
साहित्यिक आलोचना के गुण-दोष
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हरियाणा की संस्कृति में लावणी
हरियाणा की संस्कृति में लावणी : मनजीत सिंह
आजकल हरियाणा के हर कोने में गेहूँ की कटाई जोरों शोरों से चली हुई है यह भी एक तरह से संस्कृति का हिस्सा है जब गाँव के किसान खेतों में लावणी करने के लिए जाते हैं तो उससे पहले वह बहुत सारे काम करते हैं जैसे लोहार से अपनी दरांती में धार लगवाना, कुम्हार से नया मिट्टी का बर्तन खरीदना मटका इत्यादि इसके साथ-साथ जब वह खेत में जाते हैं तो एक जलता हुआ उपला भी साथ में लेकर जाते हैं ताकि उन्होंने चाय बनाने में परेशानी ना हो किसान अपने खेत में दंराती चलाने से पहले चारों तरफ़ खेत में घूमता है जहाँ पर उसने पके हुए गेहूँ नज़र आते हैं उस तरफ़ से वह कटाई शुरू करता है।
ताकि धीरे-धीरे वह बाक़ी खेत के गेहूँ भी सूरज की धूप से जल्दी पक जाए इसलिए वह पके हुए गेहूँ की तरफ़ से पहले कटाई शुरू करते हैं और गेहूँ के बीच-बीच में सरसों की भी एक लाइन बनी होती है जोकि पूरे खेत में छह या सात पंक्तियाँ होती हैं। परिवार के लगभग सभी सदस्य खेतों में लावणी करने के लिए पहुँच जाते हैं घर में भी तीन चार सदस्य बच जाते हैं जो घर में पशुओं का रसोई का काम देखते हैं। पुरूष अगर खेत में पानी लेकर आता है तो वह नज़दीक के नलकूप, तालाब या कुएँ से पानी भरकर मटका अपने खोए पर रखते हुए लेकर आता है। उनमें से कुछ सदस्य तो घर पर रह जाते हैं पर कुछ सदस्य जवारा लेकर खेत में जाते हैं जवारे में महिलाएँ लस्सी की बिरौली, सिलबट्टे से पिसी लाल मिर्च, हरी सब्जी, प्याज, गुड़ और चाय बनाने के लिए पतीला या देगची, चायपत्ती, चीनी या गुड़ लेकर जाते हैं।
जब जवारा को किसी पेड़ की ठंडी छांव में रखते हुए सभी लावणीकर्ता को आवाज़ देकर उसी पेड़ के नीचे बुला लिया जाता है। फिर सब मिलकर कलेवा करते हैं या यूं कहें कि सुबह का नाश्ता करते हैं। उसके बाद सभी लावणीकर्ता जहाँ से आते हैं वहीं जाकर फिर कटाई शुरू कर देते हैं इस प्रक्रिया को पांथ कहा जाता है। अपने सामने से पांच छह फुट की चौड़ाई लेकर सभी गेहूँ की कटाई करते हैं। फिर जवारा लेकर आने वाली कहती हैं कि कया करना है मुझे ज़रा बताना सभी सलाह मशविरा करके उसको गेहूँ की पूळी बनाने का काम दिया जाता है यह काम हरियाणा में खादर के क्षेत्र, बांगर के क्षेत्र तथा बागड़ी इलाकों में भरोटे या गट्ठर बनाने पड़ते हैं। खेतों का मालिक गट्ठर बाँधने के लिए पराली से बणे जूण कटाई करने वालों को देता है।

लावणी करने वालों के अगर घर में कोई छोटा बच्चा है तो उस को छायादार पेड़ के नीचे उसका पलना घाल देते जिससे वह खेतों की ठंडी हवा से सो जाता है। पांच सात साल के बच्चें भी खेत में काम करवाते हैं वह पांथ में कटाई करने वाले सदस्यों को पानी पिलाने का काम दिया जाता है। कभी-कभी वह खेत के अंदर बर्तन लाता है अपने से छोटे की देखभाल करता है। बीच-बीच में वह खेलता रहता है कोई पल्ली बिछाकर बर्तनों को पल्ली पर पटक कर खेलता रहता है। दोपहर को लगभग एक बजे के आसपास वह दोपहर का भोजन करते हैं फिर दो तीन घंटे तक आराम करते हैं पुरुष होक्टी भर कर गुड़-गुड़ करता हो कोई बीड़ी का सेवन करता है। परन्तु घर की औरतें तब भी काम पर लगी रहती है। वह सबके जूठे बर्तन साफ़ करती हैं।
तीन बजे के आसपास वह सब उठ जाते हैं फिर वही औरतें खेत में छोटा-सा गड्ढा खोद कर चुल्हा बनाकर सूखे सरसों के ढांसरो में आग जलाकर चाय बनाने का काम कर रही हैं फिर सभी चाय का आनन्द ले कर सब जहाँ काम छोड़कर आए थे वहीं से दोबारा काम शुरू कर देते हैं। फिर शाम घर आ जाते हैं यह सिलसिला जारी रहता है। कटाई पूरी होने के बाद बंधी हुई पुळी या गद्दा को खेत के बीच में इकट्ठा कर दिया जाता है गट्ठर को जिस दिन गेहूँ निकालने का काम होता है उस सभी गट्ठर को उठा-उठा कर थ्रेसर या हिडिंबा तक लगातार डाले जाते जब उस खेत के गट्ठर समाप्त हो जायें। शाम को जब गेहूँ निकाल कर घर में लाते हैं तो सभी पड़ोस के बच्चें ट्राली को खाली कर देते हैं। फिर बच्चों को थोड़ा-थोड़ा गेहूँ देकर भेज देते हैं। सभी बच्चे दुकान पर जाकर खाने की वस्तु लेते हैं।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र
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हा गुरु जी हरियाणा का यही संस्कृति हैं। आप ने बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है।