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नव वर्ष
नव वर्ष
नई कोपलें निकल रही है
तरुओं की हर डाली डाली
रंग बसंती ओढ़ चुनरी
वसुधा निखरी ख़ूब निराली।
विक्रम संवत बदल रहा है
आओ हम नववर्ष मनाएँ
नव ऊर्जा नव उमंग मन में
नव देवी का नव पर्व मनाएँ।
नववर्ष सजाकर आंचल में
नव कलियाँ मुस्काई आंगन में
लिए हाथ में सजी थालियाँ
अभिनंदन करती प्रांगण में।
पाश्चात्य संस्कृति का कोलाहल
नहीं कल्पना कभी हमारी
नव सर्जन नव संकल्पों से
नव शक्ति ही पूज्य हमारी।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को
अपना नववर्ष मनाते हैं
उत्कर्ष नया शुभ मंगल हो
आशा के दीप जलाते हैं।
अविनाशी है जय श्री राम
जन में राम, मन में राम
तन के रोम-रोम में राम
जल में राम, थल में राम
पृथ्वी के कण-कण में राम
जो है सब के, घट के वासी
अविनाशी है जय श्री राम
पतित पावन जय सियाराम।
त्याग समर्पण अवध दुलारे
दया प्रेम करुणा के सागर
पितृ भक्ति के उज्ज्वल नायक
भ्रातृ प्रेम की अमृत गागर
राजीव लोचन, कौशल्या सुत
दशरथ नंदन है पुरुषोत्तम
अविनाशी है जय श्री राम
पतित पावन जय सियाराम।
गुरु आज्ञा का पालन करने
वन को गए, लिए धनु बाण
निशिचर सारे मार गिराये
बचा लिए ऋषि मुनि के प्राण
खींच प्रत्यंचा शिव धनुष तोड़ा
परशुराम को किया प्रणाम
अविनाशी है जय श्री राम
पतित पावन जय सियाराम।
पाहन बनी थी, गौतम नारी
पद रज से श्रीराम ने तारी
वनवासी को सखा बनाया
केवट नौका पार उतारी
राम लखन संग कुटिया आए
झूठे बेर शबरी के खाए
अविनाशी है जय श्री राम
पतित पावन जय सियाराम।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान
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