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श्रीमती रामबाई दीक्षित स्मृति शिक्षा सम्मान-२०२३ डॉ. रचना सिंह एवं विनीत मिश्रा को
अतर्रा (बांदा) : बेसिक शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं के सम्मान हेतु स्थापित श्रीमती रामबाई दीक्षित स्मृति शिक्षा सम्मान के वर्ष २०२३ हेतु चयनित शिक्षक-शिक्षिका का नाम घोषित कर दिया गया है। तीन सदस्यीय चयन समिति ने डॉ. रचना सिंह (उन्नाव) तथा विनीत कुमार मिश्रा (कानपुर देहात) का चयन किया है। चित्रकूट में १६ फरवरी को आयोजित शैक्षिक संगोष्ठी एवं शिक्षक सम्मान समारोह में दोनों शिक्षक-शिक्षिका को श्रीमती रामबाई दीक्षित स्मृति शिक्षा सम्मान-२०२३ भेंट किया जायेगा। सम्मान अंतर्गत ११०० रुपए, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, मैडल, लेखनी एवं अंगवस्त्र भेंट किया जायेगा।
उक्त जानकारी देते हुए सम्मान संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि उन्होंने २०२२ में अपनी माता जी की स्मृति में शिक्षकों एवं लेखकों के सम्मान हेतु श्रीमती रामबाई दीक्षित स्मृति शिक्षा एवं लेखक सम्मान की स्थापना की थी। वर्ष २०२२ में प्रथम लेखक सम्मान दिनेश कर्नाटक (नैनीताल) एवं आलोक मिश्रा (दिल्ली) को तथा शिक्षा सम्मान आसिया फारूकी (फतेहपुर) एवं रामकिशोर पांडेय (बांदा) को भेंट किया गया था। उसी श्रंखला में वर्ष २०२३ के लिए लेखक सम्मान हेतु कमलेश कमल (दिल्ली) की कृति भाषा संशय-शोधन चुनी गई है तथा शिक्षा सम्मान हेतु डॉ. रचना सिंह (उन्नाव) एवं विनीत कुमार मिश्रा (कानपुर देहात) का चयन किया गया है।
तीनों चयनित लेखक एवं शिक्षकों को १६ से १८ फरवरी को चित्रकूट में आयोजित शैक्षिक संगोष्ठी एवं शिक्षक सम्मान समारोह में उपस्थित शिक्षक-शिक्षिकाओं के मध्य सम्मानित किया जायेगा। सम्मान अंतर्गत प्रत्येक सम्मानित व्यक्तित्व को ११०० रुपए, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, मैडल, लेखनी एवं अंगवस्त्र भेंट किया जायेगा। इस अवसर पर मंच पर पद्मश्री उमाशंकर पांडेय, समाजसेवी गोपाल भाई, शिक्षाविद् बाबूलाल दीक्षित, प्रदीप जायसवाल (शोध प्रवक्ता-राज्य हिन्दी संस्थान, वाराणसी) , डॉ. मनोज वार्ष्णेय (प्रवक्ता-डायट आगरा) , राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका आसिया फारूकी (फतेहपुर) एवं ईश्वरी सिन्हा (छत्तीसगढ़) उपस्थित रहेंगे। समारोह में गिजुभाई बधेका सम्मान-२०२३ से सम्मानित होने वाले ७० शिक्षक-शिक्षिकाएँ उपस्थित रहेंगे।
बच्चे की भाषा और अध्यापक: शिक्षकों के लिए ज़रूरी किताब
