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होटल पार्टी में हो रही खाने की बहुत बर्बादी
होटल पार्टी में खाने की बर्बादी
॥१॥
होटल रेस्टोरेंट में हो रही
खूब खाने की बर्बादी।
प्लेट भर-भर के ले रहे
और यूंही फिक रहीआधी॥
आधी आबादी भर पेट
भोजन बिना सो रही यहाँ।
तो आप ज़रूरत का ही
लें चाहे पार्टी हो या शादी॥
॥२॥
हम अनजाने में ही माता
अन्नापूर्ण का श्राप लेते हैं।
और साथ ही अन्न का भी
हम तिरस्कार कर देते हैं॥
कम खाएँ शुद्ध खाएँ कि
जैसा खाएंअन्न वैसा मन।
जाने कितने बच्चों का मुंह
निवाला हम छीन लेते हैं॥
॥३॥
अता उतना ही लें थाली में
बाकी नहीं जाए नाली में।
अपशिष्ट प्रबंधन का कार्य
हो रहा नितदूभर खाली में॥
यह बात जुड़ी है पर्यावरण
और जल संरक्षण से भी।
अबअभियान शुरू करें कि
खाली प्लेट जाए जाली में॥
रोशनी चाहिए
१
बच्चों को मंहगे त्यौहार नहीं,
उन्हें संस्कार दीजिये।
उनको अपनी अच्छी सीखों,
का उपहार दीजिये॥
आधुनिक खिलौने तो ठीक है,
परन्तु उनके लिए तो।
कैसे करें बड़ों से बात वह,
उचित व्यवहार दीजिये॥
२
बच्चों को अभिमान नहीं,
स्वाभिमान सिखाइये।
आलस्य नहीं गुण उनको,
काम के बताइये॥
बच्चों को चमक ही चमक,
नहीं चाहिए रोशनी।
दिखावा नहीं आदर आशीर्वाद,
का गुणगान दिखाइये॥
३
बच्चों को भी सिखाइये कैसे,
बनना है आत्मनिर्भर।
प्रारम्भ से ही बताइये कैसे,
चलना है जीवन सफर॥
अच्छी आदतें पड़ती हैं अभी,
कच्ची मिट्टी में ही।
ज़रूर सुनाइये कथा साहस की,
दूर करना है उनका डर॥
४
नींव ही समय है बनने को,
बुलंद इमारत का।
कैसी होगी आगे की जिन्दगी,
उस इबारत का॥
आगे बढ़ने के गुण डालिये शुरू,
से ही भीतर उनके।
वह शुरू से ही पाठ पढ़ें मेहनत,
और शराफ़त का॥
कॅरोना को सबक सिखाना है
१
जरा अड़ियल-सा दुश्मन ये
मुँह नहीं लगाना है।
दूर दूर रह कर इसको जरा
सबक सिखाना है॥
आज सलामत रहे तो ज़मीं
को जन्नत बना देंगें।
भूल कर भी इसको हमें गले
नहीं लगाना है॥
२
यह शत्रु ऐसा कि तुम छू लो
तुम्हारा हो जायेगा।
मिलाया हाथ तो तन में ही
तुम्हारे खो जायेगा॥
हम सब की जंग यह मिल
कर लड़नी है।
नहीं संभले ग़र तो यह जहर
बहुत बो जायेगा॥
३
आज जुदाई का घूँट पियेंगे
कल बेहतर बनाने को।
आज का ग़लत क़दम काफी
है कल रुलाने को॥
ये कॅरोना खतरनाक वायरस
अदृश्य दुश्मन है।
इससे आँख मिलना काफ़ी है
मृत्यु निंद्रा सुलाने को॥
४
वक़्त नाज़ुक घर में बंद रहना
बहुत ज़रूरी है।
समझो कि यह आज हालात
की मजबूरी है॥
यह युद्ध थोड़ा अलग है और
दूर से हमें लड़ना।
तोड़ दी ग़र कॅरोना कड़ी खत्म
हो जायेगी मशहूरी है॥
प्रकृति है प्राणवायु
१
प्रकृति जो प्राणवायु हम उससे
दूर हो गए हैं।
आधुनिकता के नशे में हम
चूर हो गए हैं॥
क्या विलासिता की दिनचर्या
बना ली थी अपनी।
आज कॅरोना महामारी कितने
मजबूर हो गए हैं॥
२
अभी भी समय है हम सब के
ही चेत जाने का।
अपनी ज़िन्दगी में कुदरत का
जरा रंग लाने का॥
योग आसन खान पान शुद्ध
वायु अपनाना होगा।
