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जान से प्यारा कारगिल
छेड़ न हमारा दिल जान से प्यारा कारगिल
माँ कसम ज़िन्दगी तेरी इतिहास कर जायेंगें
देखा जो हमारी ओर ले कर रहेंगें तेरा लाहौर
नक्शे में ढूंढ़ोंगें पाक ऐसा नेक काम कर ज़ायेंगें
छेड़ न हमारा….
खाड़ी से लेकर गुजरात कन्याकुमारी से लेह लद्दाख
एक हैं हमारा मस्तक और दूसरी हमारी आँख
फिर चाहे कैसा मन्दा चौपट करेंगें तेरा धन्धा
तेरे हर इरादे को नाकाम करते ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा…..
दो बार पहले भिड़ चुके हो तुम टैंकों की गोली से
दया खा कर ड़ाल दिये लाहौर कराची झोली में
अबकी बार छेड़ा राग देंगें तुझको सीधा दाग
किसी भी बहाने से फिर नहीं बच पाओगे
छेड़ न हमारा ……
कैसे हैं हमारे जवान देख लिया स्ट्राइक दौरान
भूल जाओगें सारे पैंतरे न रहेगी कोई अज़ान
अबकी बार गर हिमाक़त थोडी दिखायेंगें और ताक़त
तोते तो क्या पूरे घोंसले ही उड़ ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा……
प्रेम भाव रख संग जीवन में भर देंगें उमंग
जीवन भर रहेगी मौज़ न करेगा कोई तंग
ज़रा सी तेरी होशियारी भूल जायेगी सारी य़ारी
ना पाक सोच होते ही तेरी गोद भर ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा. ……
जान से प्यारा कारगिल…..
यह 144 का महा योग…..ज्यों का त्यों……
यह 144 का महा योग…..
आज़ तक समझ नहीं आया……
कहीं भी धारा 144 लगे…..
तो भी कई शख्सियत चार से अधिक एक साथ देखे जा सकते……
अब यह महा कुंभ में……
144 का महा योग भी समझ से परे…….
सन 2000 के कुंभ में भी…..
144 वर्षों बाद ऐसा अद्भुत योग……..
समाचार पत्र व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में…..
बहुत ज़ोर शोर से उल्लेखनीय कवरेज…..
फ़िर 12 साल बाद 2012 में…..
14 दिसम्बर 2012 से 10 मार्च 2013 के दौरान…..
एक बार फ़िर 144 वर्षों बाद……
एक सुखद एहसास लिए बड़ा ही शानदार व अद्भुत योग…….
हर अख़बार में 144 वर्ष बाद विशेष संयोग का विस्तृत वर्णन……
और एक बार……
फ़िर 12 वर्ष पश्चात 2025 में……
13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 के बीच…..
फ़िर से 144 वर्षों बाद…….
बड़ा ही अद्भुत संयोग……
माना कुंभ हर 12 वर्ष बाद……
फ़िर किसी बार कुंभ……
कभी महा कुंभ……
तो कभी कुछ…….
यह 12 वर्ष बाद अर्थात 144 माह के अंतराल का समय तो समझ आता…..
मगर यह 144 वर्ष का महा योग……
ज्यों का त्यों……
ज्योतिषाचार्य कमाल के
कभी भी किसी का अपमान करने की कोशिश मत करना……
बस सरबत के लिए भला करेंगे….
आपका अपना भी हो जायेगा….
य़कीनन यह आपके लालच की लालसा त्याग कर देखोगे…..
बस मन को बड़ी शान्ति सी मिला करती…..
अब अपने इन बुनियादी ढांचे के शूरवीर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व…..
जज़्बात के केंद्र से ख़ेलने का एहसास बड़ा ही संस्कारित आनंद मिलता…..
ज्योतिषाचार्य के सहारे…..
यह ज्योतिषाचार्य……
बड़े गज़ब के ख़िलाड़ी…..
औरों का भविष्य उज्ज्वल करने के साथ साथ……
बस अपने को सुरक्षित रखने का हुऩर बख़ूबी जानते……
कई बार तो ऐसा लगता…..
कि बस यह तो अथाह ज्ञान के समुद्र और हम…..
बस सूखे हुए पत्ते…..
हालातनुसार हर समस्या का समाधान….
