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प्रदेश समिति की बैठक में लिए गए कई महत्त्वपूर्ण निर्णय
अतर्रा (बांदा): शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय वार्षिक समारोह २४ से २६ नवंबर, २०२३ के मध्य चित्रकूट में आयोजित किया जाएगा। इस समारोह में शैक्षिक संगोष्ठी, शैक्षिक मुद्दों पर संवाद, प्रखर शिक्षाविदों के व्याख्यान, वैज्ञानिक प्रयोग प्रदर्शन, शिक्षक सम्मान कार्यक्रम, पर्यटन, नौका विहार, काव्य सम्मेलन, चार पुस्तकों और संवाद पत्रिका के विमोचन सहित कई अन्य गतिविधियाँ आयोजित होंगी।
इस कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न जनपदों के साथ ही अन्य प्रदेशों से शिक्षक-शिक्षिकाओं सहित विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे। उक्त निर्णय गत दिवस मंच के संस्थापक प्रमोद दीक्षित मलय की अध्यक्षता में आयोजित प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में लिया गया। कार्यक्रमों की विस्तृत रूपरेखा और पंजीकरण प्रक्रिया शीघ्र ही घोषित की जाएगी।
उक्त जानकारी देते हुए दुर्गेश्वर राय ने बताया कि शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश गिजुभाई बधेका के आदर्शों का अनुसरण कर विद्यालयों को आनंदघर बनाने की ओर निरंतर प्रयासरत है। बैठक में मंच की नियमित गतिविधियों यथा पुस्तक परिचर्चा, मासिक बैठक, गिजुभाई बधेका की जयंती, मंच का स्थापना दिवस पर कार्यक्रम आदि के आयोजन पर निर्णय लिया गया। जनपद स्तर पर गठित टोलियों का मंडल के अन्य जनपदों में विस्तार का निर्णय लिया गया। मंच की पत्रिका शैक्षिक संवाद हेतु लेख भेजने हेतु आग्रह किया गया।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय के अंतर्गत प्रदेश स्तर पर संचालित विभिन्न प्रकोष्ठों का विलय किया जाएगा ताकि सभी प्रकोष्ठ एक दूसरे से समन्वय स्थापित कर सकें। यह भी तय हुआ कि अब हर महीने के दूसरे शनिवार को बैठक होगी। बैठक में सीमा मिश्र, प्रतिमा यादव, डॉ. श्रवण गुप्ता, माधुरी त्रिपाठी, आलोक श्रीवास्तव, साधना मिश्रा, विनीत मिश्रा, दुर्गेश्वर राय, कमलेश कुमार पाण्डेय, रश्मि मिश्रा, अशोक प्रियदर्शी, रामकिशोर पांडेय, उषा रानी, पवन तिवारी, डॉ. राजकुमार यादव, अर्चना वर्मा, मोनिका सिंह, कुमुद, स्मृति दीक्षित, ऋतु श्रीवास्तव आदि प्रदेश समिति सदस्यों ने प्रतिभाग कर अपने विचार एवं सुझाव दिये।
संस्मरण संग्रह ‘स्मृतियों की धूप-छाँव’ विक्रय हेतु उपलब्ध
संग्रह में शामिल हैं ५३ शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के भावपूर्ण रोचक संस्मरण
अतर्रा (बांदा): शैक्षिक संवाद मंच की प्रकाशन योजना में प्रस्तुत नवीनतम संग्रह ‘स्मृतियों की धूप-छाँव’ विक्रय हेतु उपलब्ध है। संग्रह में ५३ शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के भावपूर्ण, मार्मिक एवं रोचक संस्मरण शामिल हैं।