१९८५ में यूनिसेफ के सहयोग से प्रकाशित दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के प्रोफेसर कृष्ण कुमार की पुस्तक ‘बच्चे की भाषा और अध्यापक एक निर्देशिका’ आज भी शिक्षकों एवं भाषा के मुद्दे पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं के लिए एक ज़रूरी किताब बनी हुई है। बाद में स्वतंत्र रूप से इस पुस्तक को नेशनल बुक ट्रस्ट ने १९९६ में छापा। कुल पांच अध्यायों और ६८ पृष्ठों की यह लघु पुस्तक अपनी अंतः सामग्री से भाषा पर काम कर रहे शिक्षकों के लिए नए रास्ते खोलती दिखाई पड़ती है। यह पुस्तक न केवल शिक्षकों के लिए बल्कि अभिभावकों एवं शिक्षक प्रशिक्षकों के लिए भी एक बेहतर मॉड्यूल का काम करती है। पुस्तक पांच अध्यायों भाषा माने क्या, बात, पढ़ना, लिखना तथा स्कूल का यथार्थ और भाषा शिक्षण में विभाजित है। भाषा माने क्या पाठ में लेखक भाषा को केवल अभिव्यक्ति संप्रेषण का माध्यम नहीं मानते अपितु चीजों को महसूस करने, उनसे जुड़ने और सोचने-समझने के एक औजार के रूप में देखते हैं।
वास्तव में बच्चों के साथ भाषा पर काम करने वाले लोगों के लिए यह महत्त्वपूर्ण तब बन जाती है जब वह बच्चों के साथ की जा रही गतिविधि, जोकि बड़ों की दृष्टि में अनुपयोगी और निरर्थक होती है, से सम्बंध जोड़ने वाली होती है। बच्चों की गतिविधि और शब्द साथ-साथ चलते हैं। अनुभव को व्यक्त करने के लिए शब्दों की ज़रूरत पड़ती है और वह अनुभव शब्दों के रूप में जीवित रहता है। यदि कोई शब्द उनके संपर्क या गतिविधि का हिस्सा नहीं हुआ होता तो उसके अर्थ उनके लिए निरर्थक या सतही होते हैं जैसे ऊंट, डाकिया, भैंस, तालाब, बाल्टी आदि। लेकिन जो शब्द उनकी गतिविधि का हिस्सा बनते हैं उन्हें वह एक बिम्ब के रूप में देखते हैं। इसलिए लेखक का मत है कि अध्यापक को कक्षा में ऐसा वातावरण बनाना होगा जिससे बच्चे अनुभवों को जीवन से लगातार जोड़ते रहें।
एक शिक्षक के रूप में हम अपनी कक्षाओं में पाते हैं कि बच्चों के बैग में चिड़ियों के पंख, रंग-बिरंगे चिकने पत्थर, कंचे, चूड़ियाँ, कंगन, पेन के ढक्कन आदि भरे होते हैं, जो बच्चों के लिए गतिविधि और भाषा से जुड़ने का एक रास्ता होता है। वह उनके लिए एक विशाल दुनिया है पर शिक्षक उनसे उस दुनिया की बात न कर अनचीन्हे निरर्थक अक्षरों के साथ जोड़ने की कोशिश करते हैं। स्कूल आने के पूर्व से ही बच्चे शब्दों से खेलने का आनंद प्राप्त करने लगते हैं। भले ही बड़ों के लिए वह अर्थहीन हो लेकिन उनके लिए अर्थवान हो उठते हैं और आनंद से भर देते हैं। शब्दों का बनना यहीं से शुरू होता है जैसे मगग्गा, जगग्गा, कक्का, बक्का छक्का आदि से उपजी ध्वनि का आनंद लेते हैं। बच्चे इन शब्दों को बोलते हुए खिलौनों की भांति उपयोग करते हैं। अध्याय २ में बच्चों के सीखने के संदर्भ में बातचीत की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में लेखक ने कहा है कि कक्षाओं में बात करना ग़लत समझा जाता है और शिक्षक यह मानते हैं कि जब बच्चे बात कर रहे होते हैं तो वह पढ़ाई नहीं कर रहे होते, इसलिए अध्यापक उन्हें रोकते हैं और पढ़ने का दबाव डालते हैं। बातचीत के प्रति यह अनदेखी या उपेक्षा से बच्चों का सीखने का बुनियादी स्तर कमजोर होता है। होना तो यह चाहिए था कि बच्चों के विविध अनुभवों को लेकर कक्षा में बात करने के अधिकाधिक अवसर बनाये जाने चाहिए थे।
