Table of Contents
वर्टिकल फॉरेस्ट: गगनचुंबी इमारतों में लहलहाते जंगल
वर्टिकल फॉरेस्ट: गगनचुंबी इमारतों में लहलहाते जंगल
• प्रमोद दीक्षित मलय
प्रकृति सृष्टि रचना का आधार है। प्रकृति आनंद का उत्स है। प्रकृति दिव्यतम है, अन्यतम है। वह प्रीतिकर स्नेह रसागार है। प्रकृति जीवन-राग का मधुर आलाप है, आलंबन है। प्रकृति की परिधि से परे कुछ भी नहीं। प्रकृति रोग-शोक नाशक है। प्रकृति प्राण प्रदायिनी अधिष्ठात्री देवी है। प्रकृति का अस्तित्व न केवल मानव अपितु समस्त प्राणियों को जीवनी शक्ति एवं ऊर्जा भेंट करता है।
प्रकृति और मानव के सम्बंध अन्योन्याश्रित हो परस्पर पूरक हैं, सह-अस्तित्व का सायुज्य पथ है। तभी तो मानव सभ्यता का विकास नदियों के तीर पर निर्मल नीर की तृप्ति और अरण्य की सुखद छांव की सुख-संतुष्टि में ही सम्भव हुआ है। मानव को गिरि-कानन में ही ज्ञान का दर्शन हुआ। मानव ने प्रकृति सम्पदा की समृद्धि से प्रेरित हो विकास एवं विस्तार की राह पर पग धरे। विकास यात्रा के क्रम में मानव मन में प्रकृति से अत्यधिक प्राप्त कर लेने के लोभ-लालची भाव ने दृष्टि बदली। फलत: मानव विकास के नाम पर प्रकृति के विनाश की राह पर चल पड़ा। विकास की अंधी दौड़ में वह प्रकृति एवं मानव के आत्मीय रिश्ते को भुला बैठा। जंगल, पहाड़ कटने लगे। सरिताओं के हृदय पर मशीनें गरजने लगीं।
प्रकृति की लूट में आगे निकलने की होड़ बढ़ी, प्रकृति कराहने लगी। दुखद परिणाम तो आने ही थे। धरा के आभूषण हरित कानन कटे तो ऋतुचक्र असंतुलित हुआ। असमय वर्षा एवं सूखा-बाढ़ नियति बनी। धरती के ताप में वृद्धि हुई, मानव जीवन पर अस्तित्व संकट आ खड़ा हुआ। कभी महामारी के नाम पर तो कभी सुनामी बन कर प्रकृति मानव को चेतने-संभलने का संदेश देती रही पर मानव बजाय सोचने-समझने-सीखने के जंगल दर जंगल काट धरती के वक्षस्थल पर कंक्रीट के विशाल कानन निर्मित करता रहा। जहाँ पथिक को न तरु-छांव है न पक्षियों को बसेरा। कारखानों से निकले धुएँ एवं अपशिष्ट जल, वाहनों के कर्कश तीव्र कोलाहल ने वातावरण को प्रदूषित कर दिया।
शहर-शहर गगनचुंबी इमारतों के टॉवर खड़े हुए जिनके अपार्टमेंट के फ़्लैट में क़ैद जीवन को न शुद्ध हवा की प्राप्ति है न सूर्य के प्रकाश की। नीले आसमान में चमचमाती तारावलियों को देख मोहित हो जाना शायद उनके नियति में ही नहीं। शीतल चांदनी के स्पर्श को महसूस करना तो कल्पना की बात है। पेड़-पौधों की सुखद मलय बयार से वंचित कृत्रिमता की चादर ओढ़े जी रहे नगरों में बीमारी का फैलाव तो है पर प्रकृति का नहीं। प्रकृति से मानव का रिश्ता टूटा तो समस्याओं की बाढ़ आ गई। रक्तचाप, मधुमेह, कर्क रोग जीवन का अंग बनते जा रहे हैं। अनिद्रा, असंतोष, अधैर्य, असंवेदनशीलता, तनाव एवं नकारात्मक विचारों की जड़ें गहरी होती जा रही हैं।
ऐसे संकट के समय में इटली निवासी नगर वास्तुकार स्टेफनो बोएरी ने वर्टिकल फॉरेस्ट की कल्पना की जहाँ मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को मजबूती दी जा सके। जहाँ गगनचुंबी इमारतों के अपने फ़्लैट में भी मानव प्रकृति का सान्निध्य एवं स्नेह प्राप्त कर आनंदित हो सके। वर्टिकल फारेस्ट्री गगनचुंबी बहुमंजिला इमारतों में जंगल उगाने एवं विकसित करने की अत्याधुनिक तकनीक एवं कला है जो पूरी दुनिया में बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है, इसमें बालकनी, छतों में पेड़-पौधे एवं झाड़ियाँ विकसित की जाती हैं।
वर्ष २००० में स्टेफनो बोएरी अपने किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में दुबई गए। वहाँ बहुमंजिली इमारतें देखी जिनमें अत्यधिक मात्रा में कांच और सिरेमिक का प्रयोग किया गया था। उससे परावर्तित होकर सूर्य का प्रकाश नीचे धरती के ताप को बढ़ा रहा था। यह देख कर स्टेफनो बोएरी के मन में ऐसी इमारतें बनाने का विचार उभरा जो हरीतिमा से युक्त हो।