बिन कारण कोई भी बेकार समझ लिया करते…..
बस एक दूसरे को भक्तिभाव से समर्पित सोच और भावनात्मक अभिव्यक्ति से……
ऐसा बारीक पीस दिया करते कि बस तरक्की की राह पर उड़ान भरती ज़िन्दगी…..
ज्योतिषाचार्य कमाल के….
बस यही सब कुछ तो…
हालातनुसार हर किसी का जीवन हर तरह के सवाल-जवाब….
उतार-चढ़ाव लिए कई बार निपुणता होते हुए भी…….
परिस्थितिवश…
व्यक्तिगत तौर पर कमज़ोर होना व साधन होते हुए भी….
ख़ुद को अकेला महसूस करना……
सब कुछ उसी परवर-दिग़ार की बदौलत हमारे कर्मोंनुसार….
बस अपनी तरफ से….
मेहनत से काम करते रहना चाहिए…..
बाकी सब कुछ आनी-जानी….
किसी और की तो नहीं…..
पर मेरी सादगी भरी दास्तान शाय़द कुछ….
इन्हीं भावनात्मक अभिव्यक्ति के सहारे…..
इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त कदम रस्ते
कुछ तेज़ कदम राहें
पत्थर की हवेली को
शीशे के घरोंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं
इस मोड़ से जाते……
आँधी की तरह उड़कर
इक राह गुज़रती है
शरमाती हुई कोई
कदमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में
इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है
इस मोड़ से जाते…….
इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रुकती है ना चलती है
ये सोच के बैठी हूँ
इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है
इस मोड़ से जाते……
सही मायने में देखा जाए तो….
बचपन से लेकर आज तक…..
यह ही तो है जीवन….
जीवन शैली चाहे कैसी भी…..
बस यही सब कुछ तो….
परमात्मा भी गज़ब…
परम-पिता परमात्मा की असीम अनुकम्पा से…..
अनुगृहित होते हुए सभी संतुष्ट करने….
बहुत ही मुश्किल…..
जैसे उस परवर-दिग़ार ने ख़ुद को अकेला होते हुए भी….
अपने आप को व्यस्त किया हुआ….
ठीक उसी तरह हम सबको भी भरपूर आशिर्वाद देते हुए……
हमारे कर्मोंनुसार अपार सफलता के परिवार रूपी प्रगतिशील गठबंधन में शामिल कर…..
बस एक पेट नुमा अंधा कुंआ……
गिफ्ट में दे दिया जो बस समयानुसार….
दो रोटी मांगे फिर खाली…..
और व्यक्ति है कि उस दो रोटी के जुगाड़ में….
इतना व्यस्त कि अपने ईमान तक की आहुति दे ड़ाली….
फिर भी कोई संतुष्ट होने की संभावना…..
या ख़्वाहिश दूर तक कहीं नज़र नहीं आती……
उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की कृपा….
महिमा बड़ी ही अपरम्पार और परमात्मा भी गज़ब…..
कज़रारे या कुछ और…
कामय़ाबी के लिए केवल कड़ी मेहनत ही नहीं…..
और भी बहुत कुछ निर्भर करता….
लेकिन जब तपती दोपहरी की मेहनत रंग लाई…..
तो बस बाकी सारे दर्द छूमंतर ….
कई बार कुछ फिल्म के गाने या फिर आम आदमी के तकिया कलाम…..
ऐसे ही सिर चढ़कर बोलते वास्तविक में य़कीन ही नहीं होता……
फिल्म “सिलसिला” का गीत……
रंग बरसे…
हर होली के त्योहार की जान….
“नसीब” फिल्म का गीत…..
चल-चल मेरे भाई….
“बंटी और बबली फिल्म का….
कज़रारे…कज़रारे…..कज़रारे तेरे कारे कारे नयना….
ऐसा सिर चढ़कर बजे कि रेडियो के एक कार्यक्रम के तहत…..
अभी पुरा हुआ कि दूसरे कार्यक्रम पर शुरू……
इसी तरह किसी भी फिल्म के अन्तराल के दौरान…..
पापड़ करारे…..
कुल्फ़ी ठंडी ठार…..
बड़ा ही बाक़माल दिलकश नज़राना….
अब तक याद आ रहा…..
वह अनमोल समय….