उक्त जानकारी देते हुए शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक एवं ‘स्मृतियों की धूप-छाँव’ के संपादक शिक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि बेसिक शिक्षा में कार्यरत ५३ रचनाकार शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के खट्टे-मीठे अनुभव संग्रह में शामिल किये गये हैं। गद्य की संस्मरण विधा पर केंद्रित इन लेखों में जीवन के तमाम रंग घुले-मिले हैं। रचनाकारों ने मां, पिता, गुरु, दादी, नानी, भाई, मित्र के साथ बिताये पलों को लेखनी से काग़ज़ पर उतारा है तो पालतू पशु गाय और कुत्तों पर भी लिखा गया है। चिड़ियों में बुलबुल, गौरैया के घोंसलों और अंडों से निकलते चूजों, बंदरों की शैतानियों को भी उकेरा गया है।
बचपन की कामिक्स की दूकान, आंगन के खेलकूद, खेत-खलिहान और बैलों के सान्निध्य का जीवंत वर्णन भी हुआ है और अजनबी लोगों से मिले अपनापन की महक भी बिखरी है। नेचुरल शेड येलो पेपर के २३२ पृष्ठों में जीवन की खुशी, पीर, वेदना, कसक, उपलब्धि, सहकार, समन्वय, सम्बंध, सहानुभूति और सामंजस्य की स्याही ने अद्भुत चित्र रचे हैं। राज भगत के मनमोहक आवरण और वरिष्ठ संस्मरणकार जितेन्द्र शर्मा, देहरादून की भूमिका से संग्रह समृद्ध हुआ है। कवि, लेखक एवं संपादक महेश चंद्र पुनेठा ने विशेष टिप्पणी की है और कहानीकार रामनगीना मौर्य, लखनऊ तथा शिक्षाविद् आलोक कुमार मिश्रा दिल्ली की फ्लैप पर अंकित टिप्पणी ने संग्रह को ख़ास बना दिया है।
रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित ‘स्मृतियों की धूप-छाँव’ पाठकों, साहित्यकारो एवं समीक्षकों द्वारा ख़ूब सराही जा रही है। पठन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए संग्रह को पाठकों से १ से ५ जून तक मिलने वाले आर्डर पर विशेष छूट पर २५० रुपए में डाक ख़र्च सहित उपलब्ध कराया जा रहा है। ख़ुशी की बात है कि पहले दिन ही पचास प्रतियाँ बिक गयीं। पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए संपादक प्रमोद दीक्षित मलय ने कहा कि वह पढ़ने-लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम करते हुए हिन्दी की अन्य विधाओं पर भी संग्रह लाने वाले हैं।
लेखन में चित्रात्मकता, लय-प्रवाह एवं सरलता आवश्यक: प्रमोद दीक्षित
शैक्षिक संवाद मंच की लेखन संवाद कार्यशाला संपन्न
अतर्रा (बांदा): लेख पाठक के लिए लिखा जाता है। इसलिए इसका सरस, सरल और प्रवाहमय होना आवश्यक है ताकि पाठक जब पढ़ना आरम्भ करें तो उसके समक्ष घटनाओं का चित्र उपस्थित होने लगे और वह मंत्रमुग्ध होकर पढ़ता चला जाये। तथ्यों की प्रामाणिकता और भाषायी शुद्धता लेख को लोकप्रिय और सहज स्वीकार्य बना देती है।
जानकारी देते हुए शिक्षक साहित्यकार दुर्गेश्वर राय ने बताया कि उक्त उद्गार मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ ने शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा पुस्तक प्रकाशन योजना के अंर्तगत गत दिवस आयोजित ऑनलाइन लेखन संवाद कार्यक्रम में उपस्थित रचनाकारों के सम्मुख व्यक्त किये।
