
गरीब वह थी या मैं
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गरीब वह थी या मैं
गरीब वह थी या मैं: माधुरी शर्मा
अँधेरा होने को था, कड़कड़ाती सर्दी के दिनों में मैं (समीर) बाज़ार से घर पैदल चला जा रहा था। एक छोटी-सी गली में से-जैसे ही”मैं निकला” मैं क्या देखता हूँ “एक लड़की जिसने फटे-पुराने वस्त्र पहने हुए हैं” उकड़ू-सी सड़क के एक ओर बैठी है। मैं हैरान था “इतनी रात को यह लड़की यहाँ क्या कर रही है?” जैसे ही मैं पास से गुजरा; उसने मुझे कहा, “बाबूजी एक रुपया दे दो।” वह एक भिखारिन थी जो मुझसे बार-बार भीख माँग रही थी। मैं भी उसे बिना देखे आगे कि ओर बढ़ गया।
कई दिनों के बाद एक दिन मंदिर में फिर दोबारा वह लड़की दिखी। मैं मंदिर से निकला और लड़की ने अनायास ही कहा “बाबूजी मुझे पहचाना” मैनें, झल्लाकर उससे कहा, “मैं तुम्हारा बाबूजी नहीं हूँ।” मेरे मन में ये विचार आए”मैं अभी जवान हूँ।” शादी भी नहीं हुई मेरी और ये लड़की मुझे बाबू जी बुला रही है। लड़की ने फिर से एक रुपया मांगना चाहा। परंतु मैं फिर उसकी बात को अनसुनी कर के चल दिया। दो बार उसे देखने के बाद जैसे उसका चित्र मेरे चारों और घूमने लगा।
वह गरीब थी परंतु सुंदर थी। पता नहीं मेरे मन में कैसे-कैसे भाव उसके प्रति आने लगे। रोज़ शहर में इतनी सुंदर-सुंदर लड़कियों को आधुनिक वस्त्रों में मैंने देखा था। परंतु यह उन सब में सबसे अलग थी। जो कि उन फटे वस्त्रों में भी अच्छी दिखाई दे रही थी। मेरे मन के किसी कोने में जैसे उसको करीब बुलाने की चाहत-सी उभर आई थी।
एक दिन मैं एक मॉल में सामान लेने के लिए गया था। वहाँ भी उसकी यादों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। जैसे ही मॉल से बाहर निकला। वहाँ बाहर सड़क पर फिर वही लड़की दिखाई दी परंतु आज मैं उससे नजरे ना मिला सका। उसने फिर से मुझसे कुछ पैसे मांगे परंतु मैं वहाँ से तेजी से क़दम आगे बढ़ाता हुआ चला गया। जब मैं घर पहुँचा तो मुझे अंदर ही अंदर आत्मग्लानि हुई और अपने मन में यही प्रश्न करता रहा “उसने मांगा ही क्या था?” मुझसे, एक रुपया ही तो मांगा था।
फिर मेरे मन में भाव आए “गरीब वह थी या मैं था” ? …? उसके प्रति अपनी कुत्सित मनोवृति से मैं बहुत ही लज्जित था। मेरे हृदय के भाव उसी तरीके से उसके प्रति अच्छे ना थे जैसे “वह तो केवल फटे वस्त्रों में थी” पर मैं, ऊपर से नीचे तक बहुत ही गरीब, नग्न व लज्जित अवस्था में था।
भाई बहन और बचपन
सविता बैठी-बैठी मन्द-मन्द मुस्कुरा रही है और बचपन की यादों में खो गई। गर्मी के मौसम में दोनों भाई-बहन का आम के बाग़ में घुस जाना, भाई का मुझे गुलेल चलाना सिखाना और फिर गुलेल से आम तोड़ना और माली को पता चलने पर आम झोली में इकठ्ठे करना और दोनों भाई-बहन का वहाँ से भाग जाना। भाई के द्वारा छोटी-छोटी बात पर मेरी चोटी खींचना और मेरे द्वारा उसे मुँह बना-बना कर चिढ़ाना। मुझसे टाफी छींनकर कर भाग जाना और मेरा माँ को उसकी शिकायत करना।
