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२६ जनवरी… एक स्मृति
आज आपके साथ २६ जनवरी से जुडी एक स्मृति साझा कर रही हूँ… वैसे स्मृतियाँ तो हमारे जीवन का हिस्सा है, जैसे-जैसे ज़िन्दगी आगे बढ़ती है वैसे-वैसे ही वक़्त के साथ कुछ स्मृतियाँ बन जाती। जिसे हम कभी भूल नहीं पाते हैं।
ऐसे ही २६ जनवरी से जुड़ी एक स्मृति मेरे यादों के समुंदर में गोते खा रही है। बात उस समय की है, जब मैं दसवीं क्लास में थी। जहाँ सब बच्चे जनवरी के माह में बोर्ड की एग्जाम की तैयारी में लग जाते हैं मुझे भी एग्जाम की बहुत टेंशन थी और ऐसा लग रहा था कि कुछ याद ना हो।
वहीं बाक़ी क्लास के बच्चे २६ जनवरी की तैयारी में लगे हुए थे। हर साल मैं १५ अगस्त और २६ जनवरी के सांस्कृतिक प्रोग्राम में भाग लेते थी। लेकिन उस साल मैंने भाग ना लेने का फ़ैसला कर लिया था। मेरे क्लास टीचर ने मुझसे कहा इस बार तुम सांस्कृतिक प्रोग्राम में भाग क्यों नहीं ले रही हो? हर साल तो लेती हो, इस साल क्यों नहीं? हमने कहा कि इस साल दसवीं का एग्जाम है, तैयारी बाक़ी है टाइम नहीं दे पाऊंगी तब मेरे अध्यापक ने मुझे समझाया राष्ट्रीय समारोह में भाग लेने से कभी पढ़ाई डिस्टर्ब नहीं होती हैं बल्कि ऐसे प्रोग्रामों में हिस्सा लेने से हमारा ज्ञान और बढता है, राष्ट्रीय त्यौहार हमारे पढ़ाई का एक हिस्सा है इसीलिए इसमें भाग ज़रूर लेना चाहिए।
तब मैम की बात मेरे समझ में आ गई थी फिर मैंने तय कर लिया कि मैं हर साल की तरह इस साल भी २६ जनवरी के प्रोग्राम में हिस्सा लूंगी और मैंने रातो रात भाषण तैयार किया और एक देश भक्ति गीत भी तैयार किया था। सभी को मेरा भाषण बहुत पसंद आया। तालियों से पूरा हॉल गूंज उठा मुझे वहाँ ट्रॉफी और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया।
मुझे यह बात समझ आ गई थी कि जीवन में कठिनाई आती रहती है और कई उतार-चढ़ाव भी आते रहते हैं, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। हमें अपने कार्यों से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। घटना के बाद मेरे जीवन की दिशा बदल गए चाहे कितनी भी व्यस्त या कठिन समय आए मैं अपने कार्यों से पीछे नहीं हटती। यह घटना मेरे स्मृति में सदा बनी रहेगी और मुझे जीवन पथ पर आगे पढ़ने में मदद करती है।
उमा वैष्णव
सूरत (गुजरात)
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