तन और मन दोंनों को ही रोग
मुक्त बनाने का॥
३
गुजर रही है ज़िन्दगी आज इक़
ऐसे मुकाम से।
डर लगने लगा है इक़ वायरस
के नाम से॥
पर्वत मिट्टी हवा पत्थर पानी
दूर हुए जीवन से।
आज हम बिछड़ गये जीवन के
हर छोटे बड़े आराम से॥
४
जल हवा मिट्टी सम्बको हमने
प्रदूषित कर दिया।
भीतर खोखला ऊपर से तन को
आभूषित कर दिया॥
पुरातन संस्कार संस्कृति भुला
दी है अब हमनें।
स्वयं ही अनमोल मानव जीवन
अवशोषित कर दिया॥
पूजा कर्म की
१
झूठ कुछ समय का बस
एक छलावा है।
फिर हो जाता झूठ का
मुँह काला है॥
सच की हार होगी यह
है एक भुलावा बस।
विधि विधान कि झूठ के
मुंह लगता ताला है॥
२
शमशान का हिसाब बड़ा
ही नेक है।
यहाँ अमीर गरीब का
बिस्तर एक है॥
जुबान खराब होना अहम
की पहली निशानी।
इसका उपाय प्रभु समक्ष
माथा टेक है॥
३
लकीरों के आगे हाथ में
उंगलियाँ रखी होती हैं।
क्योंकि क़िस्मत से पहले
मेहनत लिखी होती है॥
कुछ बैठ जाते हैं ज़िन्दगी की
थकान में थक हार कर।
वही बनता विजेता पूजा कर्म
की जिसने करी होती है॥
नज़ारा बदल जाता है
१
चंद साँसों के बाद बस
तस्वीर रह जाती है।
विधि विधान की लिखी
लकीर रह जाती है॥
इसलिए हो सके तो बस
अच्छे कर्म करिये।
बचता न कुछ शेष यादों
की जंजीर रह जाती है॥
२
नज़र बदलो तो नज़ारा
ही बदल जाता है।
करो उजाला अंधियारा
भी बदल जाता है॥
मन काहमोवहम बदले
तो बदलती है तक़दीर।
बदलें विचार तो जिंदगी
का गुज़ारा बदल जाता है॥
३
भविष्य की मत सोचो कि
कलआने को अभी शेष है।
अतित तो केवल बीता
हुआ परिप्रेक्ष्य है॥
कल आज और कल में
आज ही अति महत्त्वपूर्ण।
वर्तमान ही वास्तव में
अति विशेष है॥
४
उजाला लाने को सूरज को
अंधेरे को हराना पड़ता है।
धारा को नदी बनने को
चट्टानों को बहाना पड़ता है॥
नित्य नई अवस्था बदलती
रहती है निरंतर।
यदि व्यक्तित्व को निखारना
तोअहम को दबाना पड़ता है॥
इंसानियत का हो हमेशा भला
खुद पर इतना भी गुमान
अच्छा नहीं होता।
सौ साल का भी सामान
अच्छा नहीं होता॥
छोटी-सी ज़िन्दगी हंस
कर गुजार दें।
इतना लश्कर तमाम
अच्छा नहीं होता॥
तप कर बनो सोना तुम
बस खुद्दार बनो।
करते रहो मूल्यांकन जीत
के हक़दार बनो॥
खुद को बदलो तो हालात
बदल जायेंगे।
प्रसन्न रहो और जिन्दगी
के वफ़ादार बनो॥
हर दिन इक नई शुरुआत
होती है।
उम्मीद की नई लौ गुलज़ार
होती है॥
दुनिया ख़त्म होने जैसी तो
कोई बात नहीं।
हौंसलों की जीत बरकरार
होती है॥
मेहनत व्यर्थ नहीं परिणाम
लेकर आती है।
तेरी अच्छाई भी ईनाम
लेकर आती है॥
कोशिश करो हमेशा किसी
के काम आ सको।
भलाई सदा मन का आराम
लेकर आती है॥
जिन्दगी में कम ज़्यादा का
मलाल मत करना।
हर कोशिश जीवन में ज़रूर
तमाम करना॥
चिराग-सी तासीर रखो सदा
जीवन में।
इंसानियत का हो भला बस
वो काम करना॥
तुम केंद्र तुम धुरी सृष्टि
तुम केंद्र तुम धुरी तुम सृष्टि
की रचना कार हो।
तुम धरती पर मूरत प्रभु
की साकार हो॥
तुम जगत जननी हो तुम
संसार रचयिता।
माँ बहन पत्नी जीवन में
हर प्रकार हो॥
