मित्र की मृत्यु
मित्र की मृत्यु: डी.ए.प्रकाश खाण्डे
होली की त्यौहार कुछ ही दिन बचा था, सभी जनसामान्य त्यौहार के लिए बाज़ार से सामाग्रियाँ ले रहे थे। मेरे संस्था के सभी कर्मचारियाँ भी घर जाने की तैयारी में थे, मेरा गाँव विद्यालय से बारह किलोमीटर की दूरी पर है। सुबह जाए तो साम को लौट आते है इसलिए कोई ख़ास तैयारी नहीं किये थे।
विद्यालय आवासीय होने के कारण सरकारी कमरा भी मिला है जिसके देखभाल करने की वज़ह से त्यौहार में घर जाने का विचार नहीं बनाया था। विद्यालय की छुट्टी के बाद बाज़ार गया था, वहाँ मेरे संस्था के वर्मा बाबू मिल गए, उन्हें बताया की आज गाँव जाउगा सुबह आना होगा। वर्मा बाबू सुनकर प्रसन्न हुए और बोले रात में ही लौटना हो तो मैं भी चलूँगा।
दोनों बातचीत करते गाँव पहुँच गए, वर्मा जी घर को चारो तरफ़ देखे और सभी से बात करने के बाद चाय पीकर हम दोनों गाँव के एक मंदिर गए। जहाँ पर मेरे बचपन के मित्र एवं सहपाठी से मुलाक़ात हुआ और वह मुलाक़ात एक याद बनकर ही रह गया। मित्र जब भी मिलता था बहुत खुस और प्रसन्नचित से बात करता था, देखते ही मुझे मंडल कहकर बात करने लगे, थोड़ी-सी मुलाक़ात एक याद बनकर रह गया। बात कम हो हुआ और मैंने गाँव के प्रतिष्ठित और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री महंत जी को पूंछा।
मित्र ने धीरे से बताये की “महंत जी इस समय मंदिर बहुत कम आते हैं, वे घर पर ही मिल जायेगे।” हम श्री महंत जी के घर आगये और समाज के कुछ बाते किये। सुबह परीक्षा थी इसलिए रात में ही लौटकर आगये थे। होली त्यौहार के दो-तीन दिन बाद व्हाट्सएप पर ख़बर आया की किरर घाटी पर बस दुर्घटना पर तीन लोगों की मृत्यु हो गई है। जिसमे वही मित्र का नाम था जिससे मंदिर में मुलाक़ात हुआ था, विश्वास नहीं हो रहा था तो मैंने ख़बर की पुष्टि के लिए छोटे भाई रहीस कुमार को फ़ोन लगाया, उनका विद्यालय बाज़ार से लगा है इसलिए पूरी जानकारी लेकर मुझे बताये की घटना सही है।
मेरे हृदय में पीड़ा और संताप बढ़ता ही गया …अस्पताल पहुँचा, जहा सभी स्वजन मृत शरीर को गाडी में रख चुके थे, मेरी संवेदना की धार उमड़ कर आँखों में छलक पड़ी। आँखों में मित्र का जीवनवृत्त दिखाई देता देने लगा मेरे आँखे तिलमिला उठा की कमरा जाऊँ की गाँव। विचार व्यथा को क्या व्यक्त करूँ; ये मित्र बहुत ही सरल और सच्चे स्वभाव के थे, दुःख दर्द की क्या कथा लिखूं। दसगात्र के दिन गया था-संवेदना गंभीर है, वेदना की धारा बहती जा रही है।
कोरोना संक्रमण के कारण लाकडाउन चल रहा था, विकट परिस्थियों पर सामाजिक क्रियाकलाप सम्पन्न हुआ। पीड़ा पर पीड़ा बढ़ती जा रही है, बच्चे छोटे-छोटे है। मेरे निकट रिश्तेदार भी है जिससे संवेदना को ज़्यादा व्यक्त कर पाने में असमर्थ हूँ। कहते है की “विपत्तियाँ आती है तो अपने सभी दरवाजे बंद करके आती है।” जब भी वह वक़्त याद आता है आँखे भर आती है जिसके साथ बचपन के दिन और कक्षा दस तक की पढ़ाई साथ में किये थे।
डी. ए. प्रकाश खाण्डे (शिक्षक)
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़, अनूपपुर (म.प्र.)
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