शिक्षा के पथ पर बढ़ते कदम
• डॉ. सतीश चन्द्र भगत
बच्चों की शिक्षा के लिए घर-परिवार से लेकर विद्यालय के शिक्षक और समाज के लोग भी चिंतित रहा करते हैं। बड़ी-बड़ी योजनाएँ सरकारी स्तर पर बनती हैं। भारत शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु था। यहाँ नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय जैसे अनेक शिक्षण संस्थान थे, जहाँ भारत के अलावे अन्य देशों से भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी आते थे। लेकिन, आज स्थिति इसके विपरीत है।
भारत की शिक्षा की बेहतरी हेतु बडे़-बड़े आयोग आए। राधाकृष्णन आयोग, कोठारी आयोग आदि और अब नई शिक्षा नीति-२०२० भी। समय-समय पर शिक्षा में नये-नये प्रयोग हो रहें हैं। शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षित भी किया जाता है। परन्तु, लगभग सभी दिन समाचार पत्रों में शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है, सुधारने की ज़रूरत है जैसे समाचार आते रहते हैं। सरकारी स्तर पर काफ़ी प्रयास भी किया जाता है, लेकिन, शिक्षा के मार्ग पर बाधाओं की भरमार है। ऐसे में बहुत सारे शिक्षक आगे बढ़कर नये-नये तकनीकों का प्रयोग भी करते हैं। कुछ हद तक सफलता भी मिलती है। बहुत सारी पुस्तकें भी लिखी गई और लिखी जा रही हैं। इसी कड़ी में एक अच्छी और पठनीय पुस्तक शिक्षक लेखक प्रमोद दीक्षित मलय ने राष्ट्रीय बाल संगोष्ठी मानिला (उत्तराखंड) में ९ जून-२०२४ को हस्तगत कराया। जिसका नाम है-शिक्षा के पथ पर। नयनाभिराम आवरण पृष्ठ है पुस्तक का।
लेखक प्रमोद दीक्षित मलय ने इस पुस्तक को अपने माता-पिता और रचनाधर्मी शिक्षक-शिक्षिकाओं को समर्पित किया है। लेखक अपनी बात ‘शिक्षा के पथ पर बढ़ते हुए’ शीर्षक से घर-परिवार, शिक्षक, अभिभावक सभी के प्रति आभार व्यक्त किया है। इस पुस्तक की भूमिका प्रेमपाल शर्मा ने ‘सही शिक्षा का रास्ता’ शीर्षक से लिखा है। वे लिखते हैं कि प्रमोद दीक्षित मलय जैसे संवेदनशील शिक्षक की पुस्तक ‘शिक्षा के पथ पर’ हर शिक्षक और अभिभावक के पास होनी चाहिए।
इस पुस्तक में २१ आलेख हैं। सभी आलेख एक से बढ़कर एक हैं। विभिन्न शीर्षकों में विभक्त आलेखों में पहला आलेख है-‘भाषा की कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अवसर’। इस आलेख में लेखक ने कहा, “बच्चों को मौलिक चिंतन के पर्याप्त अवसर दिये जाने चाहिए।”
दूसरा आलेख ‘सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को गति देते हैं समूह गीत’ शीर्षक से लिखा गया है। लेखक प्रमोद दीक्षित मलय का कहना है कि शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में गीतों का महत्त्व निर्विवाद स्वीकार्य है। आगे उनका कहना है कि “बच्चों के पढ़ना-लिखना सीख सकने में गीतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।” यह तो निश्चित रूप से बच्चों को कोई विशेष समझने में सहायक सिद्ध होगा, इसमें दो राय नहीं है।
