यो हरियाणा सै प्रधान
लाडवा (कुरुक्षेत्र) से विधायक नायब सिंह सैनी ने अपने 13 सिपहसालारों के साथ हरियाणा के नए मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। मंत्रियों के विभाग आवंटन फूंक- फूंक कर किए गए है। कोशिश की गई है कि किसी तरह की नाराजगी सामने न आने पाए। प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल है। वे 11वें ऐसे नेता हैं जिन्हें मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। नायब सिंह से पहले मनोहर लाल भाजपा से दो बार मुख्यमंत्री का दायित्व निर्वहन कर चुके हैं।
गुजरात के बाद हरियाणा ऐसा राज्य बना है, जहां भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने का गौरव हासिल हुआ है। वो भी ऐसी स्थिति में जहां प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने की उम्मीद पर काफी चिल्लम पौ मची हुई थी। खैर अब इस पर चर्चा करना वक्त से बेमानी है। भाजपा सत्ता में आ गई है और नायब सिंह ने टीम सहित दायित्व ग्रहण कर लिया है। जरूरत है अब जनता के द्वारा अनमोल गिफ्ट के रूप में दी गई सत्ता के संचालन का।
फिलहाल भाजपा यह कह सकती है कि प्रदेश में किसी प्रकार की एंटी इनकम्बेंसी नहीं थी। जनता ने खुलकर भाजपा का साथ दिया है। पर चुनावों में एंटी इनकम्बेंसी नहीं थी, इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। जब भी कोई पार्टी ज्यादा समय तक सत्ता में रहती है तो उससे खुश होने वाले कम और नाराजगी वाले ज्यादा होते हैं। बदलाव समय की प्रक्रिया है। प्रदेश में भाजपा का यह तीसरा काल है। लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर का कांग्रेस का पूरा फायदा मिला था, पर विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने कुशल प्रबंधन से फिर से सत्ता में लौट आई। अब समय जो एंटी इनकम्बेंसी चुनावों के दौरान दिखाई दी थी, उसे अब पॉजिटिविटी में बदलना है।
चुनावों के समय भाजपा का खुले रूप में सबसे ज्यादा विरोध करने वाला वर्ग कर्मचारियों का हैं। प्रदेश में करीबन पौने तीन लाख सेवारत कर्मचारी हैं। इसमें यदि डेढ़ लाख पेंशनर और मिला दिए जाएं तो संख्या पांच लाख पार हो जाती है। कर्मचारी वर्ग विशेषकर पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाता रहा है। लोक सभा चुनाव में भी कर्मचारी संगठनों ने इसे खूब भुनाया। विधानसभा चुनाव में भी कर्मचारी वर्ग भाजपा से नाखुश दिखा। लोहारू, आदमपुर, रोहतक जैसी सीट बहुत कम अंतर से रही है। इनमें भी कर्मचारी वर्ग का बड़ा रोल है। बैलेट पेपर में भी भाजपा की मत प्रतिशतता पचास फीसदी ही रही है। इस वर्ग को भी अपने साथ जोड़ना आने वाले समय के लिए नायब सरकार के लिए जरूरी है।
2020-2021 में दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन का असर भी इस चुनाव में खूब दिखा। उस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज, मुकदमे और आंदोलनकारी किसानों की मौत से एक बड़ा वर्ग सत्ताधारी भाजपा से नाराज दिखा। इसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा 5 सीटों पर सिमटकर रह गई। किसान आंदोलन का असर हरियाणा के कई विधानसभा सीटों पर देखने को मिला। भाजपा नेताओं को किसान वर्ग के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा। किसानों को भी अपने साथ जोड़ने के लिए नायब सरकार को सकारात्मक होना पड़ेगा।
चुनाव में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा था है। कांग्रेस के संकल्प पत्र में पार्टी ने सरकार बनने पर 2 लाख पक्की नौकरी का वायदा किया था। वहीं भाजपा ने भी दो लाख युवाओं को पक्की सरकारी नौकरी और पांच लाख युवाओं को अन्य रोजगार के अवसर एवं नेशनल अप्रेंटिशिप प्रमोशन योजना से मासिक स्टाइपेंड देने की घोषणा की हुई है। कांग्रेस नेताओं के पर्ची खर्ची बयानों पर भाजपा बिना पर्ची बिना खर्ची का नारा देकर युवा गर्ग को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही है। शपथ से पूर्व 24 हजार पदों का रिजल्ट निकालकर नायब सरकार ने जबरदस्त सिक्सर मारा है। युवा वर्ग में योग्यता पर नौकरी के विश्वास को नायब सरकार को बनाए रखना होगा।
नायब सरकार से पूर्व दो बार की मनोहर सरकार के समय कुछ बड़े घटनाक्रमों ने पूरे हरियाणा को हिलाया था। नवंबर 2014 में संत रामपाल गिरफ्तारी प्रकरण, फरवरी 2014 में जाट आंदोलन प्रकरण, अगस्त 2017 में डेरामुखी की गिरफ्तारी से उपजी हिंसा और जुलाई 2023 में नूंह हिंसा और तोड़फोड़ की बड़ी घटनाएं कभी भूली जाने वाली नहीं है। ये तो मनोहर लाल की पार्टी कैडर में अच्छी मजबूती रही, अन्यथा इस तरह की एक ही घटना मुख्यमंत्री बदलवा देती। इस तरह को कोई घटना क्रिएट न हो, इसके लिए प्रशासनिक मजबूती पर विशेष ध्यान रखना होगा। क्योंकि सरकार तो अफसर चलाते हैं। अफसरों की ढिलाई बने बनाए काम को बिगाड़ते देर नहीं लगाएगी। ऐसे में नायब सिंह को सबसे पहले अपनी टीम को मजबूत बनाना होगा। पिछली टीम मनोहर टीम थी, अब उसकी जगह नायब टीम बनानी होगी।
हरियाणा के जाट और किसान भाजपा से नाराज रहे हैं। इस फैक्ट से भाजपा पूर्ण रूप से वाकिफ है। ये दोनों वर्ग प्रदेश के बड़े वर्ग हैं। इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। जाट, गैर जाट का ध्रुवीकरण हमेशा फायदा नहीं दे सकता। परिवार पहचान पत्र, प्रॉपर्टी आई डी की त्रुटियों को भी विपक्ष ने खूब भुनाया है। इन्हें सुधारने में हालांकि भाजपा सरकार ने काफी प्रयास भी किए हैं, पर अभी भी ये नाकाफी है।
सबसे आखिरी और प्रमुख ध्यान अपने विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल पर रखना होगा। इसे लेकर भी लोगों में काफी नाराजगी रही। अपने 9 वर्ष से अधिक के कार्यकाल में मनोहरलाल केंद्र के समक्ष ‘ मनोहर ‘ रहने में कामयाब रहे। अब नायब की बारी है, उन्हें मनोहर काल से अलग काम करके दिखाना होगा तभी वो नायब से ‘ नायाब ‘ (उत्कृष्ट) बन पाएंगे। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ है।
सुशील कुमार ‘नवीन’
हिसार
96717 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।
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