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हंसना ज़रूरी है
हंसना ज़रूरी है: बात कुछ दिन पहले की है। मैं प्रकाश कुमार खोवाल एवं मेरे शिक्षक साथी लंच में किसी बात पर चर्चा कर ही रहे थे इतने में ही विद्यालय का एक बच्चा अपनी शादी का निमंत्रण मुझे देते हुए कहा कि सर १९ अप्रैल को मेरी शादी है आप सभी को आना है। सभी स्टाफ साथी कार्ड कम को और मेरी तरफ़ देखने लगे। क्योंकि मुझे छोड़कर वह सभी शादीशुदा थे। सभी कहने लगे कि अब तो आपके स्टुडेंट भी इस पवित्र बंधन में बंधने लग गये अब तो समझ जाओ।
आए दिन ५-१० मिनट तो इस मुद्दे पर चर्चा हो ही जाती है। लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है मेरी शादी से इनको क्या फायदा है। कभी-कभी तो वह मुझे शादी के इतने फायदे बताते हैं कि सबसे ज़रूरी काम ही शादी है। शादी नहीं कि जीवन व्यर्थ है। लेकिन जैसे ही मेरे मन में शादी का विचार आता है तो मेरे ही स्टाफ साथियों के इस पवित्र बंधन के जोड़े से कुछ हक़ीक़त मालूम होती है। अभी १५ अप्रैल को नारायण जी शाम के वक़्त मेरे पास आएँ ५ मिनट ही रुके और बोले कि सर मुझे घर जाना है। मैंने कहा आपके तो मेडम है खाना बना देगी आपको तो खाना-खाना ही तो है। तभी उनके मन से हक़ीक़त बात निकली और कहे कि सर मेरी पत्नी मुझे ७ बजे बाद घर के बाहर नहीं निकलने देती। फिर मैंने कहा तो फिर शादी की इतनी जल्दी क्यों थी आपको तो वह बोले मेरे मित्रो ने कहा शादी कर लो ज़िन्दगी में सुकून मिल जाएगा। लेकिन शादी के बाद तो मैं सुकून का नाम ही भूल गया और मेरे ससुर ने तो बोला कि मेरी बेटी गाय है। ऐसा बोलकर शेरनी साथ कर दी। नारायण जी की यह बात सुनकर तभी मेरा मूड वापस बदल गया शादी से अच्छी तो यही ज़िन्दगी है। कम से कम नारायण जी से तो खुश हूँ।
कभी-कभी हमारे विद्यालय के वरिष्ठ साथी नाना लाल जी बोलते आज मैं सुबह ४ बजे उठकर भैंस का दूध निकालता हूँ, चारा डालता हूँ। कभी-कभी तो हद ही हो जाती है उनके कपड़े भी मुझे धोने पड़ते हैं। एक दिन तो नानालाल जी ने कहा कि मेरी पत्नी के पास ४० साड़ियाँ है और मेरे पास ३ जोड़ी ड्रेस है और यह स्थिति तब है जब मैं कमा रहा हूँ। यदि वह कमाती तो मुझे तो दो कपड़े भी नसीब नहीं होते। यह सुनकर मुझे तो शादी से नफ़रत हो गई। लेकिन आजकल राजेश जी, तिलक जी और हमारी पीईईओ मेम भी फ्री समय विशेष तौर से लंच में मेरी शादी की बात करते रहते हैं। पता नहीं मुझे किस धर्म संकट में डालना चाह रहे है।
लेकिन दो दिन पहले ही मेडम के सर रोशन जी मेरी दुकान पर आएँ। तो मैंने कहा सर आजकल कहा रहते हो आते ही नहीं तो बोले सर घर पर काम ही बहुत रहता है। मैंने कहा ऐसे सारे दिन ही क्या करते हो। रोशन जी बोले सर मैं सुबह ४.३० बजे उठता हूँ। चाय बनाता हूँ। इतना सुनते ही मैंने कहा चाय आप बनाते हो। तो उन्होंने कहा अब तो बनाते-बनाते आदत हो गई। उनको चाय बनाकर बिस्तर पर देता हूँ। तब जाकर वह चाय पीकर ख़ुद तो विद्यालय के लिए तैयार होने लगती है और मुझे ही खाना बनाना पड़ता है। कभी-कभी तो उनको विद्यालय भी छोड़ कर आता हूँ फिर मैं विद्यालय जाता हूँ। पता ही नहीं चलता कब रात हो गई कब दिन हो जाता है सारे दिन व्यस्त रहता हूँ। इसलिए मेरा मन कम होता है कि अपन भी शादी करें।
लेकिन कभी-कभी राजेश जी कहते है प्रकाश जी सभी पत्नियाँ एक जैसी नहीं होती है। क्या पता आप वाली अच्छी निकल जाए तो मैंने सोचा कि शायद सही कह रहे होंगे तो मैंने सोचा अब जल्द ही कर लेते हैं। तभी एक दिन मैं नारायण जी के घर की तरफ़ जा रहा था मैं घर के बाहर ही था कि खिड़की से मुझे उनकी पत्नी की आवाज़ सुनाई दी वह अपने कुते से बड़े प्यार से बोल रही थी “सो स्वीट बेबी, नाऊ स्लीपिंग” मैंने सोचा कि यह तो नारायण जी की पत्नी तो नारायण जी से बहुत प्रेम करती है। नारायण जी मुझसे झूठ बोल रहे थे लेकिन शादी करने का यह तो फायदा है। मैं अंदर गया तो-तो नारायण जी कमरे के दरवाजे के पास खड़े थे और मन ही मन सोच रहे थे काश मैं कुत्ता ही होता। ऐसे आए दिन विवाहित बंधन में बंधे हुए जोड़े अक्सर अपनी हक़ीक़त बयाँ कर ही देते हैं।
अभी कुछ दिन तक शादी से दूर ही रहना है। जब तक कोई सफल जोड़े के दर्शन न हो।
कहानी कार प्रकाश कुमार खोवाल पुरोहित का बास सीकर (राज़)
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