कज़रारे या कुछ और…..दिल पर मत लेना…..कज़रारे या कुछ और…
लोहड़ी का पवित्र पर्व
उत्तर भारत का……
विशेष तौर पर पंजाब….हरियाणा…. का…..
सुखद प्रभाव व ख़ुशियों से झोली भर देने वाला त्योहार…..
लोहड़ी का पवित्र पर्व…..
लोहड़ी बहुत ही पवित्र पर्व….
लेकिन यह त्योहार केवल…..
लड़कों के जन्म और उनकी शादी के शुभ अवसर के लिए ही क्यों…..
ब्याह कर तो दूसरे घर से भी “बेटी” ही तो…..
फिर “बेटा बेटा” क्यों…..
“बेटी जी…..बेटी जी” क्यों नहीं…..
“लड़की” पैदा होने पर…..
उतनी “ख़ुशी” क्यों नहीं….
जितनी लड़के होने पर…..
त्योहार तो त्योहार…..
वह भी “ख़ुशी का मौक़ा”……
माना रोने पर आँखों से “आंसू” बहा करते लेकिन
अधिक ख़ुशी होने पर भी वही “आँखें सजल”…..
आंसू तो आंसू ही…..
फ़िर चाहे ख़ुशी के या ग़मी के……
बच्चे तो बच्चे हर घर की “फुलवारी”…..
फिर ऐसा भेद भाव क्यों…..
दोनों ही सृष्टि की संरचना ख़ातिर अहम……
दोनों ही के परिदृश्य में…..
“लोहड़ी का पवित्र पर्व”…..
सुन्दर मुंदरिए……
तेरा कौन विचारा…..
दुल्ला भट्टीवाला…..
दुल्ले दी धी व्याही…..
सेर शक्कर पायी….
कुड़ी दा लाल पताका….
कुड़ी दा सालू पाटा….
सालू कौन समेटे…..
मामे चूरी कुट्टी…..
जिमींदारां लुट्टी….
जमींदार सुधाए….
गिन गिन पोले लाए….
इक पोला घट गया…..
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया
इक पोला होर आया…..
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया….
सिपाही फेर के ले गया…..
सिपाही नूं मारी इट्ट…..
भावें रो ते भावें पिट्ट…..
साहनूं दे लोहड़ी…..
तेरी जीवे जोड़ी…..
साहनूं दे दाणे…..
तेरे जीण न्याणे…..
गुलाबी ठंड
गुलाबी ठंड का हुआ आग़ाज़
मैं परिन्दा और तू बाज़
तेरा यौवन और मेरी जवानी
मिल कर लिख़वा नई कहानी
नयापन लिए कुछ किस्से पुराने
मिलते रहो बस बिना बहाने
मन की बात कह ड़ालते
कुछ नहीं कल तक टालते
दिल अपना तक दे ड़ाला
कोई वहम भी नहीं पाला
दिल सच्चा और प्रीत पराई
कभी न मन को भाई लड़ाई
उन में ही अपनापन पाया
जग में फिर कौन पराया
नये तज़ुर्बे चाहे पुराने साज़
नई सोच से करेंगे आग़ाज़
गुलाबी ठंड का हुआ आग़ाज़
गुलाबी ठंड……
आसमान की उड़ान
हर व्यक्ति अपने जीवन काल में सुकून से ही जीना पसंद करता……
मेहनत की कमाई के ज़रिये आसमान की बुलंदियों को छुने की तमन्ना पूरी करते हुए……
सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर होने का पूरा प्रयत्न किया करता…..
लेकिन फिर भी कई बार किसी को बिना वज़ह ही आसमान में रहने की आदत हुआ करती……
वह यह भूल जाते कि आसमान में उड़ान भरने के बाद…..
हवाई जहाज को भी एक सीमित समय सीमा तक ही आसमान में रहने के बाद धरातल पर ही वापसी करनी पड़ती…..
फिर इंसान की तो क्या कहें….
माना बुलंद होने के लिए आसमान छुना बहुत ही ज़रूरी…….
पर मुस्कुराहट के साथ धरातल पर रह……
आगे बढ़ने की कार्यवाही बहुत ही ज़रूरी व सार्थक आसमान की उड़ान…..
आपका अपना
वीरेन्द्र कौशल
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