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संवत २०७९ दे आपको (Samvat 2079 give you)
करे न कोई ग़म अब
जाते हुए २०७८ संवत (Samvat 2079) का।
जो बीता सो बीता
अब गुजर गया साल।
सिखा गया जाते जाते
लोगों के दिलमें प्रेमभाव।
नहीं आया विपत्ति में
धनदौलत अबकी बार।
भूला कर अपने सारे गम
करे नई सोच के साथ शुरूआत॥
नया साल दे आपको,
मन माफ़िक परिणाम।
सभी ख़्वाब पूरी हो,
करते प्रार्थना ईश्वर से।
सभी को रिद्धि दे,
सिद्धि दे,
वंश में वृद्धि दे।
ह्रदय में ज्ञान दे,
चित्त में ध्यान दे।
अभय वरदान दे,
दुःखो को दूर कर।
सुख भर पूर दे,
आशा को संपूर्ण कर।
सज्जन जो हित दे,
कुटुंब में प्रीत दे।
जग में जीत दे,
माया दे, साया दे।
और निरोगी काया दे,
मान-सम्मान दे।
सुख समृद्धि और ज्ञान दे।
शान्ति दे, शक्ति दे,
और भक्ति भरपूर दें।
ऐसी में देता हूँ,
शुभ कामनाएँ दिलसे।
रहे अमन और शांति
अपने इस मुल्क में।
हिल मिल कर रहे
हमसब अपने भारत में॥
२०२१ की विदाई
जाते हुये वर्ष के साथ
आपसे बिछड़ना पड़ रहा है।
जो बहुत पीड़ा दायक है और
ह्रदय को वेदना देने वाला है।
परंतु समय की पुकार और
अपनो का प्यार ऐसा होता है।
जो न जाने देता है और न ही
कही रुकने देता है।।
न जाने कितने लोग हमसे
रूठकर जल्दी चले गये।
अपनो को अकेला छोड़ गये
जो न जीने में है न मरने में।
फिर भी अपने परिवार और
घर वालो के लिए जी रहे।
और उम्र के आखरी पड़ाव पर भी
कुछ करे जा रहे है।।
बहुत कुछ सिखा है और
बहुत कुछ सिखाना बाकी है।
जमाने के साथ चलने के लिए
अन्य लोगों के साथ अब जाना है।
इसलिए आपसे विदा ले रहा हूँ
और हवाओ के साथ बह रहा हूँ।
कहाँ है अब मंजिल और कहाँ है
अब आगे का हमारा बसेरा।।
बहुत कुछ 2021 ने दिखा दिया और
लोगों को मानवता का पाठ पढ़ दिया।
भूलकर पुराना पाठ लोगों ने
जो नया पाठ सिखा है।
छोड़कर धन दौलत का चक्कर
इंसान को इंसानो से जो जोड़ा है।
हम रहे या ना रहे पर आने वालो को
एक नया जीवन का अध्याय दिया है।।
अपने अंदाज से जीओ
दिलो से जो प्यार करते है।
वो दिलदार कहलाते है।
खो जाते है हम जब कोई।
हमें अपना मिल जाता है।।
न मंजिल है न ठिकाना है
बस किसी के दिलमें रहना है।
इसलिए तेरे दिल को
अपना घर बनना चाहता हूँ।।
अब हमें अच्छी दोस्ती
तेरे साथ का करना है।
और दिलकी कहानी को
दिल वालो से खुलकर कहना है।।
सफर जिंदगी का अब
तेरे बिना कटता नहीं।
दिलकी तन्हाईयाँ भी
अब खुद से रूठने लगी है।।
कभी खुद को भी
खुदा से दूर मत करो।
अपनी बाते किसी से तो
तुम कहने का साहस करो।।
अकेले जिंदगी को जीने का
अपना अंदाज को बदलो।
जमाने के साथ चलने की
अब तो तुम कोशिश करो।।
माना की तेरे जीवन में
अनेक गमो का साया है।
जो तुम्हें अपनो ही
शायद दिया है।।
इसलिए अब तुझे
किसी पर भरोसा नहीं है।
तभी तो तुम अपनी
दुनियाँ में खुश रहते हो।।
तुम क्या हो?
