल जा, आत्मीयता का रंग घोल।
प्रीत की जो संचित गागर है उसे इक बार उड़ेल दे
प्रेम की पावन जलधि को सर्वस्व बहा दे
राधा कृष्ण की मनोहर प्रीत को आज याद कर,
खेल सखे सखियों संग, तेरा मन ही मथुरा वृंदावन।
तेरा दिया प्रेम और औदार्य अवश्य ही फल लायेगा
जो कुछ देगा इस ह्रदय से वही लौट कर आयेगा।
सब के पिता दुलारे
तुम बिल्कुल भी नहीं हो इस दुनिया से हारे,
अभी भी तुम हो हम सब के पिता दुलारे,
नाती पोतों के परपिता हो प्यारे प्यारे,
परिवार के लिए तुम हो सदा ही भाग्य के बहते धारे।
इस पहिया कुर्सी पर भले ही समय ने तुम्हें बिठाया,
पर सच है तो यह है कि अब सबसे सुखद समय है आया,
क्या हुआ जो तुम्हारी दृष्टि आज थोड़ी धुंधलाई, अब तक सदा
ही तुमने हाथ पकड़ कर राह दिखाई।
तुमने मेरी उंगली पकड़कर था कल चलना सिखाया,
कभी भी उऋण न हो पाऊंगा जो तुम ने मेरे लिए कष्ट उठाया
वृद्धावस्था भार नहीं है बहुत सुंदर है पड़ाव,
वादा है मेरा तुम से, न होगा तुम्हें कोई अभाव।
तुम मत सोचो कि तुम हो अपंग किसी पर निर्भर,
अथक अनवरत चलते रहे थे तुम अब तक,
अब तुम अपनी उड़ान को तनिक-सा विश्राम दो,
तुम्हारी सुश्रुषा में हम सब खड़े हैं, यह मान लो।
तुम ने जो किया, मैं संभवत ही कर पाऊँ,
उस ईश्वर से प्रार्थना है कि अगले जन्म में तुम को ही फिर पाऊँ
तुझे याद है माँ
तुझे याद है माँ जब कुछ साल पहले मैं तेरे घर में आई थी,
तेरी स्वपनिल आँखों में अपनी मूरत देख इतराई थी,
तेरे आँचल की अविरल अमृतधारा में मेरी दुनिया समाई थी,
पर क्या कल्पना थी कि मैं अपना दुर्दांत लिखवा कर लाई थी।
तेरा आँचल छूटा तो घर की भागीरथी ने भिगो दिया,
बहन भाई के स्नेह ने जैसे मुझे अपने में समेट लिया,
पिता की राजकुमारी बन कर सबके दिल पर राज किया,
गुरुओं की वीणा वाणी ने ज्ञान का उपहार दिया।
एक दिन
चहुँओर घना तिमिर था और उद्वेलित मन मेरा था,
मेरे ह्रदय के चारों घटकों में भय का भीषण डेरा था,
क्या बोलूं, क्या देखूं मेरा अंग प्रत्यंग कुचल डाला,
वासना के दानवों ने मन और आत्मा को मसल डाला।
आत्मा पर आघात हुआ था, आँसू भी न निकल पाये,
दुःस्वप्न सोच झेलती रही कि भ्रम हो शायद टूट जाये,
मरते-मरते जीते-जीते एक चलचित्र-सा चल रहा था,
मै तुझ को ढूँढ रही थी माँ पर यम का दानव मुझे छल रहा था।
हवस के यम और यामिनी ने एक शंका चिह्न लगाया है,
क्या मेरी रक्षा करने वाला इस दुनिया में नहीं आया है,
कब तक निर्भयाओं और मनीषाओं को डराओगे,
संभल जाओ नहीं तो मेरी कटी जिव्हा से भस्म हो जाओगे॥
आज गा तू मंगल गान
आज गा तू मंगल गान,
तेरा सपूत सेहरा बाँध के आया
फूलों की है घोड़ी मेरी
तिरंगा बना मेरा हमसाया।
दे विदाई मुस्कुरा कर,
विजय तिलक रख मस्तक पर,
जब भी मुझको याद करेगी
धडकूंगा तेरा दिल बन कर।
नभ के हर तारे में देखना
बारिश की हर बूंद में,
गेहूँ की हर बाली में लहराऊंगा खेत में।
होली के सब रंगों में भी देखना तू मुझे
दीवाली के सब दिये रोशन होंगे मुझसे
जब नन्हें मुन्ने सुकुमार खिलखिला कर हंसेंगे,
दिल थाम कर चूम लेना उन्हें,
ममता के पुष्प बरसेंगे।
न कर रूदन मां, मैं फिर आऊंगा
अगले जन्म में भी तेरा ही बनूंगा बेटा मैं,
फिर आशीष देना तू,
फिर देश के काम आऊंगा।
डॉ. उमा गर्ग
चंडीगढ़
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