Table of Contents
पायल
निकाले अरमान साजन ने, परदेश से लाये पायल
आज फिर सजेगी शैया, विरह से तन मन घायल,
सोलह शृंगार किये सजनी ने, मन ही मन शर्माये
मुस्कराती दर्पण देखे, पायल को मन की सुनाये,
रात प्रहर में चली मिलन को, जागें ना घर वाले
अधर अधर पग धर सोचे, पायल पहने या निकाले,
सखी है या बनी दुश्मन यह, कैसे संभालूं आज
खींच ली उपर पायलिया, जग गये उसके भाग,
बाहों में भरा पिया ने, सजनी घबरा के ख़ामोश
कौन सुने झंकार-सी, उमडा जोश या उडे होश,
दो बदन के इस मिलन में, दिल तो गाते हैं गीत
चूडी-पायल भी ख़ुशी से, रूणझुण दें संगीत,
चाँदी की पायलिया की, चाँदी-चाँदी उस रात
इश्क में हर शरारत की, देख ली जो सारी बात।
आने वाली पीढ़ी बचाएँ
नव- अंकुरों को हम यही समझायें
हम संतानें भरत की यह बतलायें
ऋषियों मुनियों के संस्कार रक्त में
हम सबसे आगे रहे सदा जगत में
बच्चों को यह वृहद रूप दिखायें
हम सब आने वाली पीढ़ी बचाएँ
भारत में जनमे हैं सौभाग्य हमारा
सदियों से सर्वश्रेष्ठ इतिहास हमारा
हर बच्चा मात- पिता- गुरू भक्त है
इन परम्पराऔं को सीखता जग है
हम भी मात्र अच्छी बातें अपनायें
हम सब आने वाली पीढ़ी बचाएँ
वेद,पुराण,गीता से नव पीढी सीखें
उनके विचार उनके कर्मों में दिखें
वैचारिक सांस्कृतिक हमला होता
हमारा सनातनी अभिमान खोता
सत्यम शिवम सुंदरम ही अपनायें
हम सब आने वाली पीढ़ी बचाएँ
सामाजिक मान्यता हो रही ध्वस्त
आध्यात्म छुट रहा युवा हुये त्रस्त
बुरे कर्मों का फल बुरा जानते हैं
मन मैला तो सब मैला मानते हैं
स्वयं उदाहरण स्थापित कर पायें
हम सब आने वाली पीढ़ी बचाएँ
मार्ग दर्शन कर रोकें यह भटकाव
हो भविष्य उन्नत आये नहीं आंच
हमारी अंगुली पकड चलें भी नहीं
पर हमारे सुझावों को मानें सही
नये – पुराने में सामंजस्य बिठायें
हम सब आने वाली पीढ़ी बचाएँ
करें फिर गुलशन को गुलज़ार
करें फिर गुलशन को गुलज़ार
कलियाँ खिलें फूलों के बाजार
हरियाली फले भरे पूरे अश्ज़ार
किसी मसीहा का हो अवतार
भाई- चारे का नहीं हो मिस्मार
दुश्मन डरे ऐसी हमारी हुँकार
शांति क़ायम गूँजे ऊँ णमोकार
दरिंदगी मिटाने करनी यलगार
धनात्मक ख़बरें देते अख़बार
एक- दूसरे पर पूरा हो ऐतबार
पूरा सम्मान यंहा पा जाये नार
भूखा प्यासा ना ना कोई बीमार
खुशियों का लग जाये अम्बार
बुरी आदतों का हो सारा ईसार
देश -भक्ति के हो हम मैख्वार
भेद-भाव मिटे हम बनें अंसार
सहिष्णुता के सच्चे हो दीदार
मनोभाव पाक हों हो इज़हार
विकास की धीमी ना रफ़्तार
कलकल कलरव की झंकार
ध्यान रखे सभी का सरकार
मौसम की नहीं हो बुरी मार
हो जन्नत सा हमारा संसार
कोरोना जीना नहीं करे दुश्वार
इनसे निज़ात की अब दरकार
किसी काम से ना हो शर्मसार
प्रभु का मानें सारा ही आभार
बुरे लोगों का करें हम धिक्कार
अच्छों के गले मिल करें प्यार
रोज़गार मिले ना कोई नादार
विश्व भर में भारत जयजयकार
हर तरफ हो यही तो अज़कार
देश वासी अपने हो ना अग्यार
सर तने रहें हम नहीं इज्तरार
गुलज़ार करने का हो इसरार
हमारी आदतों में ये हो शुमार
कुतर्क ना हो हों ख़ुश गुफ़तार
दंड पाये यहाँ सारे ख़तावार
समस्या निपटें करके गुफ़तार
होगा गुल रौशन आये निखार
तो फिर आओ मानो ना हार
करें फिर गुलशन को गुलज़ार
4 thoughts on “पायल : संजय गुप्ता ‘देवेश’”