प्रेम सभी से सफल हो,
भाव अपने अटल हो।
और अपनो को
अपनो से ही आशायें हो।
जो बिन बोले व्यथा
अपनो की जान ले।
और मुसीबत में फसे
अपनो को उभर दे।।
खुशियों के लिए क्यों,
किसी का इंतज़ार।
आप ही तो हो अपने,
जीवन के शिल्पकार।
चलो आज हम सब,
मुश्किलों को हराते हैं।
और दिन भर परिवार के
साथ मुस्कुराते हैं।।
भक्ति में हम
भगवान को सुनते है।
स्वाध्याय में हम
भगवान् की सुनते है।
पर सुनने के लिए
वक्त नहीं इंसान को।
सुनाने के लिए
वक्त ही वक्त है इंसान को।।
क्योंकि इंसान अपने
आप में बुध्दिमान है।
गलत होते हुए भी
खुद को ही श्रेष्ठ कहता है।
और अपनी उपलब्धियों को
खुद ही गिनता है।
और अपने मियां मिठू
खुद ही बन जाता है।।
वो दुसरो की सफलता
देख नहीं सकता।
अपने से ऊँचा किसी
और को देख नहीं सकता।
अपनी ही सफलता का
गुण गान खुद ही करता है।
और अपने आगे किसी को भी
कुछ नहीं समझता है।।
यह खेल तो वर्षो पुराना है।
इसमें क्या अपना और क्या पराया है।
इंसान इंसान को ही निचा दिखता है।
और इंसानियत को भूल जाता है।।
सुनना नहीं बस कहना है
लिखे वो लेखक
पढ़े वो पाठक।
जो पढ़े मंच से
वो होता है कवि।
जो सुनता वो
श्रोता होता है।
यही व्यवस्था है
हमारे भारत की।
लिखने वाला कुछ भी
लिख देता है।
पढ़ने वाला कुछ भी
पढ़ लेता है।
और कुछ का कुछ
अर्थ लगा लेता है।
पर सवाल जवाब का
मौका किसे मिलता है?
यही हालात आजकल
हमारे महान देश का है।
न कोई सुनता है
न कोई कुछ कहता है।
अपनी अपनी ढपली
हर कोई बजता रहता है।
और अपनी धुन में
वो मस्त रहता है।
इसलिए अब हिंदुस्तान में
संवाद खत्म हो गया है।
और भारत को विश्वस्तर
पर पीछे कर दिया है।
जिसका सबसे ज्यादा असर,
हिंदी साहित्य पर पड़ा है।
और भारत की संस्कृति
व इतिहास लुप्त हो रहा है।
मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी
अब धर्म नही बचा है।
और इंसानियत का मानो
जनाजा निकल चुका है।।
छोड़ गये मुझे
चले थे साथ मिलकर
किसी मंजिल की तरफ।
बीच में ही साथ छोड़कर
निकल लिए और के साथ।
अब किस पर यकीन करें
इस जमाने में साथ के लिए।
हर तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ
हमे आज कल दिखता है।।
मिला था जब दिल हमसे
तो कसमें खाते थे तुम।
सात जन्मों तक एकदूजे का साथ निभाने की।
फिर ऐसा क्या हो गया
जो गरीब का साथ छोड़ दिया।
और यश आराम के लिए
और का हाथ थाम लिए।।
महत्वकांक्षी लोग किसी एक के हो नहीं सकते।
आज ये है तो कल कोई और भी इनका हो सकता है।
क्योंकि मोहब्बत तो इनके लिए एक खिलौना है।
और टूटते ही उसे बदल
ने की फिदरत होती है।।
न कोई मंजिल न लक्ष्य
ऐसे लोगो का होता है।
बस अपनी जवानी और
रूप से घयाल करके।
प्यार करने वालो का प्यार
पर से विश्वास उठवा देते है।
और ऐसे लोग न जीते है
और न ही मर पाते है।।
सर्दी का मौसम और…
सर्दी मौसम में प्यार मोहब्बत
की आपस में बातें होती है।
सर्दी मौसम में मोहब्बत निभाने
कि कसमे खाई जाती है।
और चलता है दौर आपस में
मेल मिलाप करने का।
पर होती है दिलको पीड़ा
सर्दी में बिछड़ ने पर।।
चारों ओर हरियाली
कितनी छाई रहती है।
मंद मंद हवाओं के साथ
हल्की ओस गिरती है।
जिससे वदन सुकड़ा सा
और गरम हो जाता है।
जो दिलकी गहराईयों में
लम्बी आह भर देता है।।
गर्म हुये वदन पर जब
ओस की बूंदे गिरती है।
तो अंदर से एक आवाज
छन सी आती है।
जो दिल दिमाग को
शून्य करके बेचैन कर देती है।
और सीने की धड़कनों को
और तेज कर देती है।।
आँखे होंठ और दिल भी
