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इक्कीसवीं सदी का समृद्ध भारत (Prosperous India of 21st Century)
दोस्तों आज के आलेख सेक्शन में प्रस्तुत है विनय पाठक जी का आलेख इक्कीसवीं सदी का समृद्ध भारत (Prosperous India of 21st Century)… विनय पाठक जी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर के रहने वाले हैं… हिंदी लेखन में बेहद रूचि रखने वाले विनय पाठक जी अब तक अनेक रचनाओं का सृजन कर चुके हैं… तो चलिए पढ़ते हैं विनय पाठक जी का आलेख इक्कीसवीं सदी का समृद्ध भारत (Prosperous India of 21st Century)…
“सब कुछ थे स्वायत्त विश्व के
बल-वैभव आनंद अपार,
उद्वेलित लहरों से होता
इक्कीसवीं सदी का सुख-संचार”
हम आकाशगंगा को छू रहे हैं, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता पर यह कहना भी ग़लत न होगा की विकास की सीढी़याँ उपलब्ध तो हैं और हम चढ़ भी रहे हैं पर उचित स्थान पर उसे नहीं रखा गया है। भारत का प्राचीन इतिहास कम गौरवशाली नहीं रहा है। रत्नगर्भा ये देश चमक तो रहा है पर उसके स्थाईत्वता में अभी कसर बाक़ी है।
मौसम-बेरोजगारी इस दशक के सबसे बडे़ खतरे माने गये हैं। सामाजिक ताने-बाने में बिखराव के कारण जलवायु परिवर्तन, बेरोजगारी और महामारियों का सामना करने की क्षमता का ह्रास हुआ है। प्रकृति और विज्ञान में सामंजस्य बिठाता हुआ वर्ष २०२१ संघर्षशील नज़र आ रहा है। कोरोना महामारी के बाद अब लोग प्रकृति की मार से बचने की ज़रूरत को बेहतर तरीके से लोग समझने लगे हैं।
साल २०२० हर दृष्टि से चुनौतीपूर्ण और भययुक्त रहा। कोविड-१९ ने हर स्तर के लोगों पर प्रहार किया। कोई भी देश और समुदाय इससे अछूता न रहा। इसकी काली छाया आज भी पूर्णरूपेण विलोपित नहीं हुई। साथ ही इस महामारी ने जलवायु परिवर्तन जैसी परेशानियों से भी दुनियाँ को रु-ब-रु कराया।
अपने देश की बात करें तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कृषि से लेकर उद्योग तक हमारी अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर बदलती जलवायु के अच्छे-खासे प्रभाव पड़ते हैं। इक्कीसवीं सदी का समृद्ध भारत कोविड से कडे़ संघर्ष के बाद अपनी चमक पूरे विश्वपटल पर बिखेर रहा है। नेतृत्व के द्वारा लिये गये फैसले प्रगति का फ़ासला तय कर रहे हैं और कई दशकों की दशा और दिशा सुनिश्चित करेंगें। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद दुनिया में हुआ क्या है। २०१५ के पेरिस समझौते के बाद से भारत में कम कार्बन उत्सर्जन वाले तरीकों में निवेश और उन्हें अपनाने में तेजी आई है।
भारत पुनरुत्पादन ऊर्जा को बढ़ा़ने में तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष २०१५ के बाद से अक्षय ऊर्जा क्षमता में २२६ प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो हमारी पारिस्थितिक प्रणाली पर अनुकूल प्रभाव डाल रही है फलत: पर्यावरण प्रदूषण पर शिकंजा कसते जा रहा है और हम शुद्ध वायु में साँस लेने लगे हैं।
भारत अब जलवायु वार्ता में अग्रणी देश हो गया है जो वर्तमान समय की प्रमुख माँग है। सोलर सिंचाई से कृषि क्षेत्र उन्नत हुआ है। विदर्भ और प्रभास क्षेत्रों के खेतों में सिंचाई हेतु सोलर पैनलों के उपयोग से डीजल जेनरेटर पर कम ख़र्च में किसान कृषि कार्य करने लगे हैं। सिंचाई सीजन के बाद अतिरिक्त बिजली किसान वापस ग्रिड को बेचकर कुछ कमा भी रहे हैं।
विद्युत से चलने वाले दोपहिये और चार पहिया वाहनों के साथ इलेक्ट्रिक बस जैसे परिवहन विकल्पों के प्रोत्साहन से न केवल प्रदूषण कम होगा बल्कि पर्यावरण में संतुलन भी स्थापित हो सकेगा। लाकडाऊन में वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध के कारण वायु प्रदूषण में भारी गिरावट आँकी गई। क्लाईमेट ट्रेंड्स द्वारा एक सर्वेक्षण में पता चला कि सत्तर प्रतिशत जनता अपने स्तर पर बेहतर पर्यावरण के लिये क़दम बढ़ा़ने को तैयार है।
भारत फिलहाल दुनियाँ में एक महत्त्वपूर्ण मुकाम पर है। नेतृत्व क्षमता सन् १८५७ की तुलना में दो सौ फीसदी बढी़ है। हम नये दशक की दहलीज़ पर खडे़ हैं। दर्द के दरिया से गुजरने का सबक ही विकास की नवीन मार्ग प्रशस्त करेगा। संकट की पराकाष्ठा नूतन अन्वेषण को जन्म देती है। दूसरे विश्वयुद्ध के कहर से उबरकर जर्मनी और जापान इस धरती पर सबसे अमीर और विकसित राष्ट्र बने। आर्थिक मंदी के दौर ने अमेरिका को महाशक्ति बनाया। कोविड-१९ संकट में दुनिया के विकासशील देशों में भारत की अर्थव्यवस्था पर कुठाराघात किया। पर हम में मौजुदा हालात् से उबरने के सभी गुण विद्यमान हैं।
कम लागत का इंटरनेट, युवाओं की आबादी, सबसे बडा़ मोबाइल यूजर बेस, और सबसे तेज इंटरनेट डेटा खपत और सबसे बडी़ बात कि इसके लिये ज़रूरी तकनीकी जानकारी। आनलाईन, सोशल मीडिया प्लेटफार्म, सामाजिक और आर्थिक विकास के प्रमुख आधार स्तंभ हैं।
अगर हम वाक्ई में इक्कीसवीं शताब्दी को समृद्ध भारत के रूप में देखना चाहते हैं तो हमें देश के हर बच्चे, व युवा को स्वास्थ्य, शिक्षा व कौशल देना ही पडे़गा। हर एक अवसर हर एक उपलब्धि को जन्म देगा। भारत में भूगोल से लेकर अर्थव्यवस्था, मौसम का विस्तार, और जीव जंतुओं की संपदा विशाल और बहुआयामी है। ज़रूरत है तो बस इसे तलाशने की, संजोकर रखने की और उसे निष्ठापूर्वक अमलीजामा पहनाने की।
विनय पाठक
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