बच्चे बात करते समय सम्बंधित वस्तु या विषय पर बहुत बारीक नज़र रखते हैं। वह अपने निरीक्षणों का आदान-प्रदान भी करते हैं दूसरे के निरीक्षण या बात को चुनौती देते हुए अपनी तर्कसंगत बात से स्वयं की बात को उचित ठहराते हैं। इसके साथ ही वह वस्तु से सम्बंधित नया-पुराना, मोटा-पतला, पास-दूर, खट्टा-मीठा, कड़वा-कषैला जैसे शब्द अनुमान तुलना, स्वाद, सम्बंध आदि के बारे में भी बात कर रहे होते हैं। अध्यापक जब बच्चों को बात करने से रोकते हैं तो उन्हें लगता है कि उनकी बातें महत्त्वपूर्ण नहीं है जबकि होना चाहिए था कि हर बच्चा अनुभव करे कि वह जो कुछ अनुभव के आधार पर कक्षा में बोलने वाला है उसे न केवल सुना जाएगा बल्कि स्वीकार भी किया जाएगा। इसके लिए ज़रूरी है कि अध्यापक बच्चों से उनके अपने बारे में, परिवार, पड़ोस, स्कूली अनुभव के बारे में या उनकी अपनी छोटी यात्राओं, खेत खलिहान के बारे में या तस्वीरों पर चर्चा करते हुए बात के अवसर बनाने होंगे। बच्चे कहानी सुनना भी पसंद करते हैं इसलिए कहानियों पर भी बात की जा सकती है। अध्यापक को उनके बातचीत में कमी न बताकर बोलने के लिए प्रेरित करते हुए कुछ गतिविधियाँ करवाते रहने चाहिए। लेखक ने ऐसी ही बहुत सारी गतिविधियाँ पुस्तक में दी हैं जो एक अध्यापक के लिए कक्षा कक्ष में बहुत उपयोगी हो सकती हैं।
तीसरे अध्याय पढ़ने की अगर बात करूं तो लेखक का मत है कि पढ़ना सिखाना अध्यापक के लिए सबसे बड़ी और कठिन चुनौती है। शिक्षकों के लिए बच्चों के संदर्भ में पढ़ने का स्वस्थ कौशल लिखी या छपी भाषा को अर्थ से जोड़ने, समझने या पहले से ज्ञात किसी चीज से जोड़ने से है। इसके लिए चार्ट, कार्ड, कार्टून खेल गीत, छोटी कविताएँ अच्छा साधन बनती हैं। पुस्तक में बहुत सारी छोटे कविताएँ देकर शिक्षकों का काम आसान कर दिया गया है। वह कहते हैं कि शिक्षक भी छोटी किताबें बच्चों के साथ मिलकर तैयार कर सकते हैं। वर्णमाला के टुकड़े, फ़र्श पर नक्शा, शब्दों का टापू, पिछला-अगला शब्द या वर्ण बताने की गतिविधि कर सकते हैं। शब्दों का मिलान भी किया जा सकता है। चौथा अध्याय लिखने कौशल को लेकर है। वास्तव में लिखना भी एक प्रकार की बातचीत ही होती है। लिखना दरअसल अपने अनुभव और विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करना या पहुँचना है। पांचवां अध्याय स्कूल की यथार्थ दुनिया में भाषा शिक्षण को लेकर है, जिसमें लेखक का कहना है कि स्कूल में उपलब्ध जगह को इस तरह से इस्तेमाल करना कि बच्चों के भाषा विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा हो सके। यह शिक्षक की जिम्मेदारी है कि पाठ्य पुस्तक की जकड़न से बच्चों को मुक्त करें। इसके लिए परीक्षा या मूल्यांकन को लचीला करना चाहिए। भाषा शिक्षण का उद्देश्य पाठ्यपुस्तक की पढ़ाई नहीं बल्कि भाषा से जुड़े स्वस्थ कौशलों के विकास से है। किंतु अध्यापक का पूरा ज़ोर पाठ्यपुस्तक को पूरा कर बच्चों को उत्तीर्ण करने की चिंता से जुड़ा होता है, न कि उसके अंदर भाषा कौशलों के विकास करने से। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह छोटी-सी पुस्तक शिक्षकों के लिए उपयोगी माड्यूल सिद्ध होती है।