संवाद करते हुए प्रमोद दीक्षित ने लेखन के सभी पहलुओं पर रचनाकारों का मार्गदर्शन किया। शीर्षक की महत्ता बताते हुए कहा कि शीर्षक संक्षिप्त और उत्सुकता बढ़ाने वाला होना चहिए। ऐसे शीर्षक से बचना चाहिए जो लेख की विषयवस्तु को बिल्कुल स्पष्ट करने वाले और बड़े हों। लेख की भाषायी शुद्धता पर ज़ोर देते हुए अनुस्वार, अनुनासिक, अर्धविराम, पूर्णविराम, सम्बोधन चिह्न, उद्धरण चिह्न आदि के नियमों को विस्तारपूर्वक समझाया। लेख में वाक्य छोटे होने चाहिए ताकि पाठक के लिए अर्थबोध सहज ग्राह्य बन सके। शब्दों, भावों और विचारों के दुहराव से बचना चाहिए जिससे पाठक न ऊबे। तथ्यों का अपुष्ट होना, स्वयं की अत्यधिक चर्चा करना ऐसे नकारात्मक पहलू हैं जो लेख को कमतर और प्रवाह बाधित करते हैं। लेख का आकार पूर्व निश्चित करके तदनुरूप लेख को आकार दें॥ लेख लिखने हेतु कम से कम चार चरणों की योजना बनाना चाहिए। पहले चरण में तथ्यों और सूचनाओं का संग्रहण, दूसरे चरण में कच्चा लेखन, तीसरे चरण में स्वयं द्वारा परिमार्जन, संशोधन एवं परिवर्धन और चौथे चरण में किसी साहित्यकार से परामर्श पश्चात लेख को अंतिम रूप देना चाहिए।
यात्रा वृत्तांत की महत्ता को रेखांकित करते हुए आपने अवलोकन को अति महत्त्वपूर्ण बताया। लेख सूचना मात्र न रहे बल्कि उसमे भ्रमण स्थल के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, खानपान, रहन सहन आदि का यथोचित वर्णन आवश्यक है। स्थलों का सम्बन्धित कालखण्ड में प्रयुक्त नाम ही प्रयोग करें। लिखने के लिए पढ़ने पर ज़ोर देते हुए अपने कहा कि एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा लेखक हो सकता है।
इस आनलाइन यात्रा वृत्तांत लेखन संवाद कार्यक्रम में जयंती कुंडु, स्मृति दीक्षित, सुधा रानी, दीप्ति राय, हरियाली श्रीवास्तवा, दुर्गेश्वर राय, अभिलाषा, सीमा मिश्रा, सुनीता वर्मा, विवेक पाठक, प्रेमनाथ नागर, वंदना यादव, रिंपू सिंह, अशोक प्रियदर्शी, दीपक गुप्ता, संतोष कुशवाहा, कुमुद, अनीता मिश्रा, श्रुति त्रिपाठी, रश्मि मिश्रा, कंचन बाला, मंजू वर्मा, माधुरी त्रिपाठी, अनिल राजभर, प्रतिमा यादव, डॉ सुमन गुप्ता, अमिता सचान, रश्मि तिवारी एवं मीरा रविकुल आदि रचनाकारों ने प्रतिभाग किया।
साझा संग्रह ‘क्रांतिपथ के राही’ के आवरण का लोकार्पण
३१ शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के लेख शामिल
अतर्रा (बाँदा): रचनाधर्मी स्वप्रेरित शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के मैत्री समूह शैक्षिक संवाद मंच देश की स्वतंत्रता के अमृत काल के अवसर पर स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने वाले क्रांतिकारियों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर आधारित जीवनीपरक लेखों के संग्रह को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने हेतु योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहा है। इस योजना में पहला संग्रह ५१ क्रांतिकारियों एवं गांधीवादी राजनीतिक नायकों के जीवन पर केंद्रित ‘राष्ट्र साधना के पथिक’ का प्रकाशन किया जा चुका है जिसमें १८५७ से १९४७ तक के कालखंड को लिया गया था।
इस श्रंखला में ‘क्रांतिपथ के राही’ नाम से दूसरी पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है, जिसमें ३१ क्रांतिकारियों पर जीवनीपरक लेख शामिल हैं। गत दिवस पुस्तक के आवरण का लोकार्पण रचनाकारों के वाट्सएप समूह में संपादक प्रमोद दीक्षित मलय द्वारा किया गया। रचनाकारों ने आवरण पृष्ठ को विषय से जुड़ा हुआ, प्रेरक एवं आकर्षक बता ख़ुशी व्यक्त की।
