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पवित्र रिश्ता (Pavitra Rishta)
पवित्र रिश्ता (Pavitra Rishta)
रक्षा-बन्धन का आया यह त्यौंहार रे
भाई-बहन का झलकें इसमें प्यार रे।
आज प्रफुल्लित है ये सारा जहान रे
पवित्र रिश्तों (Pavitra Rishta) से बंधी यह एक डोर रे॥
यह सभी त्यौहारों में है ऐसा ख़ास रे
यह आता हर वर्ष सावन के मास में।
बचपन का साथ आता सबको याद
राखी बाँधती बहना भाई के हाथ में॥
चुनकर लाती बहनें बाज़ार से राखी
ये रंग-बिरंगी लाल पीली एवं नीली।
थाल-सजाएँ मुंह मिठाई ये खिलाएँ
भाई की कलाई में यह राखी बंधाएँ॥
इस उत्सव का करतें सभी इन्तजार
खुशियाँ मनाते है सभी घर-परिवार।
दूर-दूर से आते गाँव घर अपने भाई
देते बहन को भाई इस दिन उपहार॥
बहना ना रोना
जिस बहना के नहीं कोई भाई
बाँधो राखी वह हमारी कलाई।
बनालो मुझको मुँह बोला भाई
सूनी है हमारी हाथ की कलाई॥
ऐसा बहन तुम मन में न लाना
कि नहीं है हमारे एक भी भाई।
सुरक्षा में खड़ा सीमा पर भाई
दुश्मनों से जो कर रहा लड़ाई॥
डाक, फ़ोन से राखी व मिठाई
भेज दे एक मैसेस अपने भाई।
आ न सकेगा तेरा अपना भाई
खुश रहो बहन दुआ देता भाई॥
मेरी प्यारी व अच्छी-सी बहना
धीरज अपना कभी ना खोना।
अब आँसू कभी ना झलकाना
और कभी भी आप नहीं रोना॥
ईश्वर को अगर मंजूर हुआ तो
सामने तुम्हारे आऐगा ये भाई।
मैं गणपत एक हूँ फ़ौजी भाई
बाँधो राखी बना लो हमें भाई॥
रक्षा बन्धन
यह धागों का है एक ऐसा बन्धन
कहते है सब इसको रक्षा-बन्धन।
अटूट प्रेम बहन-भाई का उत्सव
बहनें लगाती भाई तिलक-चंदन॥
इस पर्व की ऐसी अलग पहचान
सावन मास में आए ये हर साल।
बहनें इस दिन फूले नहीं समाती
सजाके लाती खुशियों का थाल॥
इन कच्चे धागों का यह ऐसा पर्व
बहन-भाईयों पर करते सब गर्व।
सुरक्षा का वचन देता है हर भाई
जब बंध जाती राखी यह कलाई॥
घेवर व गुजिए घर बनाते मिठाई
साथ बैठकर खाते बहनें व भाई।
राखी पर मिलते है सभी परिवार
बुलाते है सब अपनें बेटी-जवाई॥
मनभावन राखी लाती सब बहन
चांद-सितारे-सी चमके ये जहान।
राखी की लाज ये भईया निभाएँ
बहनों को देता उपहार मूल्यवान॥
प्यारा भोलेनाथ को है सावन
महीना यह प्यारा व न्यारा सावन
सभी के मन को सावन है भावन।
सोमवार इसमें है भोले को प्यारा
शिवपूजा आराधना विधान सारा॥
सावन के पहले-आख़री सोमवार
सावन का परम्परा व्रत एवं स्नान।
प्यारा भोले नाथ को भी है सावन
जुलाई-अगस्त में आऐ पर्व पावन॥
मनोकामना पूर्ण करते भोलेबाबा
सोमवार व्रत का महत्त्व है ज्यादा।
दर्शन करते श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग
हिंदू धर्म में इसकी बहुत है गाथा॥
पूर्व दिशा से होती शिव आराधना
और संध्या समय पश्चिम साधना।
धतूरे फूल अर्पित करते भोले को
अतिउत्तम सोमवार शिवउपासना॥
सावन का लहंगा एवं चुनरी खास
चल रही होती है जब यह बरसात।
सावन में लगातें झूलें बाग-बगीचें
सब देवों के भी देव यह भोलेनाथ॥
आषाढ़ के काले बादल
चारों और छाया ये घोर अंधेरा
ये प्रकृति की देखों क्या माया।
आज नीले-नीले आसमान में
घना ही काला ये बादल छाया॥
घड़ड-घड़ड कर बादल गरजे
बादल संग बिजली भी कड़के।
गरज रही आज बदली नभ में
मोर पपीहा भी बोले ये संग में॥
इधर भी गर्जन उधर भी गर्जन
खुश थे मानसून देख सब जन।
वर्षा की बूंदें लगी जब तन पर
झूम उठा सब का यह तन मन॥
नाच रहे थे जैसे खेत खलिहान
पशु पक्षी फ़ूल पत्ते हर इन्सान।
हर जगह छाई आज खुशहाली
खेतों में आऐगी अब हरियाली। ।
मूंग मोठ ज्वार, बाजरा मक्का
ये धान है इससे जीवन सबका।
सलामत रखना ईश्वर सभी को
आषाढ़ में खिलती कलियों का॥
बेटियों को पढ़ने दो
आज बेटियों को सब पढ़ने दो,
और आगे इनको भी बढ़ने दो।
खिलने दो और महकने भी दो,
अब पढ़ाई से वंचित न होने दो॥
