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विधवा पुनर्विवाह
विधवा पुनर्विवाह सदैव ही एक विवादास्पद विषय रहा है, विधवा उस महिला को कहा जाता है जिसके पति की मृत्यु हो चुकी होती है कोई भी महिला अनेक कारणों से विधवा हो सकती है जैसे पति की आकस्मिक दुर्घटना, बीमारी आदि पुराने समय में बाल विवाह का बहुत अधिक प्रचलन था उस कारण भी विधवा महिलाओं की संख्या अधिक देखी जाती थी।
हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी गई थी। विवाह के समय स्त्रियों को यही समझाया जाता है कि “जिस घर डोली में जा रही हो उसे घर से अर्थी उठना ही तुम्हारा परम सौभाग्य है” एक औरत के जीवन के सारे सुख पति से ही जुड़े रहते हैं मुस्कान, श्रृंगार, आभूषण सब पति की ही खातिर होते हैं और मृत्यु के बाद सारे सुख छोड़कर पत्नी को मात्र एक वस्तु के तौर पर ही समाज मान्यता देता है उसकी भावनाओं और संवेदनाओं की कोई भी परवाह नहीं करता वह मात्र एक वस्तु बनकर रह जाती है।
ऐसे भाव हीन समाज में पुनर्विवाह की कल्पना जंगल में एक उपवन तैयार करने जैसा है परंतु यदि ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है हमारे समाज में नारी और पुरुष समानता के बड़े-बड़े दावे समाज में व्याप्त हैं परंतु पुनर्विवाह के विषय में स्त्री और पुरुष में भेद साफ़ दिखाई देता है जहाँ स्त्रियों को विधवा हो जाने पर सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ता है वहीं पुरुष को इस की स्वतंत्रता है।
बहुत से परिवारों में तो पति की मृत्यु के बाद बहू से सम्बंध ख़त्म कर देते हैं क्योंकि अब बेटा ही नहीं है तो बहुत से कैसा नाता इस कारण विधवा महिलाओं को मजबूरी में विधवा आश्रम में रहना पड़ता है जिससे उनका जीवन और कठिन हो जाता है ऐसी परिस्थितियों में महिलाओं में बस नाम मात्र का जीवन शेष रह जाता है वह एक ज़िंदा लाश की तरह जीवन व्यतीत करती हैं। हमारे समाज में महिलाओं को मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उनके जीवन की पूर्ण जिम्मेदारी पिता भाई और पति पर डाल दी जाती है जब तक हम उन्हें अपनी जिम्मेदारी आप संभालने का मौका नहीं देंगे वह अपने आप को कैसे सिद्ध कर सकती हैं। इस प्रकार दूसरों पर निर्भर रहते हुए वह अपनी ज़िन्दगी को अपने ऊपर बोझ समझ लेती हैं और अपना आत्मविश्वास आत्म सम्मान खो देती हैं।
वहीं पुरुषों के साथ कोई भी बंदिश नहीं होती है पुरुष बिना किसी झिझक के पुनर्विवाह कर सकता है उनसे कोई सवाल नहीं करता जहाँ समाज इस तरह के दोहरे मानक को रखता है वहाँ स्त्री समता की मात्र बातें ही होंगी व्यवहार में उसे लाने के लिए हमें प्रथम प्रयास अपने ही द्वारा करना होगा आज के अत्याधुनिक दौर में हम कितनी ही नारी सशक्तिकरण की बात कर ले कितना ही कहे की महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही हैं पर असलियत खोखली है।
हम चाहते हैं कि महिलाएँ लड़कियाँ तरक्क़ी करें शिक्षा के क्षेत्र में नौकरी में पर अब भी आजाद होकर खुश महिलाओं के आंकड़े बहुत ही कम मिलते हैं कहीं बच्चियों की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा दी जाती है तो कहीं उन्हें पढ़ने का मौका ही नहीं मिलता आत्मविश्वास से भरी महिलाओं के आंकड़े उंगलियों पर गिने जा सकते हैं कुछ ऐसे परिवार हैं जहाँ बेटियों को बहनों को बाहर निकलने तक की अनुमति नहीं है ऊंची आवाज़ में बात करना ज़ोर से हंसना अपने मनपसंद कपड़े पहनना सभी पर पाबंदियाँ हैं और पुरुषों को ऊंचा दर्जा दिया जाता है सामाजिक तौर पर तो महिलाओं का सम्मान कम है मगर धार्मिक रूप से महिलाओं को श्रेष्ठ दर्जा प्राप्त है।
विवाह एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें दो प्राणी दो परिवार जीवन पर्यंत के लिए बंध जाते हैं पर हमारे समाज में महिलाओं को मात्र उपभोग की वस्तु मानकर उसका दुराव किया जाता रहा है हमारे देश का सामाजिक एवं आर्थिक विकास भी पुरुष एवं महिलाओं दोनों की आजादी पर बराबर तरीके से निर्भर है जब महिला एवं पुरुष दोनों अपने-अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे देश के विभिन्न कार्यों में भागीदारी करेंगे तभी देश का विकास संभव है केवल पुरुष के प्रबल होने से और महिलाओं को पीछे धकेल देने से विकास भी पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकता है सभी को ऐसे क़दम उठाने होंगे जिससे महिलाओं को बराबरी का हक़ मिले चाहे वह शिक्षा हो नौकरी हो विवाह हो या आत्मसम्मान हो!