तुम से ही ममता स्नेह प्रेम
जीवित रहता है।
मन सच्चा कभी कपट कुछ
नहीं कहता है॥
त्याग समर्पण का जीवंत
स्वरूप हो तुम।
तन मन में नारी तेरे प्यार का
दरिया बहता है॥
तुम से ही घर आँगन और
चारदीवारी है।
हरी भरी जीवन की हर
फुलवारी है॥
तुमसे ही आरोहित संस्कार
संस्कृति सृष्टि में।
तुमसे ही उत्पन्न होती बच्चों
की किलकारी है॥
तुमसे ही बनती हर मुस्कान
खूबसूरत है।
दया श्रद्धा की बसती साक्षात
मूरत है॥
तुझसे से ही है मानवता का
आदि और अंत।
चलाने को संसार प्रभु को भी
तेरी ज़रूरत है॥
सफर निरंतर जारी रखो
तू चलता चल अभी इंसान
होने का सफ़र बाक़ी है।
अभी तो समाज के लिये
करने की डगर बाक़ी है॥
बहुत से इम्तिहान देने हैं
अभी इस जीवन में।
अभी अपने हौसलों का
दिखाने को जिगर बाक़ी है॥
बनना है अभी तो एक
अच्छा इंसान जीवन में।
अभी तो होना है किसी
दुर्बल पर मेहरबान जीवन में॥
किसी साथी के दर्द ओ गम
बांटना इसी ज़िन्दगी में हमें।
सुनना है अभी किसी महा
पुरुष का व्यख्यान जीवन में॥
किसी चुनौती और मुश्किल
का सामना करना बाक़ी है।
किसी भी गुनाह के लिए
प्रभु से डरना बाक़ी है॥
सीखना है क्रोध और अहम
को अभी वश में रखना।
प्रभु कीअनमोल ज़िन्दगी का
अभी कर्ज़ भरना बाक़ी है॥
मन में विश्वास और दिल में
तुम ज़रूर खुद्दारी रखो।
लोभ, द्वेष, तृष्णा, को भी तुम
त्यागने की तैयारी रखो॥
भीतर स्वाभिमान का अंश
रखना तुम ख़ूब संभाल कर।
तो तुम इंसान बनने का यह
सफर निरंतर जारी रखो॥
बांसुरी से सीखो
बोलिये कुछ यूँ कि बात
दिल में उतर जाये।
हो असर कि आदमी
गमों से उबर जाये॥
आवाज़ ऐसी हो मिठास
सी घोल दे सीने में।
हो बात में हौंसला कि वो
मुश्किल से गुज़र जाये॥
हमेशा सोच में तुम कोई
अच्छी ही कहानी रखो।
परिदों के लिए बंदूक नहीं
हो सके तो तुम पानी रखो॥
तुम्हारे विचार ओ व्यवहार
ही जाकर पहचान बनेगें।
पराये दर्द में ज़रूर तुम
आँखों में निगेबानी रखो॥
सब्रऔर सहना कोई किसी
कमतरी की निशानी नहीं हैं।
बिना धैर्य और विवेक के
जीत की कहानी नहीं है॥
बांसुरी से सीखो सबक ग़म
में भी सदा गुनगुनाने का।
हैं सीने में छेद पर धुन तो
तीखी सुनानी नहीं है॥
प्रभु मिले न मिले तुम
ज्यादा ग़म मत करना।
पर दोस्ती का जज़्बा कभी
भी कम मत करना॥
मित्रता से बड़ा कोई धर्म
नहीं दुनिया में।
बस अपनी जिंदगानी में
महोब्बत बेदम मत करना॥
सलाम हो जाये
काँटों की खेती करता हूँ
फूल बन कर।
गुलों की हिफाज़त करता
हूँ शूल बन कर॥
गमों में भी मुस्कराता हूँ कि
तबियत ऐसी ही मेरी।
हँसता हूँ सामने सबके बस
एक उसूल बन कर॥
दुआ सबकी चाहिए बददुआ
किसी की लेता नहीं।
सौदा प्यार का करता हूँ और
नफ़रत को देता नहीं॥
मैं ही अव्वल नहीं कोई ऐसा
रखता यकीन।
जुबान मीठी रखता हूँ बात
कड़वी कहता नहीं॥
रिश्तों में झुक जाना बात
अजीब लगती नहीं है।
किसी का दिल मुझसे दुखे ये
तहजीब लगती नहीं है॥
सूरज भी तो ढल जाता है
चांद के लिए हमेशा।
झूठ को सच बना जीतूं सही
तरकीब लगती नहीं है॥