पुस्तक का आवरण आकर्षक है जिसमें आम के पेड़ पर बैठी चिड़िया गाना गा रही है। एक बच्ची रस्सी कूद रही है तो वहीं एक महिला पुस्तक खोले पढ़ रही है जिसे दो बच्चे उत्सुकता से देख रहे हैं। आवरण पाठक को पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगाता है। मुद्रण साफ़ सुथरा है वर्तनीगत अशुद्धियाँ लगभग नहीं हैं। काग़ज़ भी ठीक है। निश्चित रूप से ‘बच्चे की भाषा और अध्यापक’ पुस्तक शिक्षकों का भाषाई मुद्दे पर मार्गदर्शन करती रहेगी।
पुस्तक: बच्चे की भाषा और अध्यापक एक निर्देशिका
लेखक: कृष्ण कुमार
प्रकाशक: नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली
पृष्ठ: ६८, मूल्य: ₹७० / –
शैक्षिक संवाद मंच की तकनीकी टीम का हुआ गठन
अतर्रा (बांदा) : समुदाय, शिक्षकों एवं बच्चों के साथ मिलकर विद्यालयों को आनंदघर बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे रचनाधर्मी स्वप्रेरित शिक्षक-शिक्षिकाओं के मैत्री समूह शैक्षिक संवाद मंच ने गत दिवस अपनी तकनीकी टीम का गठन किया है। शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक प्रमोद दीक्षित मलय ने तकनीकी टीम घोषित करते हुए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग विद्यालयों को आनन्दघर के रूप में बदलाव हेतु करने पर बल दिया।
उक्त जानकारी देते हुए दुर्गेश्वर राय ने बताया कि गत दिवस शैक्षिक संवाद मंच की कार्यकारिणी ने परस्पर विचार-विमर्श करके एक तकनीकी टीम गठित की है जो शैक्षिक संवाद मंच को तकनीकी सहयोग करेगी।
सोशल मीडिया के विविध प्लेटफार्म यथा फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम पर कार्य करने साथ ही बैठकों एवं कार्यक्रम का लाईव प्रसारण करने और वीडियो तैयार करने तथा शैक्षिक फ़िल्में बनाने का काम करेगी। मंच से जुड़े शिक्षक-शिक्षिकाओं को तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। मंच संस्थापक प्रमोद दीक्षित मलय ने पांच सदस्यीय तकनीकी टीम के सदस्यों के नाम घोषित किये जिसमें प्रीति भारती (उन्नाव) , विनीत कुमार मिश्रा (कानपुर देहात) , राहुल मौर्य (प्रतापगढ़) , आलोक श्रीवास्तव (चित्रकूट) तथा दुर्गेश्वर राय (गोरखपुर) को शामिल किया गया है। शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक सदस्यों रामकिशोर पांडेय, चंद्रशेखर सेन, इंसाफ अली तथा बलरामदत्त गुप्त ने चयनित सदस्यों को बधाई दी।
प्रमोद दीक्षित मलय की पुस्तक ‘शिक्षा के पथ पर’ का आवरण जारी