जब हम महिलाओं को आत्मसम्मान से परिपूर्ण कर देंगे और उन्हें व्यवहारिक रूप से मान सम्मान और उनका हक़ देंगे। तब विधवा विवाह या अन्य कोई भी सामाजिक बुराई महिलाओं के सामने पहाड़ बनकर कभी नहीं खड़ी होगी आत्मसम्मान से भरी महिला जीवन की हर परिस्थिति में दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ेगी और अपने साथ-साथ समाज के विकास में भी पूर्ण सहयोग करेगी हम सभी को रूढ़िवादिता के खिलाफ एकजुट होकर नारी सशक्तिकरण को प्रत्यक्ष रूप में व्यवहारिक रूप में समाज में स्थान दिलाने के लिए प्रयत्न करने के लिए आगे आना चाहिए।
कमजोर कहाँ तू नारी
तू दुर्गा अवतारी।
शक्ति बिन शिव भी शव है
तू शक्ति अवतारी॥
उल्लास का पर्व खिचड़ी
आनंद उल्लास और प्रेम का प्रतीक है यह खिचड़ी का त्यौहार। खिचड़ी अर्थात मिलाजुला व्यंजन। खिचड़ी के त्यौहार को मकर संक्रांति के पर्व के रूप में जाना जाता है। मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण होकर मकर रेखा से गुजरने के काल में श्रद्धा से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष १३ या १४ जनवरी को मनाया जाता है मकर संक्रांति का सम्बंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है वह दिन १४ जनवरी ही होता है अतः इस दिन मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ हो जाती है, दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फ़सल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी के रूप में यह पर्व मनाया जाता है, वही असम में बिहू के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीक़ा भिन्न है परंतु पकवान एक जैसे हैं दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व पर विशेष महत्त्व रखते हैं गुड़ तिल चूड़ा और गुड़ से बनी मिठाइयाँ इस त्यौहार के मुख्य व्यंजन है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन कर स्नान किया जाता है इसके अलावा तिल गुड़ और खिचड़ी का दान किया जाता है, सुहागन महिलाएँ सुहाग की सामग्री का ध्यान करती हैं। यह त्यौहार मैं स्नान का विशेष महत्त्व है, तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात मकर संक्रांति का दान विशेष महत्त्व रखता है यह पर्व दान का पर्व भी कहा जाता है, ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं।
इस दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्त्व होता है और लोग बेहद आनंद और उल्लास के साथ पतंगबाजी करते हैं विशेष स्थानों पर पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन भी किए जाते हैं। तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन ऋतु परिवर्तन की दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद होता है इन चीजों के सेवन से स्वास्थ्य उत्तम रहता है। तिल और गुड़ के लड्डू आपसी मतभेद को भुलाकर प्रेम व्यवहार को बढ़ाने वाले होते हैं इसीलिए लड्डू देते वक़्त हम कहते हैं “तिल-गुड़ खा और गुड़की नाई मीठा-मीठा बोला”।
मकर संक्रांति के पावन पर्व पर आप सभी से निवेदन है कि आप सभी अपने इष्ट मित्रो को तिल के लड्डू खिलाए और सभी स्नेही जनों सहकर्मियों के स्वास्थ्य की कामना करते हुए मीठा-मीठा बोले मीठी वाणी बहुत से लोगों का नाश कर देती है और मानसिक पीड़ा का अंत कर देती है अतः यह पर्व सभी मिलकर मनाएँ मीठा-मीठा गुड़ खाएँ और मिठास से फैलाएँ।
