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मेरी यादों के कुछ किस्से
मेरी यादों के कुछ किस्से
यादों की बहती नदी के एक किनारे पर बैठा है तम्बोली और दूसरी ओर नोकिया का ३३१५ मोबाइल। उस नदी में उसका मन गौते लगाते हुए पहुँचता है उसके नज़दीक। एक हथेली पर उस मोबाइल को रखकर दूसरी हथेली से मानों उसे सहला रहा हो। क्योंकि एक लंबे समय के बाद यादों में ही सही वह एक दूजे से मिल तो रहे हैं।
बात है ये लगभग दो दशक पुरानी जब तम्बोली की सोच से काफ़ी दूर था ये मोबाइल। उसे लगता था ये सिर्फ़ पैसे वालों के लिए बना विलासिता एवं दिखावे का एक साधन मात्र है। लेकिन शनै-शनै उसका मन भी उसको पाने के लिए मचलने लगा। क्योंकि मोबाइल रखने वालों का स्टाइल, बात करने का तरीक़ा उसे आकर्षित करने लगा।
समय के साथ जब मोबाइल रखने वालों की तादाद में इज़ाफ़ा होने लगा तब तम्बोली भी उसे पाने के लिए अब हर संभव कोशिश करने लगा। कुछ ही समय के बाद उसके दोस्त का एक पुराना मोबाइल नोकिया ३३१५ उसके हाथ लगा। एक नया सिम कार्ड शान से खरीदने निकला जिसकी क़ीमत हज़ार रुपए की थी। अपनी सेविंग से बचाया पैसा आज सिम कार्ड खरीदने के काम आया। शुरुआत में तो मेरी यादों के कुछ किस्से
यादों की बहती नदी के एक किनारे पर बैठा है तम्बोली और दूसरी ओर नोकिया का ३३१५ मोबाइल। उस नदी में उसका मन गौते लगाते हुए पहुँचता है उसके नज़दीक। एक हथेली पर उस मोबाइल को रखकर दूसरी हथेली से मानों उसे सहला रहा हो। क्योंकि एक लंबे समय के बाद यादों में ही सही वह एक दूजे से मिल तो रहे हैं। बात है ये लगभग दो दशक पुरानी जब तम्बोली की सोच से काफ़ी दूर था ये मोबाइल। उसे लगता था ये सिर्फ़ पैसे वालों के लिए बना विलासिता एवं दिखावे का एक साधन मात्र है। लेकिन शनै-शनै उसका मन भी उसको पाने के लिए मचलने लगा। क्योंकि मोबाइल रखने वालों का स्टाइल, बात करने का तरीक़ा उसे आकर्षित करने लगा।
समय के साथ जब मोबाइल रखने वालों की तादाद में इजाफा हुआ कुछ नज़दीकी लोगों को कॉल किया और कुछ लोगों को एस एम एस के जरिये अपना मोबाइल नम्बर भेज दिया। ख़ुशी के तो ठिकाने न थे। सोते समय सिरहाने रखना ताकि यदि कोई कॉल कर दे तो उठना न पड़े। वैसे कॉल करने वाला कोई नहीं था सिर्फ़ कंपनी कॉल कॉलर के। मोबाइल को साथ में रखना, आसपास कोई दिखाई दे तो बेवजह मोबाइल जेब से निकालकर उसे देखकर वापस जेब में रखना। टाइम सेट कर अलार्म लगा देना ताकि एक निश्चित समय के बाद वह बजे और लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित हो।
अलग अलग रिंगटोन्स जो मोबाइल में होती उन्हें बजाकर देखना, साँप वाला गेम घण्टो तक खेलते रहना और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि जाने अनजाने नम्बर मोबाइल में डायल करना और लोगों को मिसकॉल देना और मजे लेना उन्हें, परेशान करना। यदि गलती से कोई वापस कॉल करे तो अपनी गलती मासूमियत से स्वीकार करना “भैया गलती से बटन दब गई होगी” और यदि उसके नम्बर पर कोई मिसकॉल आये तो मोबाइल लेकर बैठ जाना कि दोबारा आने पर अगले को मिसकॉल छोड़ने का मौका ही नहीं दिया जाएगा।
धीरे-धीरे सब बदलता गया अब आज सबकुछ इतना एडवांस हो चला कि न वह मोबाइल की रिंगटोन न ही वह मिसकॉल का चलन। एक बार मोबाइल रिचार्ज करवाना है और अनलिमिटेड कॉल, विडियो, चेटिंग बस ऐसा लगता-लगता जैसे सबकुछ हमारे पास हो हमारे हाथ हो। यादों में ही बस के रह गई वह बातें कि मिसकॉल देने का भी एक अपना मज़ा था। काश! वह दिन लौट के वापस आ जाय। लेकिन अब तम्बोली इस किनारे और यादें उस किनारे, अब पुनः दोनों का मिलन मुश्किल है।
नाम: अतुल भगत्या तम्बोली
पिता: मोहनलाल भगत्या
जन्म: १८ / ०५ / १९८६
पता: सनावद ज़िला खरगोन मध्यप्रदेश
४५११११
शिक्षा:
१. बी.ई.एम.एस.-भोपाल
२. बी. कॉम-इंदौर
३. एम.बी.ए. (मानव संसाधन प्रबंधन) इंदौर
४. एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) सनावद
५. एम.ए. (हिन्दी साहित्य) सनावद
६. बी.एड। सनावद
व्यवसाय: शिक्षण कार्य के साथ साथ…जो कार्य अच्छा लगे उस कार्य को करके अपने जीवन यापन हेतु साधन जुटाना।
लेखन: वर्ष २०१२ से काव्य लेखन शुरू किया। जिसमें हिन्दी एवं निमाड़ी लेखन दोनों शामिल है। मंचो पर अपनी हास्य रचनाओं के साथ २०१७ से अब तक ५० से ज़्यादा कवि सम्मेलनों में शामिल। हिन्दी एवं निमाड़ी के प्रचार-प्रसार हेतु सदैव समर्पित।
प्रकाशित पुस्तक: “भावों की अंजुरी” वर्ष २०१९ में माहिष्मती प्रकाशन महेश्वर से प्रकाशित।
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