बचपन में की हुई हर एक शरारत सब बातें आज उसे रह-रह कर याद आ रही थी। आज भी उसे याद है जब उसके भाई ने अपना गुल्लक जो मिट्टी का था तोड़ कर पैसे निकले और उसके लिए चुपके से उसके लिए राखी का उपहार ले आया था। जबकि उसने बैडमिंटन लेने के लिए वह पैसे जोड़े थे। उसके भाई द्वारा दिए गए उस पहले उपहार को पाकर सविता बहुत ही खुश थी परंतु जब सविता को पता चला कि यह पैसे भाई ने बैडमिंटन लेने के लिए जोड़े थे तो वह भी अपने जोड़े गए पैसों से अपने भाई के लिए बैडमिंटन ले आई इस तरह भाई-बहन का प्यार आपस में बहुत ही प्रगाढ़ था।
वैसे भाई बहन का रिश्ता होता ही ऐसा है कि एक पल में रूठना, मनाना और प्यार-प्रेम से भरा बहुत ही प्यार रिश्ता। जिसमें अथाह निस्स्वार्थ प्रेम होता है परंतु आज की आधुनिकता की दौड़ ने इस रिश्ते को भी जैसे खोखला-सा कर दिया है। आज किसी के पास अपने भाई के पास जाने का समय नहीं और ना ही भाई के पास इतना वक़्त की वह बहन से राखी बँधवाने ही आ जाए। सबके पास अपनी-अपनी मसरूफियत के बहाने हैं। बस फ़ोन पर बात हो जाए और राखी भाई तक पहुँच जाए यह भी बहुत बड़ी बात है।
आधुनिकता की दौड़ कि इस उधेड़-बुन को समेटती सविता फिर से अपने बचपन की यादों में खो जाती है। उसे याद आता है कि वर्षों पहले भाई ने जब पहली बार साइकिल चलानी सीखी तो उसने ऊंचाई से साइकिल धकेल कर साइकिल को चलाना सिखाना चाहा परंतु भाई साइकिल से नीचे गिर गया और उसकी टाँग टूट गई। इस बात का सविता को बहुत अफ़सोस हुआ क्योंकि वह इस बात के लिए अपने आप को दोषी समझती थी और जब तक भाई की टाँग ठीक ना हुई तो वह तब तक वह उसकी सेवा में लगी रही थी।
अचानक फ़ोन की घंटी बजती है और सविता चौंक कर उठती है। ये फ़ोन उसकी भाभी का था और भाभी बताती है कि उसके भाई का एक्सीडेंट हो गया है। सविता अफरा-तफरी में अपने पति मनोज को फ़ोन करके घर बुला लेती है और दोनों जल्दबाजी में ही चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए अपनी गाड़ी में रवाना हो जाते हैं। रस्ते में सविता सोच रही होती है कि पिछ्ले ५-६ वर्ष हो गए कि वह अपने भाई से नहीं मिल पाई और मिलना भी होगा तो ऐसे?
वह बार-बार अपनी भाई की लंबी आयु की कामना कर रही हैं और सोच रही है कि कल रक्षाबंधन भी है। हॉस्पिटल पहुँचते हैं तो पता चलता है कि भाई का खून ज़्यादा बह गया है और उसे ‘ओ नेगेटिव’ ब्लड की ज़रूरत है। सविता का ब्लड ग्रुप भी ‘ओ नेगेटिव’ है तो वह जल्दी से डॉक्टर को बोलती है कि वह अपने भाई को खून देने के लिए तैयार है। इस तरह सविता के समय पर पहुँचने से और उसके द्वारा दिखाई सूझ बूझ से उसके भाई की जान बच जाती है।
अगले दिन ख़ूब धूमधाम से सविता रक्षाबंधन की तैयारी करती हैं और हॉस्पिटल में ही अपने भाई को राखी बाँधने के लिए पहुँचती हैं। दोनों बहन भाई एक दूसरे के गले लग कर ख़ूब रोते हैं और भाई बहन के पवित्र रिश्ते का दोनों को एहसास होता है। सविता अपने भाई से कहती है कि भाई बहन का रिश्ता बहुत ही मज़बूत होता है जो लाख दूरियाँ होने पर भी ज्यों का त्यों क़ायम रहता है। दोनों एक दूसरे से माफ़ी माँगते हैं और हर रक्षाबंधन पर एक दूसरे से मिलने का और हर सुख-दुख में साथ का वादा लेते हैं।
माधुरी शर्मा ‘मधुर’
अम्बाला (हरियाणा)
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