अल्फाजों का रखता हूँ ध्यान
कि मेरा किरदार बनाते है।
शब्द हमेशा मीठे ही कि यह
मेरा व्यवहार बनाते हैं॥
हालात हों खराब तो भी मैं
हौंसला खोता नहीं।
ये सबब परेशानियों के मुझे
और दिलदार बनाते हैं॥
दिल चाहता खूबसूरत सबेरा
ओ सुहानी शाम हो जाये।
दुनिया में बहुत ऊपर प्रेम का
पैगाम हो जाये॥
कुछ यूँ हो कुदरत का कोई
अजब-सा करिश्मा।
कि हर जुबां पर महोब्बत
को सलाम हो जाये॥
बेटियां, रहमते भगवान की
महाभारत चीरहरण हर दिन
है चिता जलती हुई।
हो रही रोज़ मौत इक
बेटी की पलती हुई॥
बच्ची की दुर्दशा देख रोता
है मन मायों का।
चीत्कारों में मिलती आशा
नारी की गलती हुई॥
दानवता दानव की अब बस
शामत की बात करो।
कहाँ हो रही चूक बस उस
लानत की बात करो॥
हर किसी को जिम्मेदारी
समाज में लेनी होगी।
सुरक्षा बेटियों की बस इस
बाबत की बात करो॥
अच्छा व्यवहार बेटियों से
ही निशानी इंसान की।
इनसे घर शोभा बढ़ती जैसे
परियाँ आसमान की॥
बेटी को भी दें बेटे जैसा घर
में प्यार और सम्मान।
मानिये कि बेटियों के जरिये
आती रहमते भगवान की॥
माँ का आशीर्वाद
१
माँ का आशीर्वाद जैसे कोई
खजाना होता है।
मंजिल की जीत का जैसे
पैमाना होता है॥
माँ की गोद मानो कोई
वरदान है जैसे।
चरणों में उसके प्रभु का
ठिकाना होता है॥
२
अहसासों का अहसास मानो
बहुत ख़ास है माँ।
दूर होकर भी लगता कि बस
आस पास है माँ॥
बहुत खुश नसीब होते हैं जो
पाते माँ का आशीर्वाद।
हारते को भी जीता दे वह
अटूट विश्वास है माँ॥
३
अच्छा व्यवहार बेटीयों से
निशानी अच्छे इंसान की।
इनसे घर की बढ़ती शोभा जैसे
उतरी परियाँ आसमान की॥
बेटी को भी दें आप बेटे जैसा
घर में प्यार और सम्मान।
जान लीजिए बेटियों के जरिये
ही आती रहमते भगवान की॥
हमारी मातृ भाषा हिन्दी
१
हिन्दी में भरा रस माधुर्य
कवित्व और मल्हार है।
हिन्दी में भाव और संवेदना
अभिव्यक्ति भी अपार है॥
हिन्दी में ज्ञान और विज्ञान
दर्शन का अद्धभुत समावेश।
हिन्दी भारत का विश्व को
एक अनमोल उपहार है॥
२
बस एक हिन्दी दिवस नहीं
हर दिन हो हिन्दी का दिन।
विज्ञान की भाषा भी हिन्दी
ज्ञान तो है नहीं हिन्दी बिन॥
मातृ भाषा, राज भाषा हिन्दी
है उच्च सम्मान की अधिकारी।
तभी राष्ट्र करेगा सच्ची उन्नति
कार्यभाषा हिन्दी हो हर पलछिन॥
३
मातृ भाषा का दमन नहीं
हमें करना होगा नमन।
पुरातन मूल्य संस्कारों की
ओर करना होगा गमन॥
बनेगी तभी भारत वाटिका
अनुपम अतुल्य अद्धभुत।
जब देश में हर ओर बिखरा
होगा हिन्दी का चमन॥
४
हिन्दी का सम्मान ही तो
देश का गौरव गान बनेगा।
मातृ भाषा के उच्च पद से
ही राष्ट्र का मान बढेगा॥
हिन्दी तभी बन पायेगी
भारत मस्तक की बिन्दी।
जब राष्ट्र भाषा का ये रंग
हर किसी मन पर चढ़ेगा॥
कोरोना संकट और प्रवासी मजदूरों का पलायन
१
क्या सोच कर वह हज़ारों मील
नंगे पांव चला होगा।
कितना दर्द उसके सीने के
भीतर भरा होगा॥
सवेंदना शून्य रास्तों पर कैसे
बच्चों ने होगा कुछ खाया।
जाने कब तक यह ज़ख़्म उसके
सीने में हरा होगा॥
२
