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नया साल
नया साल : फिर से शुरू आत होगी
सबकुछ बदलेगा नहीं
सिर्फ तारीख को छोड़ कर
वहीं मस, अले हल होने हैं
जो भी अनसुलझे हैं
उनको सुलझना है
क्योंकि
उलझन हमको अच्छी
नहीं लगती
कुछ खुशियाँ को भी
वहाँ पहुँचना है तुम्हें
जो उनकी बाट देखती हुए
रोने लगे हैं।
इतना काम कर लोगे
तो तुम्हें याद रखेगा
और पुराने साल
कौन याद रखेगा
भूलने में ही भलाई है
ग़ालिब
वैसे तो सभी ने शेर कहे
मगर
आंसूओं को शेर बनाया ग़ालिब ने
और जब्त किया
जो उम्रभर पाया लोगों से
कभी शिकबा नहीं किया
और नहीं शिकायतें
बस जीते गए जिंदगी
और कागज पर उतारते गए
आहे टीसे
खुदा से कोई शिकबा नहीं किया
क्योंकि वह मानते नहीं थे उनको
कभी नबाजे नहीं पढ़ी
क्योकि अल्लाह के
खुद को गुनाहगार समझते थे
और उम्रभर
खुद को उनकी
राह से जुदा रखा ख़ुद को
मगर समझते रहे दुनिया को
दिखाते रहे आईना
देते रहे सच्चे होने का मसबरा
क्योंकि
दुनिया में अच्छाई को
मानने वाले कम थे
और राजा की तारीफ को करने
वाला का मेला था
जो ग़ालिब को बुरा लगता था
घर
कितने दिनों से क़ैद है
घर मे
वो बाहर आना चाहता है
और देखना चाहते हैं
बंद पड़ी सड़क पर
लोगों को गुजरते हुए
क्योंकि रोज़ इक सा
मंजर देखकर
उकता गये है वो
बंद पड़ी दुकान को चलाना चाहते हैं
ताकि कुछ पैसे कमा लिए जाए
ताकि घर के खर्चो को
वहन किया जा सके
जिसको
करते हुए
युवा लोगों को
भी दुविधा हो रही है
और चिन्ता बढ़ रही है
और क्यो न बढ़े
घर चलना है उन्हें
इस मंहगाई में जो
अब और बढ़ती जाएगी
लाकड, उन के खुलते ही
नन्ही बेटी
वो अब छोटी नहीं रही
बहुत बड़ी हो चुकी है
जो बड़ी मुश्किल में
डटकर खड़ी रह सकती है
और दे बढ़ा सकती है
उस भार को
जो इतना है
कि एक अकेला
नहीं उठा सकता
क्योंकि
मंहगाई ने
उसको दुगना
कर दिया है
और जिसको
बांटने के लिए
मजबूत कांधों की
ज़रूरत है
जो वो
बन सकती है
क्योंकि
वो जिम्मेदारी को
बांटना सीख गई है
मीत
मेरे मन के मीत बनो
प्यारा कोई संगीत बनो
जिसे देख-देख दुनिया सीखें
ऐसी कोई प्रीत बनो
मैंने उनकी आंखों में
मरते देखी है खुशियाँ
उन अधरो को मु स्कान
जीवन उनको आसान मिले
जो सड़को पर बैठे हैं
जो हमें खिलाया करते हैं
क्यो उनके बच्चे भुखे है
क्या वह रोटी को रोते हैं
जबाकि उनके कर ही ऐसे ही
जो फसलों को बोते हैं
उनकी खातिर भी
तुम ऐसा करो
वो पा जाएँ
कुछ खुशियाँ
जो सड़को बांटते रहते हैं
क्यो उनके हाथ रीती से
जीवन के ये पल काठिन
ऐसे जीवन क्यो बीते हैं
उन के लिए भी
कभी तुम उपकार भरी रीत बनो
नादान
अब मैं इतना भी नहीं जितना
मेरी माँ समझती है
क्योंकि मेरी नादानियों
को वक़्त अपनी
समझ का तजुर्बा
देकर समझदार
बना दिया है
मगर मेरी मां
अब भी मेरी बातों-में
ढूँढती
ना समझी का कोई पहलू
जिससे वह कह सके
देखो
अभी भी तुम
बडे हुए नहीं हो
बस जरा
कद बड गया है
मगर
अक्ल से कच्चे हो
मेरी नज़र से
देखो बच्चे हो
दुनिया
एक नया तजुर्बा दिया है मुझको उसने
कि कोई बुरा नहीं है क्योंकि
तुमने अच्छाई को दरकिनार रखकर उसकी
सिर्फ बुराई देखी है
और ऐसा देखना भी अच्छा नहीं माना जाता
क्योंकि सारी कि सारी दुनिया बुरी तो नहीं है