दीपावली और कोरोना
ज़िन्दगी में जब तक संघर्ष नहीं आता तब तक असल आनंद नहीं आता ऐसा कोई भी नहीं जिसका जीवन बिना संघर्ष के प्रारंभ या पूर्ण हुआ हो। यही संघर्ष हमें सबल और सक्षम बना देते हैं मुश्किलों से बाहर निकलने में हमें सबसे ज़्यादा मदद गुरुजनों और अपने विवेक से ही मिलता है।
वर्तमान समय में हम सभी कोरोना महामारी के संकट से गुजर रहे हैं यह ऐसी बीमारी जिसने आदमी को आदमी से दूर कर दिया ना मिलने को मजबूर कर दिया। कोरोनावायरस के संकट से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा लॉक डाउन कर दिया गया और हम सभी अपने-अपने घरों में क़ैद हो गए उस दौरान उस मुश्किल समय ने हम सभी को कम से कम सीमित वस्तुओं में गुज़ारा करना सिखा दिया और हम सभी एक दूसरे का सम्बल बन सके गरीब दुखिया रो की मदद कर सकें आत्मनिर्भर होकर समाज के लिए कुछ कर सके यह हौसला भी दिया है।
संघर्ष के इस दौर ने हमें सफ़ाई और स्वास्थ्य के प्रति सचेत कर दिया है हम सभी अपनी पुरातन संस्कृति से जुड़ रहे हैं योग आयुर्वेद के द्वारा नए-नए आयामों से भी जुड़ रहे हैं। कोरोना के दौरान आ रहे त्योहारों में हम सभी सादगी पूर्ण ढंग से अपने त्योहारों का आनंद उठा रहे हैं इसी श्रंखला में दीपावली का भी पावन पर्व आने वाला है।
दीपावली का पावन पर्व ५ दिनों तक मनाया जाता है प्रथम दिवस धनतेरस से प्रारंभ होता है इस दिन धन्वंतरी देवता की पूजा कर आरोग्य का आशीष लिया जाता है, नए बर्तन और ज़ेवर खरीदने का भी विधान है। द्वितीय दिवस रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
तृतीय दिवस दीपावली के रूप में मनाया जाता है और माँ लक्ष्मी जी की गणेश जी के साथ पूजा अर्चना की जाती है ऐसी मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के समय छीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी और भगवान को अपना पति स्वीकार किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन श्री राम जी लंका से अयोध्या वापस आए और अमावस्या के दिन ही उनका राजतिलक किया गया था।
इसी ख़ुशी में यह उत्सव मनाया जाता है। लंका की आदिवासी जातियों द्वारा दीपावली को शोक दिवस के रूप में मनाए जाने की प्राचीन परंपरा है। दिवाली के त्यौहार के चतुर्थ दिवस में गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का विधान है और पांचवें दिन हम सभी भाई दूज या यम दुतिया के रूप में मनाते हैं इस दिन भाई की दीर्घायु की कामना के लिए यमुना में स्नान करना श्रेष्ठ कर्म माना जाता हैं।
ऐसी मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन बहन के घर भोजन करने से और बहन के साथ यमुना स्नान करने से बहन से तिलक करवाने से यम के द्वारा अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है। आत्मनिर्भरता की ओर सजग सफल प्रयास करते हुए हम सभी को स्वदेशी उत्पादों के द्वारा ही त्यौहार को सुंदर रूप प्रदान करना चाहिए।
हसरतों की ज़ुबान नहीं होती इसीलिए यह बयाँ नहीं होती।
कभी ख़्वाब बनकर आंखों में सजती हैं
कभी अश्क बनकर आंखों से बहती हैं।
दिखावे की शाम को त्याग दीजिए
सादगी से त्योहारों का आनंद लीजिए।
साधना मिश्रा ‘विंध्य‘
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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