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सप्तऋषि
सप्तऋषि: प्राचीन काल से ही भारत भूमि ऋषि-मुनियों की भूमि रही है। राजाओं को शिक्षा-दीक्षा देने के लिए भी ऋषि-मुनियों के आश्रम हुआ करते थे। आकाश में दिखाई देने वाला तारामंडल जिसे हम सप्त ऋषि की संज्ञा भी देते हैं। सप्त ऋषि दो शब्दों सप्त+ऋषि से मिलकर बना है जिसका अर्थ है सात ऋषि। वेदों में इन्हीं सात ऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक माना गया है। वेदों में वर्णित सप्तऋषि के नाम इस प्रकार हैं-वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, ऋषि। मत्स्यपुराण के अनुसार संसार में धर्म की स्थापना करने व सनातन संस्कृति के ज्ञान को बनाए रखने के लिए इन सप्त ऋषियों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मस्तिष्क से हुई थी। इसलिए उन्हें ज्ञान, विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि माना जाता है।
आकाश के तारामंडल में दिखाई देने वाले विशेष प्रकार के तारों को भी सप्तऋषि के नाम से जाना जाता है जो हमें आकाश में पतंग के आकार के या प्रश्नवाचक चिह्न के आकार के रूप दिखाई देते है। इन तारों के नाम प्राचीन काल के सात ऋषियों के नाम पर रखे गए हैं। जो क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस, वाशिष्ठ तथा मारीचि हैं। सप्तर्षि मण्डल शनि मण्डल से एक लाख योजन ऊपर का मंडल है। इसलिए हम कह सकते हैं कि आज भी तारा मंडल में हमारे बीच सप्तऋषि सप्त तारा के रूप में जीवित हैं जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं।
इसे फाल्गुन-चैत्र माह से लेकर श्रावण-भाद्र माह तक आकाश में कुल सात ऋषि तारा समूह के रूप में देखा जा सकता है। भगवान शिव जिन्हें सात ऋषियों का गुरु माना जाता है और उनकी शिक्षा का जिम्मा भगवान शिव को दिया गया। जो भी ज्ञान सप्त ऋषियों को भगवान शिव द्वारा दिया गया उसे ज्ञान का प्रचार प्रसार इन्हीं सप्तर्षियों द्वारा किया गया जिसकी व्याख्या हमारे बहुत से धार्मिक ग्रंथो में वर्णित है। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि हम चालीस दिन तक लगातार इसी सप्तऋषि समूह को-को आकाश में देखते हैं तो हम अपनी मनोकामना की पूर्ति कर सकते हैं। हमारी प्राचीन पुरातन सनातन संस्कृति जो सप्तर्षियों को सात महान ऋषियों के रूप में व तारामंडल के रूप में भी देखती है जिससे आज कलयुग में भी संसार का उद्घार हो रहा है। ऐसे देश में जन्म लेकर और ऐसी संस्कृति को पाकर मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करती हूँ।
माधुरी शर्मा “मधुर”
अंबाला हरियाणा।
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