अभी कुछ लोग वहाँ है मौजूद
जिससे तराजू का वज़न एक-सा बना है
और बुराई भी तो इतनी बुरी नहीं हैं
कि उसमें कोई अच्छाई
का पहलू ही न हो मौजूद
कभी वक़्त मिले तो ग़ौर करना
और अपना नजारिया बदलने कि कोशिश ज़रूर करना
ताकि वह भी दिख सके जो छुपा हुआ है
साथ
उन्होंने विपत्तियों में भी
दिया साथ अपनों का
और मदद के लिए हमेशा रहे तैयार
चाहे कैसी विपदा हो अपनों पर
सबसे पहले मदद के लिए
हाथ आपका होता था
क्योंकि ऐसे ही तो
कोई दिलों पर राज नहीं करता
देनी होती है कुर्बानियाँ बहुत सी
तब हासिल होता है
जो पाना चाहते हो
लेकिन विवशता तो देखो।
ऐसा व्याक्ति जिसने
आंसू सभी पौंछे वो ही
मरते समय अकेले थे
वो उन्हें भूल चुके थे
जिन्होने उन्हें मज़बूत बनाया
और राजनीति में बेदाग
कैसा रहा जा सकता है
उन्होने ही तो सिखलाया था
ये भारत आपकी महानता को कैसे भूलेगा
आपकी सीख के बिना
कैसे आसमान छू लेगा
ज़िन्दगी
जैसे तुमको चाहत है
वैसे तो नहीं है
क्योंकि ये जिंदगी
किसी के मुताबिक नहीं गुजरती है
कभी आँख में आंसू भर आते हैं
जब हम याद करते हैं
जो बिछड चुके हैं हमसे
और हम भी अब वक्त के साथ
जीने सीख गए है लेकिन कभी कभी
फिर पिछली बातें याद आ ही जाती है
जो दिल के पन्नो से शायद मौजूद थीं
हम उन्हें मिटाना भूल गए थे क्योकि
हमको तेज दौड़ती जिंदगी के साथ चलना था
उसी खातिर पिछला सबकुछ भुलाना पड़ता हे
तभी तो नयापन आता है जो ज़रूरी है
जीने के लिए क्योंकि यादों तो आगे
नहीं पीछे ले जाती है और दे जाती है
ढेर सारे आंसू
ख़ामोशी
वहाँ पर शब्द गूं गे हो चुके थे
क्योकि बात
कहने सुनाने के आगे बढ़ चुकी है
अब बोलना वहाँ बेमानी हो चुका था
क्योकि तलख हो चुकी थी जुबां सारी
नफरतें खा चुकी थी प्यार को
जिसकी बोली मोहब्बत थी
वो आखिरी सांसें गिन रही थी
और मर रहा इक रिश्ता
जो भरोसा कि पतली डोर टिका था
वो डोर कमजोर हो चुकी थी
कभी भी टूट सकती थी
और मर सकता था ज़बान रखने वाला प्यार
लेकिन अब खामोशी ही बोलती है
और सुनते हैं उसको ये जुबां वाले
बेमतलब के लोग
ऐसे लोग अक्सर
चौराहे के नुकक्ड पर
बनी चाय की दुकान पर
मिल ही जाते हैं
किसी को बिना
मांगी सलाह देते हुए
चाहे सामने वाला।
उनकी राय से
सहमत हो
या न हो
वो सारा ग्यान
उस पर उड़लना चाहते हैं
जिसे उनको भी किसी से
यूं ही हासिल हुआ है
करने को उनके पास
केवल यही काम बचा है
और सभी काम उनकी नज़र में
गैरज़रूरी है
पर किसी को
सलाह देने के लिए वो
अपने को भी भूल जाते हैं
कि उन्होंने खाना खाया कि नहीं
तुमको ढूँढने में जियादा
दिक्कत नहीं होगी
वो तुमको मिल जाऐगे
आसानी से
अन्दर देखो
औरों में कमी देखना छोड़ो
पहेले आप
अपने अंदर तो झांको
क्योंकि
आप में भी।
है मौजूद ढेरों खामियाँ
आप भी तो खताएँ करते होंगे
जो आप देखना ही नहीं चाहते
क्योकि
आपको अपनी खामियाँ
रास नहीं आती
और आप औरों
पर हंसते रहते हैं
ताने भी कसते रहते हैं
कभी निकालो कुछ समय
खुद के लिए
और बेहतर बनाओ
खुद को
ताकि
आप से कोई कुछ सीखें
और आप भी
खुद को जान पाओ।
अपनी कमी को भी आप
कभी तो पहचान पाओ
अभिषेक जैन
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