अतर्रा (बांदा) : शिक्षाविद वरिष्ठ साहित्यकार एवं संपादक प्रमोद दीक्षित मलय के शैक्षिक आलेखों का संग्रह ‘शिक्षा के पथ पर’ पुस्तक रूप में छपने जा रहा है। पुस्तक का विमोचन चित्रकूट में १६ से १८ फरवरी को आयोजित शैक्षिक संगोष्ठी एवं शिक्षक सम्मान समारोह में प्रदेश से पधारे शिक्षक-शिक्षिकाओं के मध्य वरिष्ठ शिक्षाविद, समाजसेवी, साहित्यकारों एवं संतो के करकमलों द्वारा किया जायेगा। १४० पृष्ठों की ‘शिक्षा के पथ पर’ पुस्तक अग्रिम बुकिंग पर मात्र १५० / -रुपए में शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं अन्य पाठकों को उपलब्ध होगी। मोबाइल नम्बर ८२९९४४७२७४ या वाट्सएप ९४५२०८५२३४ पर अपनी प्रति बुक करें।
उक्त जानकारी रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज के निदेशक अभिषेक ओझा एवं पुस्तक लेखक प्रमोद दीक्षित मलय ने गत दिवस संयुक्त रूप से पुस्तक का आवरण पृष्ठ जारी करते हुए कहा कि २५० रुपए की पुस्तक अग्रिम बुकिंग पर डाकखर्च सहित मात्र १५० रुपए में पाठक तक पहुँचाई जायेगी। आर्ट डायरेक्टर नीतिश कुमार (नई दिल्ली) ने आकर्षक आवरण पृष्ठ तैयार किया है। पुस्तक की विषयवस्तु के बारे में लेखक प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि पुस्तक में गत आठ-दस वर्षों में उनके द्वारा लिखे गये शैक्षिक आलेख शामिल किए गए हैं जो देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। पुस्तक शिक्षक एवं शिक्षिकाओं सहित अभिभावकों, विद्यार्थियों तथा शिक्षा पर कार्य करने वाले शैक्षिक कार्यकर्ताओं के लिए भी समान रूप से उपयोगी है। जानकारी के अनुसार स्वप्रेरित नवाचारी शिक्षकों के समूह शैक्षिक संवाद मंच ने २०० प्रतियाँ अग्रिम बुकिंग की हैं। प्रकाशक ने लेखक प्रमोद दीक्षित मलय से सम्पर्क कर पुस्तक बुकिंग करने की बात कही है।
शब्दानुशासन की समझ बढ़ाती है पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’
भाषा लोक जीवन में परस्पर कार्य-व्यवहार का साधन, अभिव्यक्ति का हेतु है। भाषा लिखित साहित्य और बोलचाल के रूप में प्रयोग की जाती है। प्राय: न केवल बातचीत में बल्कि लेखन में भी भाषाई अशुद्धियाँ सुनने-पढ़ने को मिलती हैं। हिन्दी भाषा के संदर्भ में बात करूं तो कई शब्द तो अपने अशुद्ध रूप में ही भ्रमवश लोक में शुद्ध मानकर प्रयोग किए जा रहे हैं जैसे उपरोक्त, सुस्वागतम्, अनाधिकार, आद्योपांत, षड़यंत्र, अंतर्ध्यान, लघुत्तम आदि। हालांकि भाषा का सौंदर्य उसके शुद्ध रूप में आनन्द प्रदान करता है किंतु उच्चारण में मुख-सुख, क्षेत्रीयता-आंचलिकता के प्रभाव और अनभिज्ञता के कारण भाषा का स्वरूप विकृत होता है। भाषाई शुद्धता बनाये रखने और विद्यार्थियों, शिक्षकों, परीक्षार्थियों एवं आम पाठकों को भाषा के शुद्ध प्रयोग करने-समझने के लिए मार्गदर्शक पुस्तक की आवश्यकता हमेशा रही है पर इस क्षेत्र में ऐसी मानक पुस्तकों का सर्वथा अभाव रहा है। इस रिक्तता की पूर्ति की है भाषाविद कमलेश कमल विरचित प्रभात प्रकाशन से २०२२ में प्रकाशित ‘भाषा संशय-शोधन’ ने। कमलेश कमल विगत १५ वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन कर रहे हैं, साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर ‘भाषा-संवाद’ कार्यक्रम भी संचालित करते हैं जो बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। ‘भाषा संशय-शोधन’ साहित्यकारों और भाषा अध्येताओं के मध्य चर्चा के केंद्र में है। