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चाइनीज मांझा : हादसों का मांझा
चाइनीज मांझा : हादसों का मांझा
अतुल ट्यूशन से पढ़ कर हंसता खिलखिलाता हुआ घर को चला था परंतु घर से कुछ दूरी पर ही चाइनीज मांझे की चपेट में आकर वह घायल हो गया। मांझे की धार इतनी तेज और खतरनाक थी कि उसका मोटा लोअर चीर कर टाँग के मांस को भी चीर दिया। गनीमत यह रही कि मांझा उसकी गर्दन पर हल्का ही लगा और टाँग पर चला गया जिससे एक बड़ा हादसा होने से बच गया।
मांझा जब यह शब्द सामनें आता है तो एक तस्वीर मन की यादों से निकल कर आती है जो हमारे बचपन की यादें ताज़ा कर देती है। लकड़ी की चरखियों में लिपटा रंग-बिरंगा मांझा। कच्चे सूत से जिसको तैयार किया जाता था जिस पर कांच का पाउडर और विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों के लेप लगाकर तैयार किया जाता था। कुछ जगहों पर चावल, उसकी मांड और गोंद मिलाकर भी मांझा तैयार होता था। वह समय ही कुछ और था, जब चीजें प्राकृतिक होती थी। उनसे नुक़सान होते भी थे तो इतनें नहीं कि उनसे किसी की जान चलीं जाए।
अब समय बदल गया है, कम मेहनत और ज़्यादा मुनाफा कमाने की ललक ने भारतवर्ष को भी नहीं छोडा। विश्व जगत में चाइना सारें विश्व में वैश्विक स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। शायद ही ऐसा कोई देश हो जहाँ चाइना ना पहुँचा हो। दुनिया भर के उत्पादों की नक़ल कर के उसको बाज़ार में पहुँचा चुका है, खानें-पीनें से लेकर, रोजमर्रा की प्रत्येक वस्तु की कॉपी चाइना ने कर ली है। पतंग और मांझे का व्यापार भी इससे अछूता नहीं रहा।
भारतवर्ष जहाँ पतंगबाजी त्यौहार पर ही नहीं शौक के रूप में भी की जाती है और पतंगों और मांझें का उपयोग बहुतायत में किया जाता है, चाइना को फिर से अपनें क़दम भारत के पतंग और मांझें के व्यापार में ज़माने का अवसर मिल गया। रोक और सख्ती के बाद भी चाइनीज मांझा ख़ूब बिक रहा है। चोरी से ब्लैक किया जा रहा है, रेट ज़्यादा देकर भी खरीदा जा रहा है, देख रहा हूँ बच्चें, युवा जानें कहाँ से खरीद कर ला रहे हैं।
ऐसा हाल देखकर यही प्रतीत होता है, हमारा प्रशासन पूरी तरह से इसे रोकने में विफल ही रहा है। बड़े स्तर पर रोक लगाने के बाद भी अगर चाइनीज मांझा लोगों द्वारा लाया जा रहा है तो अर्थ स्पष्ट है कि हम विफल रहे।
अगर चाइनीज मांझा एक साधारण मांझा होता तो इतनी परेशानी नहीं थी मगर (इसका निर्माण केमिकलों द्वारा होता है जिस पर कांच और लोहे को पीसकर नायलॉन के धागे पर कोटिंग (पालिश) की जाती है) जिससे इसमें धार बन जाती है। यह आसानी से टूटता भी नहीं ब्लकि खींचता चला जाता है। इतना ही नहीं यह इतना खतरनाक हो जाता है कि मैटलिक पालिश की वज़ह से गलता भी नहीं और बिजली की तारों से गीले होने पर टकरानें पर इनमें करंट तक आ जाता है।
अब बात करते हैं इससे हो चुके हादसों की जिनमें से दो घटनाओं का मैं स्वयं साक्षी हूँ। यह चाइनीज मांझा इतना घातक है कि यह जानेलवा हथियार का काम करता है। पतंग उड़ानें वाले को पता भी नहीं होता उसके द्वारा किसी को जानलेवा नुक़सान भी हो गया है। मैं स्वयं भी इसके प्रहार से कहाँ बच पाया, इसकी वज़ह से ०४ वर्ष पूर्व माथे एवं नाक पर घाव हो गया था।
अकेले सहारनपुर में ही लगभग १० ऐसे हादसें बीतें वर्षों में हुए हैं जिसमें चाइनीज मांझे से घायल या तो मृत्यु को प्राप्त हुए या बहुत बुरी तरह से घायल हुए। बीते ०५ वर्षों में सहारनपुर में चाइनीज मांझे से कोर्ट रोर्ड, अस्पताल वाला पुल, अम्बाला रोड, शारदा नगर रेलवे ब्रिज पर हुए हादसों में तीन लोगों की मृत्यु हुई जिसमें बच्चा भी शामिल है। इतना ही नहीं इससे पशु-पक्षी भी कहाँ बच पाते हैं, प्रत्येक वर्ष इसकी चपेट में आकर असंख्य पक्षी अपनी जान गंवा रहे हैं।
प्रशासन की एक बहुत बड़ी विफलता है यह और साथ ही सरकार की भी जो दावा तो करती है कि चाइना का सामान यहाँ नहीं बिकेगा लेकिन सबकुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। पता नहीं यह पीढ़ी और आनें वाली नस्लें हमारे बचपन जैसा स्वर्णिम समय कभी देख भी पायेगी या नहीं…!
लेखक
वरूण राज ढलौत्रा
सहारनपुर (यू०पी०)
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