प्रवासी से आज फिर से वह
स्वदेशी हो गया है।
लौट कर वापिस अपनी मिट्टी
फिर प्रवेशी हो गया है॥
कुछ जड़े कहीं तो कुछ कहीं
अब गई हैं बिखर सी।
अपनो के बीच भी लगता जैसे
परदेसी ही हो गया है॥
३
पाँव चल रहा था और पांव
जल रहा था।
अरमान टूट रहे थे और परिवार
कैसे पल रहा था॥
फूट रहे थे सब सपने और बिखर
रहा था संसार उसका।
मजदूर अपनी आँखों में आज
खुद ही खल रहा था॥
४
ज़रूरत है उसको हमारे और
अपनों के याद की।
फिर से जोड़ने तिनका तिनका
उन सपनों के साथ की॥
सरकार को भी आगे चल कर
उसका हाथ थामना होगा।
लगाने को मरहम उन रिसते
जख्मों पर प्यारे हाथ की॥
वही जीतता पूजा जिसने कर्म की करी होती है
१
झूठ कुछ समय का बस
एक छलावा है।
फिर हो जाता झूठ का
मुँह काला है॥
सच की हार होगी यह
है एक भुलावा बस।
विधि विधान कि झूठ के
मुंह लगता ताला है॥
२
शमशान का हिसाब बड़ा
ही नेक है।
यहाँ अमीर गरीब का
बिस्तर एक है॥
जुबान खराब होना अहम
की पहली निशानी।
इसका उपाय प्रभु समक्ष
माथा टेक है॥
३
लकीरों के आगे हाथ में
उंगलियाँ रखी होती हैं।
क्योंकि क़िस्मत से पहले
मेहनत लिखी होती है॥
कुछ बैठ जाते हैं ज़िन्दगी की
थकान में थक हार कर।
वही बनता विजेता पूजा कर्म
की जिसने करी होती है॥
मातृत्व दिवस
१
तुम केंद्र तुम धुरी तुम सृष्टि
की रचनाकार हो।
तुम धरती पर मूरत प्रभु
की साकार हो॥
तुम जगत जननी हो तुम
संसार रचयिता।
माँ बहन पत्नी जीवन में
हर प्रकार हो॥
२
तुम से ही ममता स्नेह प्रेम
जीवित रहता है।
मन सच्चा कभी कपट कुछ
नहीं कहता है॥
त्याग समर्पण का जीवंत
स्वरूप हो तुम।
तन मन में नारी तेरे प्यार का
दरिया बहता है॥
३
तुम से ही घर आँगन और
चारदीवारी है।
हरी भरी जीवन की हर
फुलवारी है॥
तुमसे ही आरोहित संस्कार
संस्कृति सृष्टि में।
तुमसे ही उत्पन्न होती बच्चों
की किलकारी है॥
४
तुमसे ही बनती हर मुस्कान
खूबसूरत है।
दया श्रद्धा की बसती साक्षात
मूरत है॥
तुझसे से ही है मानवता का
आदि और अंत।
चलाने को संसार प्रभु को भी
तेरी ज़रूरत है॥
दवाई, दुआ और सहयोग
१
देखो वक़्त नाज़ुक है कोई
टूटने न पाये।
भंवर में किश्ती किसी की
डूबने न पाये॥
तेज रफ़्तार आँधी तूफान
है चारों तरफ।
मिलकर कोशिश कि किनारा
छूटने न पाये॥
२
माना कि ज़रूरी दूरी का
बहाना हो गया है।
मगर दूर से ही ज़रूरी रिश्ते
निभाना हो गया है॥
खुशी ग़म हाल चाल लेते
रहिये हर किसी का।
यूँ न लगे कि बिछड़े इक़
जमाना हो गया है॥
३
परेशानी का सामना करना ही
जीवन का दूसरा नाम है।
इस महामारी कॅरोना का मिल
कर करना काम तमाम है॥
दवाई, दुआ और सब्र खत्म
करेंगें इस कठनाई को।
सहयोग और उम्मीद से साफ़
होगा ये शत्रु अंजान है॥
४
कॅरोना सफाया कर ख़ुद को
भी नई रोशनी देना है।
इस भयानक महामारी से भी
हमको सबक लेना है॥
हम और अधिक जुड़ेंगें अपने
संस्कारों और प्रकृति से।
अब इस डगमगाती नाव बाहर
खतरे के खेना है॥
एस. के. कपूर “श्री हंस”
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