साझा संग्रह ‘क्रांतिपथ के राही’ के आवरण पृष्ठ का लोकार्पण कर जानकारी देते हुए संपादक प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि बेसिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षक एवं शिक्षिकाओं द्वारा साहित्य की जीवनी विधा पर केंद्रित लेखों का साझा संग्रह ‘क्रांतिपथ के राही’ का आवरण पृष्ठ गत दिवस रचनाकारों के मध्य आनलाइन माध्यम से वाट्सएप समूह में लोकार्पित किया गया। प्रकाश्य पुस्तक में ३१ रचनाकार शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के ओजपूर्ण लेखों को स्थान मिला है।
रचनाकारों ने तिलका मांझी, चाफेकर बन्धु, उल्लासकर दत्त, राणा बेनीमाधव, वासुदेव बलवंत फड़के, राजा राव रामबख्स सिंह, भगवतीचरण वोहरा, शचीन्द्रनाथ सान्याल, बारीन्द्र घोष, मणीन्द्रनाथ बनर्जी, राजा देवीबख्स सिंह, अलगू यादव, पारसनाथ राय, पब्बर राम, मुनीश्वरदत्त उपाध्याय, रानी गाइदिनल्यू, महादेव चौबे, रानी ताईबाई, मातंगिनी हाजरा, मातादीन बाल्मीकि सहित स्वतंत्रता आंदोलन में काशी की भूमिका, काकोरी कांड, स्वाधीनता संघर्ष में तवायफों की भूमिका, हापुड़ के शहीद, चौरीचौरा कांड, स्वातंत्र्य समर में मिठाईयों की दूकानों की भूमिका, क्रांतिकारियों की फांसी का साक्षी बांदा का भूरागढ़ किला, सीतापुर के दो क्रांतिकारी, भील बालिका कालीबाई एवं पृथ्वीसिंह आजाद आदि क्रांतिकारियों एवं घटनाओं पर लेखकों ने शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। आवरण पृष्ठ चित्रकार राज भगत ने तैयार किया है। पुस्तक का प्रकाशन रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज द्वारा किया जा रहा है।
इस जीवनी लेख संग्रह ‘क्रांतिपथ के राही’ में शामिल शिक्षक-शिक्षिका रचनाकारों के नाम एवं जनपद निम्नवत् हैं-दुर्गेश्वर राय एवं दीप्ति राय (गोरखपुर) , प्रीति भारती (उन्नाव) , डॉ. कुमुद सिंह, डॉ. श्रवण कुमार गुप्त, कुमुद, डॉ. अरविंद द्विवेदी (वाराणसी) , शुभा देवी, दीक्षा मिश्रा एवं सीमा मिश्रा (फतेहपुर) , शीला सिंह, रिम्पू सिंह एवं संतोष कुशवाहा (गाजीपुर) , अपर्णा नायक (महोबा) , अनीता मिश्रा (बलरामपुर) , रश्मि तिवारी, मीरा रविकुल एवं प्रमोद दीक्षित मलय (बांदा) , अंजू वर्मा (अयोध्या) , शंकर कुमार रावत (बलिया) , विवेक पाठक (गोण्डा) , कौशर जहाँ सिद्दीकी (सोनभद्र) , राजकुमार सिंह, पूजा चतुर्वेदी एवं सुषमा मलिक (हापुड़) , डॉ. पूजा यादव एवं मृदुला वर्मा (कानपुर) , अवनीश यादव (लखीमपुर) , ममता देवी (सीतापुर) , साधना मिश्रा (प्रतापगढ़) , शिवाली जायसवाल (मेरठ) तथा विजयप्रकाश जैन (राजस्थान) । पुस्तक का विमोचन भव्य समारोह में रचनाकारों, पाठकों एवं साहित्यकारों के मध्य किया जायेगा। रचनाकारों ने ‘क्रांतिपथ के राही’ पुस्तक को छात्रों, शिक्षकों, शोधार्थियों एवं पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी बताया।
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