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मेरी पहली बस यात्रा
मेरी पहली बस यात्रा: अवधेश तिवारी
ये उस समय की बात है, जब मैं पांचवी कक्षा में विशेष योग्यता के साथ पूरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उस समय पाँचवी कक्षा में बोर्ड परीक्षा हुआ करती थी इसलिए मेरी सफलता के विशेष मायने थे। मुझे छात्रवृत्ति मिली और मेरा प्रवेश छठवीं कक्षा में ज़िला मुख्यालय स्थित राजकीय इण्टर कालेज में होना निश्चित हुआ, जो मेरे गाँव से ५८ किमी की दूरी पर है।
परिवार के साथ-साथ पूरे गाँव के लिए गौरव की बात थी, अब मुझे प्रवेश के लिए जाना था। घर पर कोई ऐसा नहीं था जो साथ जा सके। वहाँ कालेज में एक दूर के बड़े भैया पढ़ते थे, उन्होंने घर वालों से कहा कि उसे बस में बैठा दो, मैं यहाँ पर ले लूँगा। निर्धारित तिथि को मैं पहली बार बस में अकेले बैठा और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चला।
खिड़की की ओर देखते हुए बाहर के दृश्य का अवलोकन कर रहा था कि अचानक एक कुत्ता भी बस के साथ दौड़ने लगा, मुझें लगा वह बस से होड़ कर रहा है, उसका जोश, आत्मविश्वास देखने लायक था, मुझे बहुत अच्छा लगा। थोड़ी देर बाद बस एक चौराहे पर रुकी। वहाँ सामान बेचने वाले और कुछ भिखारी बस की खिड़कियों के पास आ गए।
मुझे ये देखकर बहुत दुःख हुआ कि भिखारियों में कई छोटे-छोटे बच्चे भी थे जो पढ़ने की उम्र में भीख माँग रहे थे, उस समय मेरे मन में विचार आया कि जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, इन गरीब बेसहारा बच्चों की मदद करूँगा और इन्हें पढ़ा लिखाकर काबिल बनाऊँगा। यही बात सोचते हुए मुझे नींद आ गई। गन्तव्य स्थल पर पहुँच कर कन्डक्टर ने मुझे जगाया। भैया आ गए थे, उनके साथ मैं कॉलेज सुरक्षित पहुँच गया।
आज मैं प्रतिष्ठित कॉलेज में व्याख्याता पद पर कार्यरत हूँ, अपनी क्षमता के अनुसार गरीबो, मजलूमों के बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास कर रहा हूँ…
डॉ. अवधेश तिवारी “भावुक”
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