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रतिभागियों ने इस पुस्तक के महात्म्य को समझा है। वास्तव में यह पुस्तक शब्दानुशासन की समझ बढ़ाने में सर्वथा समर्थ सिद्ध हुई है। आईए, आपको पुस्तक की अंत: सामग्री से परिचित कराता हूँ।
भाषा में शुद्ध वाक्य प्रयोग का पथ सुगम करती पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’ चार खंडों विभाजित है। खंड (क) अंतर्गत व्युत्पत्तिगत और अर्थपरक संशय, खंड (ख) में वार्तनिक एवं व्याकरणिक संशय तथा अर्थपरक विभेद, खंड (ग) में सामान्य वाचिक अशुद्धियाँ तथा अंतिम खंड (घ) अंतर्गत ७५० ऐसे शब्दों की सूची है जिनके प्रयोग में प्रायः वर्तनीगत अशुद्धियाँ देखी जाती हैं। आम जीवन में बहुधा दैनिक कार्य व्यवहार में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो सामान्य अर्थ में एकसमान प्रतीत होते हैं पर उनमें सूक्ष्म अंतर होता है। किसी कार्य के शुरू करने के लिए लोकजीवन में आरंभ और प्रारंभ शब्दों का प्रयोग होता है पर अंतर की दृष्टि से देखें तो किसी कार्य या घटना की शुरुआत आरंभ है जबकि प्रारंभ से आशय विशिष्ट आरंभ से होता है। ऐसे ही विद्यार्थी, शिक्षक व कोई भी व्यक्ति लिखने में आदि एवं इत्यादि का समान अर्थ में प्रयोग करते दिखाई देते हैं। आदि संज्ञा, विशेषण और अव्यय के रूप में प्रयोग होता जैसे आदिकवि, आदिमानव आदि।
अन्य अर्थ में आदि से व्यक्त होता है कि शुरू में जिसकी चर्चा है इस तरह से अन्य, जबकि इत्यादि एक अव्यय है। ऐसे ही आमंत्रण और निमंत्रण शब्दों के अंतर पर दृष्टिपात् करें। आमंत्रण का अर्थ बुलाने या पुकारने से है, लेकिन बुलाये जाने वाले व्यक्ति का जाना बाध्यकारी नहीं है। आप कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं, पत्रिका के लिए रचनाएँ आमंत्रित हैं आदि। आमंत्रित व्यक्ति का कार्यक्रम में पहुँचना या रचनाएँ भेजना उसकी इच्छा पर है बाध्यता नहीं, किंतु निमंत्रण में आना आवश्यक है ऐसा भाव समाहित होता है। अब कार्यवाही और कार्यवाही शब्दों को लेते हैं। कार्यवाही शब्द आजकल एक्शन अर्थात प्रक्रिया को दिखाता है जो ग़लत प्रयोग है। कार्यवाही शब्द क्रिया का द्योतक है। जबकि कार्यवाही किसी बैठक कार्यक्रम का विवरण या प्रोसीडिंग है। सदन में कार्यवाही जारी या स्थिगित होती है तथा अपराधियों पर कार्यवाही की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शब्द को एक शब्द समझ कर प्रयोग किया जाता है। देश के अंदर एवं देश के बाहर अन्य देशों से सम्बंधित व्यवहार पर अंतर्राष्ट्रीय शब्द का ही प्रयोग देखने-पढ़ने को मिलता है जो पूर्णतः अशुद्ध और अनर्थकारी है। देश के अंदर सम्बंधित शब्द अंतर्राष्ट्रीय है तो विभिन्न देशों से परस्पर सम्बंध पर अंतरराष्ट्रीय शब्द प्रयोग उचित होगा। वृंद का अर्थ समूह से है तो वृंदा का आशय तुलसी के पौधे से हैं। परीक्षा का अर्थ है-कीचड़, गीली-मिट्टी जबकि परीक्षा से आशय जांच, परख से है।
