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भव्य होते विवाह आयोजन और टूटते प्रणय सम्बंध
प्राय: देखा जा रहा है कि, पहले की अपेक्षा विवाह आयोजन काफ़ी भव्य स्तर पर संपन्न किए जा रहे हैं और दर्शाए भी जा रहे है। जैसे एक प्रतिस्पर्धा चल रही है सामाजिक तौर पर अपने आप को रहीस दिखाने की, शादियों में पहले जैसे सम्मान जनक कोई बात अब दिखाई नहीं देती।
आजकल एक विवाह करने में करोड़ों की लागत आती है, जबकि पहले साधारण विवाह जो घर परिवार के बड़े बुजुर्गो एवम् कुछ रिश्ते नाते दारो के साथ संपन्न हुआ करते थे, जिनमें पारिवारिक आशीर्वाद मिला करता था, आज सिर्फ़ वीआईपी गेस्टो की आवभगत करने के साथ सीमित रह गया है। जिसके अंतर्गत काफ़ी बड़े-बड़े नामचीन “रिजॉर्ट” और “होटल” बुक करके लड़की और लड़के वालों का परिवार एक ही स्थान पर शादी समारोह संपन्न करता हैं।
आजकल लोग “शादी” को शाही शादी की तरह करने की चाहना रखते हैं। इसके लिए काफ़ी लागत में रुपया पैसा ख़र्च भी किया जाता है, और उसे भव्य बनाया जाता है जैसे कोई राजा महाराजा की शादी या पिक्चर की शूटिंग चल रही हो।
थोड़ी-सी तारीफ पाने के लिए, किसी हाई प्रोफाइल सोसाइटी की तरह अपने आपको प्रस्तुत करने के लिए ही हम अपने जीवन भर की पूंजी को पानी की तरह बहाते हैं और कुछ लोग तो कर्जा भी कर लेते हैं। इस प्रकार के भव्य विवाह के आयोजन संपन्न करने के लिए। पर सच तो यह है कि लोग कुछ दिन बाद ये सब भूल भी जाते हैं, बढ़-चढ़कर की जाने वाली सजावट या कुछ स्मृति के अलावा यदि कुछ याद रह भी जाता होगा तो वह सिर्फ़ खाना। बाक़ी हर जगह एक जैसा लगने के बाद तो यह विवाह सिर्फ़ तुलनात्मक ही रह जाते हैं।
सिर्फ़ हमारे शादी समारोह में नामचीन हस्तियाँ आए, हम राजनेताओं को इनवाइट करे, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ की लाइन लगी हुई हो, यह दिखाने की होड़ के चक्कर में हम अपने बच्चों के लिए बचाए गए को पानी की बर्बादी फिजूल ही करते हैं। जिससे कि उनका भविष्य या उन्हें आर्थिक रूप से मज़बूत किया जा सकता था। उस पूंजी को एक ही कार्यक्रम में हम समाप्त कर देते हैं।
इतना ख़र्चा करने के बाद भी देखा जा रहा है कि इसके कारण समाज में दहेज की संभावनाओं में वृद्धि हुई है। पहले लोग दहेज में कार और नगद राशि तक ही सीमित थे, आजकल महेंगे हनीमून की भी डिमांड भी देखने में सामने आई है, जिसके पूरे ना हो पाने के कारण देखा गया है कि ससुराल में लड़कियों को कई समय तक ताने मिलते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शुरुआत में ही जब खटाई पड़ जाती है तब रिश्तो में आपसी समझ तालमेल न बैठ पाने के कारण इतने भव्य समारोह संपन्न होने के बाद भी आमतौर पर प्रणय सम्बंध टूटते नज़र आ रहे है।
स्वयं सोचिए यदि आडंबर न करें, सिर्फ़ हम अपने बड़े लोगों एवम् नाते रिश्तेदारों के आशीर्वाद के साथ ही विवाह को संपन्न करने के लिए प्रयासरत रहे तो आप पाएंगे कि बचाए गए पैसों से हम बच्चों की ज़रूरत पूरी कर सकते हैं और यदि कभी भविष्य में कोई शादी टूटती भी है तो हम आर्थिक रूप से अपनी बिटिया को सशक्त बनाकर उसको जीवन में आगे की राह दिखा सकते हैं। हम ये क्यों नजरअंदाज करते हैं कि हम ऐसे समाज के हिस्सेदार हैं जिसमें होड़ नहीं अच्छे संस्कारों की ज़रूरत है।
जहाँ कभी भारत का नाम शादियों के सुरक्षित रहने में नंबर वन पर था, वहाँ आज देखा जा रहा है! “इतने भव्य आयोजन संपन्न करने के बाद भी” पैसा ख़र्च कर पानी की तरह बहाने के बाद भी शादियाँ नहीं टिक रहे अधिकांश विवाह टूट रहे हैं। प्रणय सम्बंध टूटते हुए इस दौर में कहा जा सकता हैं कि हमें दिखावे के स्थान पर अपनी ही संस्कृति को बचाने की कोशिश करनी चाहिए।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
भारत
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