इनको बनकर तारें चमकने दो,
परचम इनको अब लहराने दो।
हंसने दो और मुस्कराने भी दो,
अब पढ़ाई से वंचित न होने दो॥
चाहे बेटे हो अथवा बेटियाॅं दो,
अत्याचार नहीं अब होने न दो।
इन्हें ऊॅंची उड़ान अब भरने दो,
अब पढ़ाई से वंचित न होने दो॥
अब पिंजरे में इन्हें ना रहने दो,
आज़ाद पक्षी बनकर उड़ने दो।
झांसी जैसा इतिहास रचाने दो,
अब पढ़ाई से वंचित न होने दो॥
ज्वालामुखी-सा इन्हें बनने दो,
अब अबला से सबला होने दो।
और आत्म-सम्मान से जीने दो,
अब पढ़ाई से वंचित न होने दो॥
अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन
खुशियाँ लेकर आया अब प्यारा नूतन वर्ष,
झूमो-नाचो, गाओ सभी मनाओ यारों हर्ष।
अब बीत गया वह वर्ष बनाया जिसने नर्क,
सुख का हुआ आगमन करो स्वागतम् वर्ष॥
अभिनंदन है अभिनंदन नववर्ष अभिनंदन,
महकें यह सारा जहाँ हम सब करतें वंदन।
बीत गया जो बीत गया न करें कोई मंथन,
ध्यान ईश्वर का करो लगाओ तिलक चंदन॥
सबके लिए सुहानी निकली प्यारी-सी धूप,
प्रकृति भी हर्षायी देखकर आज यह रूप।
दु: ख-सुख आते जाते है इसका यह काम,
ठान ले यह पक्का इरादा बदल दे स्वरुप॥
अन्धकार अब छट गया है आलस्य त्यागो,
सुबह प्यारी धूप निकली अब सभी जागो।
नया सौन्दर्य, नया जीवन खुशहाली लाया,
अभिनन्दन है नूतन वर्ष का समृद्धि लाया॥
जिसको समझ बैठे थे हम सभी ऐसी हार,
अब नव वर्ष लाया हम सबके लिए बहार।
मैनें भी वह पल देखा जब सूना था संसार,
छोड़ो वे बीती हुई बातें कोरोना का प्रहार॥
चिट्ठी मेरे नाम की
आई जो आज मेरे नाम एक चिट्ठी,
लगी है जिसमें मैरे वतन की मिट्टी।
झलकता है प्यार सारे परिवार का,
ताज़ा हुई यादें वह खट्टी और मीठी॥
लग रहा है ऐसे जैसे आ गऐ गांव,
लेटे है हम माँ के आंचल की छांव।
गांव के वह दोस्त याद आते आज,
खेला करते साथ दौड़ा करते पांव॥
दिख रही छवि इसमें मेरे प्यार की,
खुशबू आती मेरे खेत के धान की।
बोल रहे हो जैसे अकुंश अविनाश,
छुट्टी आओ पापा हो गए छ: मास। ।
है इसी चिट्ठी में पिता का आशीष,
बचपन की डांट उसमें भी शाबाश।
बहुत दिनों के बाद चिट्ठी जो आई,
मुझे सारे परिवार की याद दिलाई॥
अब याद आता वह चिट्ठी का दोर,
यूनिटों में होता था चारों और शोर।
झूम उठते चिट्ठी का नाम सुनकर,
डाकिये साईकिल की घंटी सुनकर॥
मेहनत किसी की बेकार नहीं जाती
कौशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,
ये मेहनत कभी किसी की बेकार नहीं जाती।
हिम्मत हौसला और जिसने भी रखा विश्वास,
सफलताओं की कुंजी उसे मिलती ही जाती॥
बन्जर धरती पर भी इन्सान फूल खिला देता,
ये इंसान चाहें तो पत्थर से नीर निकाल देता।
माना उसका परिणाम आने में वक़्त है लगता,
परिश्रम एकदिन सभी का अवश्य रंग लाता॥
केवल लक्ष्य को देखना एवं वहाँ पर पहुॅंचना,
धनुर्धारी अर्जुन जैसा बनकर नैत्र को भेदना।
चाहे अनेंक बार विफलताएँ मिलती ही जाऐ,
लेकिन परेशानियाें से कोई भी नहीं घबराना॥
पथपर मिलेंगे ऐसे अड़चन वाले कांटे हज़ार,
उनको कुचलते जाना एवं आगें बढ़ते रहना।
रखना है दिल में जोश जज़्बा एवं यह लगन,
पर्वत, पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाते ही रहना॥
बोल लेखनी कुछ तो बोल
बोल लेखनी, कुछ तो बोल,
आज राज तू सब के खोल।
किसके बोल है ये अनमोल,
डरना मत पेन पेंसिल बोल॥
गीत ग़ज़लें कविताएँ लिख,
लेख आलेख निबन्ध लिख।
लिख दो सारी बातें तू तोल,
दिल के भेद सोचकर लिख॥
लगा दो अपनी ऐसी छाप,
याद करें सब तुमको आज।
लिखों सभी अनमोल वचन,
दुनियाँ वालें सब करे नाज॥
धीरे धीरे जब खोलेगी राज,
बाज़ आऐगा फिर इन्सान।
बोल लेखनी, कुछ तो बोल,
तू प्यार बरसाती देती ज्ञान॥
गणपत लाल उदय
अरांई अजमेर राजस्थान
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