वहाँ से वापस आकर वह अपने विचार एवं सपने को साकार करने हेतु इटली के फैशन शहर मिलान में २००७ में ‘वर्टिकल फॉरेस्ट’ पर आधारित बहुमंजिला इमारत के काम में जुटे जो २०१४ में पूरा हुआ। ८० मीटर एवं ११२ मीटर ऊंची दो बहुमंजली इमारतों में ८०० से अधिक बड़े एवं मझोले पेड़ तथा ५००० से अधिक लघुकाय पौधे एवं झाड़ियां-लताएँ विकसित किये गये। दुनिया ने जब ऐसी इमारतें देखी जिसकी बालकनी, खिड़कियों और छतों पर इतने पेड़-पौधे लगे थे जो धरती के लम्बवत एक जंगल ही थे, तब वह वर्टिकल फॉरेस्ट्री से परिचित हुई।
फॉरेस्ट विकसित होने के बाद इमारत में ताजी स्वच्छ प्राणवायु का प्रवाह तो बना ही साथ ही पर्यावरण में संतुलन भी स्थापित हुआ है। अब ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहती है और यह पेड़-पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य विषैली गैसों को सोख कर परिवेश को प्राणवायु से समृद्ध एवं समुन्नत भी रखते हैं। अब ये इमारतें केवल कंक्रीट का खड़ा हुई कोई नीरस बेजान ढांचा भर नहीं हैं बल्कि अब इनमें प्रकृति के साथ जुड़ाव का जीवंत दर्शन एवं आत्मीयता भी अभिव्यक्त हुई है। कह सकते हैं कि वानिकी की यह कला प्रकृति एवं मानव के पुरा सम्बन्धों की नवल व्याख्या है, नूतन परिभाषा है जिसमें जीवन के इंद्रधनुषी रंग खिले हुए हैं, जिसमें सह-अस्तित्व का आत्मीय राग पत्तों एवं फूलों की हंसी में गुंजित हो रहा है।
यह कृत्रिमता की चादर पर प्रकृति की स्नेहिल स्निग्ध छाप है। ये इमारतें अब प्रकृति के सौंदर्य एवं समृद्धि को संजोए हुए पखेरुओं को आमंत्रण देती हैं। सैकड़ों पेड़-पौधों एवं पुष्प-लताओं को देख कर स्वाभाविक रूप से हजारों की संख्या में पक्षी भोजन एवं आश्रय की तलाश में यहाँ आए और स्थाई बसेरा बना लिए। दिनभर पक्षियों के मधुर कलरव से फ़्लैट गुंजायमान रहते हैं। डालियों पर सरपट दौड़ती गिलहरी किसका मन न मोह लेंगी। फल कुतरते तोते किसे न प्यारे लगेंगे। सुबह खिड़की खोलते ही सैकड़ों रंग-बिरंगी तितलियाँ दिन की शानदार शुरुआत करती हैं। यहाँ निवास करने वाले व्यक्तियों को सुख तो मिला ही साथ ही उसे प्रकृति के सान्निध्य में जीवनयापन का आनंद भी प्राप्त हुआ। शोध निष्कर्ष है कि इससे परिवारों में पारस्परिक प्रेम भाव अधिक मधुर एवं प्रगाढ़ हुए। कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ी और ख़ुशी का पैमाना भी।
इटली से शुरू हुआ वर्टिकल फॉरेस्ट्री आधारित इमारतों का निर्माण लोकप्रिय होने लगा और चीन ने भी नानजिंग शहर में एक ऐसी ही इमारत तैयार की जो प्रतिदिन ६० किलो ऑक्सीजन का उत्पादन करती है और वर्ष में २५ टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस सोखती है। इसमें लगभग १००० पेड़-पौधों एवं दो दर्जन से अधिक स्थानीय जाति की झाड़ियाँ एवं लताएँ लगाते गये हैं। इटली के प्रयोग के बाद चीन, अमेरिका, नीदरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस एवं भारत में वर्टिकल फॉरेस्ट के महत्त्व को स्वीकार करते हुए ऐसी बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जा रहा है जहाँ पर लघु कानन विकसित हो। वर्टिकल फारेस्ट में लगाए जाने वाले पौधों में परंपरागत बड़े पेड़ों के साथ ही छायादार एवं शोभाकारी तथा औषधीय पौधों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके साथ ही स्थानीय परिवेश में सहजता से विकसित हो जाने वाले ऐसे पौधे लगाए जा रहे हैं जो ऑक्सीजन का ज़्यादा उत्पादन करते हैं और विषैली गैसों को अधिक सोखते हैं।
भारत की पहली वर्टिकल फॉरेस्ट इमारत बंगलुरु में ‘माना फारेस्टा’ के नाम से विकसित हुई है। इस १४ मंजिला गगनचूमती इमारत में सैकड़ों पेड़-पौधों, लताओं एवं झाड़ियों ने इमारत को नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान किया है। इसके साथ ही हैदराबाद में भी एक वर्टिकल फॉरेस्ट इमारत आकार ले रही है।
वर्टिकल फॉरेस्ट से न केवल वायु शुद्ध हुई है बल्कि ध्वनि प्रदूषण में भी कमी का अनुभव किया गया है। पूरे इमारत के तापमान को भी कम करने में वर्टिकल फॉरेस्ट की बड़ी भूमिका स्वीकार की गई है। निश्चित रूप से वर्टिकल फॉरेस्ट्री प्रकृति एवं मानव के सम्बंधों के नूतन आयाम गढ़ रही है।
प्रमोद दीक्षित मलय
सम्पर्क: लेखक शिक्षक एवं शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
यह भी पढ़ें-
2 thoughts on “वर्टिकल फॉरेस्ट”