खंड़ (ख) में संज्ञा एवं विशेषण शब्दों पर विमर्श किया गया है।
ऐसे संज्ञापदों पर चर्चा है दो शब्दों से मिलकर बनते हैं जैसे लालकिला एक संज्ञा पद है एक विशेष क़िला का नाम है जबकि लाल क़िला में लाल विशेषण है और क़िला संज्ञा। ऐसे सिरका एक खाद्य पदार्थ है किंतु सिर का अर्थ सिर पर धारण करने वाली वस्तु से है। उपर्युक्त और उपर्युक्त शब्दों पर पाठकों को अवश्य ध्यान देना चाहिए। किसी सरकारी, गैर सरकारी पत्र या लेख में ऊपर वर्णित संदर्भ ग्रहण करने हेतु आजकल हर कहीं उपर्युक्त शब्द प्रयोग होता है जो नितांत अशुद्ध है, यहाँ उपर्युक्त शब्द शुद्ध और सार्थक है पर उपर्युक्त लोक व्यवहार में इतना रूढ हो गया है कि वही शुद्ध शब्द प्रतीत होता है। ऐसे ही राजनीतिक शब्द का प्रयोग ख़ूब होता है किंतु यह ग़लत प्रयोग है, शुद्ध शब्द है राजनीतिक। नवरात्रि अशुद्ध और नवरात्र शुद्ध है। संख्यावाचक शब्द छ: बिलकुल ग़लत है तथा छह शुद्ध है पर प्रयोग में छ: किया जा रहा है। ऐसे ही दोपहर, दोपहिया, दोगुना अशुद्ध प्रयोग हैं जबकि दुपहर, दुपहिया और दुगुना शुद्ध हैं। अनुस्वार और अनुनासिक में तो इस समय बहुत गलतियाँ की जा रही हैं। हंस (पक्षी) हंस (हँसना) बराबर हैं। आजकल अनुनासिक की जगह अनुस्वार प्रयोग किया जा रहा है, जैसे-दांत, आंख, मांद, ऊंट, आंत आदि शब्द।
खंड (ग) में सामान्य वाचिक-अशुद्धियों पर बात की गई है। जैसे दान दिया नहीं, किया जाता है। प्रश्न पूछ नहीं, किया जाता है। मन करता नहीं, होता है। जैसे आपसे मिलने का मन हो रहा है, न कि मन कर रहा है। ऐसे ही भारी प्यास नहीं, बहुत प्यास लिखना उचित है। खंड (घ) में ७५० ऐसे शब्दों की सूची है जिनका सामान्यतः प्रयोग अशुद्ध हो जाता है। शुद्ध-अशुद्ध शब्दों की यह सूची बहुत उपयोगी है।
कह सकते हैं कि ‘ भाषा संशय-शोधन अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल। काग़ज़ की गुणवत्ता हल्की है किंतु मुद्रण साफ-सुथरा है। आवरण सादा परंतु मनमोहक है। यह पुस्तक न केवल शिक्षकों, विद्यार्थियों, परीक्षार्थियों बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए अत्यंत लाभप्रद है जिसे हिन्दी भाषा से प्यार है, आत्मीयता है। मुझे विश्वास है भाषाई शुचिता के नवल आयाम स्थापित करती यह पठनीय कृति शब्दानुशासन के मानक स्थापित करेगी।
पुस्तक: भाषा संशय-शोधन
लेखक: कमलेश कमल
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ: २७२, मूल्य: ₹४०० / –
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शिक्षाविद एवं शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा.-९४५२०८५२३४
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