अपनी कहानी कहते है।
और तन मन सब कुछ
तड़पकर सुस्त होने लगता है।
न कुछ खाया पिया जाता है
न ही बिना उनके जिया जाता है।
दिल में लगी है जो आग
उससे सिसकियां भर रहा है।
और ये सब कुछ सर्दियों के
महीने में ही क्यों होता है।।
दुनियाँ को समझो
मेरा जीने का अंदाज निराला है
इसलिए ज्यादा मेरे दोस्त नहीं।
पर जो भी है मेरे दिलके करीब
उनका मैं दिलसे आभारी हूँ।
सीधी बातें मैं हर पल करता
जो दिलको छूती और चुभती है।
जिसके कारण लोग मुझे
कम ही पसंद करते है।।
जमाने की खा कर ठोकरे
यहाँ तक तो आ पहुंचा।
कर्म भले ही अच्छे किये
परंतु फल कड़वा ही मिला।
कभी अपनो ने तो कभी
परायों ने बहुत गम दिये।
कहानी किस्मत की मेरी
पता नहीं किसने है लिखा।।
बहुत सोचा और समझा
इस जमाने के बारे में।
कदर करता था समय का
तभी तो समय ने साथ दे दिया।
और जो कुछ लिखा पढ़ा था
वही आज काम आ गया।
इसलिए संजय कहता है की
पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दो…।।
मकर सक्रांति का संदेश
राम को जपो श्याम को जपो
जपो ब्रहमा विष्णु महेश को।
पर मत छीनो लोगों से
तुम उनके अधिकारो।
राष्ट्र चरित्र का तुम सब
कब करोंगे निर्माण?
बहुत हुआ खेल अब
जाती धर्म का देश में।
कुछ तो अब शरम करो
देश के निर्माताओं।
कितने सारे त्यौहार
एक तिथि पर पड़ते है।
जो की अलग अलग
धर्म वालो के होकर भी।
एक जैसे ही लगते है
चाहे हो मकरसक्रांति
या हो वो पोंगल आदि।
फिर क्यों धर्म के नाम पर
नफरत के बीज वोते हो।
और देश के भाईचारे को
क्यों मिटाने पर तुले हो।
नहीं किया जब भेदभाव
उस दुनियां को बनाने वाले ने।
फिर तुम कैसे मिटा पाओगें
उसकी बनाई दुनियाँ को।
क्यों लिया जन्म देवीदेवताओं ने
भारत की इस भूमि पर।
क्यों नहीं लिया जन्म
उन्होंने किसी और देश में।
जरा गम्भीर होकर के सोचो
तुम सब इस मूल बात को।
रघुपति राघव राजा राम
पति के पावन सीताराम।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सभी को बुध्दि दे भगवान।
सोच विचारकर करो
एकता वाले तुम काम।
तभी अमन चैन शांति
स्थापित देश में हो पायेगीं।।
नारी को जानें और समझें
दिखाये आँखें वो हमें जब
मनका काम न हो उसका।
तब बहाना ढूँढती रही
हमें शर्मीदा करने का।
यदि इस दौरान कुछ
उससे पूछ लिया तुमने।
तो समझ लो तुम्हारी
अब खैर नहीं है।।
अलग अलग तरह के
रूप देखने को मिलेंगे।
कभी राधा तो कभी दुर्गा
और कभीकभी शेरनी का।
समझ नहीं पाता पुरुष
नारी के इतने रूपों को।
इसलिए शांति से वो
सब कुछ सुनता रहता।।
नारी की गुस्सा से
पुरुष बहुत डरता है।
घर की शांति के लिए
वो खुद चुपचाप सा रहता।
इसी बात का फायदा
सदा वो उठती रहती है।
और अपनी मन मानी
वो घर में करती रहती है।।
बहुत सहनशील धैर्यबान और
कुशल प्रबंधक भी नारी होती।
और अपने घर और बाहर का
ख्याल भी बड़ी खूबी से रखती।
तभी तो नारी को लक्ष्मी दुर्गा
और अन्नपूर्णमा कहाँ जाता।
तभी वो घरको स्वर्ग और
नरक स्वयं बनाकर रखती है।।
नारी के रूपों को कोई
समझ ही नहीं पाया है।
कितने देवतागण भी
देवियों से हारे है।
और उनकी हाँ में हाँ मिलने
सदा तत् पर वो रहते हैं।
तभी तो नारियों की शक्ति
माँ पार्वती जी को कहते।।
पुरुष की हर सफलता में
नारी का बड़ा हाथ होता है।
उसकी सफलता के लिए
वो प्रार्थनायें उपास करती है।
और अपने पति के लिए
सदा उसका साथ देती है।
बड़े ही धैर्य से वो
उसका कष्ट हर लेती है।।
संजय जैन
“बीना” मुंबई
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