‘और ताला खुल गया’ लेख में लेखक ने कहा कि एक संवेदनशील शिक्षक जो उस मनोविज्ञान को समझता हो, जो गाँव के किसान-मज़दूर का रोष समझता हो, उनका दर्द समझता हो, उनके साथ बातचीत करने से रास्ता निकलता है। ऐसे अनुभव से भरा हुआ लेख वास्तव में पठनीय ही नहीं समसामयिक भी है। आगे लेख है ‘बाल संसद के रास्ते’ बच्चों के विकास में इस आलेख की अहम भूमिका है। एक लेख है “बदलाव की आधारभूमि बनती दीवार पत्रिका” ऐसी गतिविधियों के माध्यम से पत्रिका के बारे में बच्चों की समझ बढ़ सकती है और अधिक दिनों तक उनके स्मृति पटल पर अंकित भी रहेगा।
‘शैक्षिक संसाधन और गुणवत्ता: कुछ ज़रूरी प्रश्न’ लेख भी सराहनीय है। ‘विज्ञान की कक्षा में एक दिन’ शीर्षक लेख में लेखक ने कहा है कि “रटवाने की बजाय बच्चों को उनके परिवेशीय ज्ञान से जोड़ते हुए चर्चा कर समझ विकसित करते हुए अधिकाधिक प्रश्न करने और अभिव्यक्ति के सहज अवसर उपलब्ध कराने चाहिए।”
‘रोचक गतिविधियों द्वारा भाषा शिक्षण: एक प्रयोग’ लेख भी अच्छा है। लेखक का कहना है कि “यदि शिक्षक सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में ऐसी रोचक खेल गतिविधियाँ जोड़ सकें तो बच्चों का न केवल सीखना आनन्दमय हो सकेगा बल्कि वे प्रतिदिन बिना नागा विद्यालय पहुँचने को लालायित भी रहेंगे।” आलेख “शिक्षक के बनने में किताबों की भूमिका: मेरे अनुभव।” में लेखक का विचार है कि शिक्षक यदि पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकों का अध्ययन करते हैं तो निश्चित रूप से बच्चों के प्रश्नों को रोचक ढंग से समझा सकते हैं। स्वाभाविक है कि परिणाम अच्छे आएंगे।
कुछ कविताएँ भी आगे दी गई है, जो इस प्रकार है-उसे कुछ नहीं आता, सुनो शिक्षकों, सुबह की घंटी, शाम की घंटी, बच्चे, होमवर्क। सभी कविताएँ सवाल उठाती और नये रास्ते खोलती दिखती हैं। ‘ दिवास्वप्न के आलोक में वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य, बच्चों की रचनात्मकता में बाधक होमवर्क, ज्ञान सर्जना का मुक्त प्राकृतिक मंच है शैक्षिक भ्रमण, प्राथमिक शिक्षा में विज्ञान शिक्षण की चुनौती भरी राह, कक्षा में बच्चों से बातचीत भी सुन्दर और पठनीय आलेख हैं जिनमें शिक्षा के विभिन्न मुद्दों पर समस्याओं के समाधान दिए गए हैं।
महिला शिक्षा: अतीत से वर्तमान तक एक महत्त्वपूर्ण लेख है, क्योंकि महिलाओं को शिक्षित होना किसी भी परिवार, समाज और देश के लिए बहुत ज़रूरी है। ” पढ़ने की संस्कृति पर स्कूली शिक्षा का दबाव, गिजूभाई बधेका: शैक्षिक प्रयोगों का धनी व्यक्तित्व, उम्मीद जगाते शिक्षकों के सम्मान का दिन, बालिकाओं में शिक्षा के प्रति रुचि जगाता मीना मंच, बच्चों की रचनात्मकता को दिशा देती दीवार पत्रिका आदि आलेख भी ‘शिक्षा के पथ पर’ पुस्तक के उपयोगी और पठनीय आलेख हैं।
अस्तु, पुस्तक के लेखक प्रमोद दीक्षित मलय को सुन्दर और पठनीय पुस्तक के लिए बहुत-बहुत साधुवाद। रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित साफ-सुथरी छपाई और पीले मोटे काग़ज़ पर मुद्रित ‘शिक्षा के पथ पर’ पाठकों, समीक्षकों के मध्य सराही जायेगी।
समीक्षक– डॉ. सतीश चन्द्र भगत
बनौली, दरभंगा (बिहार)
मो- ९९३४२२४७२२
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