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उर्दू अदब में ख़्वातीन का किरदार
उर्दू अदब में ख़्वातीन का किरदार
इस तरह का चेहरा महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया है, लेकिन साहित्य में उनकी रुचि अधिक है क्योंकि साहित्य जीवन का दर्पण है और अगर इस दर्पण में महिलाओं को न देखा जाए तो साहित्य अर्थहीन हो जाएगा। जीवन की तरह साहित्य का महल भी अस्तित्व से स्थापित होता है। इतना होते हुए भी उर्दू साहित्य के सन्दर्भ में महिलाओं के चेहरे पर लंबे समय तक धूल जमी रही।
हमारे देश में विपरित लिंग के आधार पर उपेक्षा करने की पुरानी परंपरा रही है। यह परम्परा उर्दू साहित्य के प्रारम्भ में भी देखी जा सकती है। उर्दू के बारे में अब यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि उर्दू भाषा के शुरुआती निशान दिल्ली और उसके आसपास पाए जाते हैं, जबकि उर्दू साहित्य के शुरुआती निशान दक्कन की भूमि में देखे गए थे। दक्कन में उर्दू साहित्य की प्रारंभिक राजधानी में, महिलाओं को लेखकों और कवियों के रूप में नहीं देखा जाता है, लेकिन संरक्षक के रूप में उनकी सेवाएँ प्रमुख हैं। उर्दू साहित्य में महिलाओं की बढ़ती प्रवृत्ति को दो स्तरों पर पहचाना जा सकता है। एक ग्रन्थकारिता और संकलन और सर्जन के स्तर पर और दूसरा पाठक भागीदारी के रूप में। दोनों स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी की प्रवृत्ति बीसवीं सदी के पहले दशक से और अधिक स्पष्ट हो गई। साहित्य सर्जन के साथ-साथ महिलाओं में उर्दू साहित्य पढ़ने की प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ी है, जो एक स्वागत योग्य बात है।
२१वीं सदी के इन दो दशकों में उर्दू साहित्य के पटल पर महिलाओं ने अपनी समृद्ध और सार्थक उपस्थिति दर्ज की है। नई संचार तकनीक के लोकप्रिय होने से महिलाओं में उर्दू साहित्य पढ़ने का रुझान भी बढ़ा है। पत्र-पत्रिकाओं के ऑनलाइन संस्करण ने महिलाओं में उर्दू साहित्य पढ़ने की रुचि को बढ़ावा दिया है। २०वीं सदी के तीसरे और चौथे दशक में जब भारत में रेडियो आम हो गया तो यह बात सामने आई कि अब किताबें और पत्रिकाएँ पढ़ने का चलन ख़त्म हो जाएगा या कम हो जाएगा। लेकिन जिस गति से रेडियो का विकास हुआ उससे उर्दू साहित्य की पुस्तकें भी सामने आने लगीं। दुनिया विकास के पथ पर आगे बढ़ रही है। । देश सभ्यता के शिखर पर पहुँच रहा है। समाज उदार होता जा रहा है। लोगों का जीवन स्तर बढ़ रहा है। विकसित होने पर समाज को गर्व होता है। इतिहास गवाह है कि महिलाएँ हमेशा सक्रिय रही हैं और उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी महानता का परचम लहराया है। महिलाओं ने हमेशा अपनी उत्कृष्टता, स्थिति, क्षमता को पहचाना है। उर्दू के अस्तित्व में महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उर्दू साहित्य के इतिहास की समीक्षा की जाए तो उर्दू साहित्य में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका देखी जाती है। यह और बात है कि किन्हीं कारणों से बहुत-सी महिलाओं के नाम, उनके प्रयास और क्षमताएँ सामने नहीं आ पाई हैं। परवीन शाकिर, इफत मोहानी, जिलानी बानो, क़ुरतुल ऐन हैदर, आतिया परवीन, हाजरा शकूर, बानो सरताज, इस्मत चुग़ताई, अमृता प्रीतम, मसरूर जहाँ, राफिया मंजूर अला मैं, सुगरी मेहदी, अमराव जान अदा, जहरा नाज़, साजिदा जैदी, अंजुम रहबर और वाजदा तबसीम उर्दू साहित्य के वह नाम हैं जिन पर उर्दू को गर्व है।
उर्दू शायरी हो या दुनिया की अन्य भाषाओं की शायरी, इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी कम है, लेकिन भारत में परिपक्व महिला कवियों की कमी नहीं है। प्रोफेसर जाहिदा जैदी, प्रोफेसर सजदा जैदी की साहित्यिक सेवाएँ पुरुषों से कम नहीं हैं, डॉक्टर राफिया शेख आब्दी, पद्मश्री मुमताज मिर्जा, अज़ीज़ बानो दरब और फा विज्ञान और साहित्य के महान नाम हैं। मसूदाह हयात, जमीला बानो, नसीम, शहनाज बानी, नसरीन नकाश, मलिका नसीम, डॉ. नसीम निखत, रेहाना नवाब, डॉ. जाकिया अंजुम कवियों की अपनी साहित्यिक पहचान है। मुशायरों को लेकर साहिरा, तसनीम सिद्दीक़ी, तरनम कानपुरी, सोरया रहमानी, अंजुम रहबर, हिना तैमूरी, शांति सबा, आरिफ़ा शबनम, रेहाना शाहीन, सम्बल फ़ैज़ानी, एकता शबनम ने अपनी जगह बनाई है।
इनके अलावा निजहत परवीन भागलपुर, रबाब जाफरी बंबई, सैयद हसन मेराज शाहजहांपुरी, बेगम मुमताज उमीद भोपाल, नुसरत मेहदी, बुशरा परवीन अलीगढ़, मुमताज नाजान (बॉम्बे) , अलीना अतरत (नोएडा) , प्रो मह जबीन सीतामढ़ी, फहमीदा नाज़ शामिल हैं। मालेगांव, बेगम मुमताज, नामी रजा पूर्णिया, सैयदा नसरीन नकाश नवाकोल श्रीनगर, हिना नियाजी बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) , तबसुम परवेज संभल, शौता तलत, सीमा कोलकाता, फातिमा ताज हैदराबाद, रशीदा रुखसाना कोडग (एमपी) , डॉ. शबाना नजीर (नई दिल्ली) , डॉ. इफत ज़रीन, सादिया अंसारी (बॉम्बे) , सैयदा तहित चिश्ती, सबुही परवीन (मोंगर) , कुरैशा बानो रोही (लखनऊ) , सबरा निखत (लखनऊ) , अज़ीमा निशात नगीनावी (नगीना) , ग़ज़ाला मसरूर (चंपारण) , हिना अंजुम (बलरामपुर) , कमर कादिर इरम, मीना नकवी (मुरादाबाद) , सबा बलरामपुरी (बलरामपुर) आदि महिलाएँ उर्दू शायरी में प्रयोग कर रही हैं। उर्दू शायरी में अवध के शायरों का बड़ा नाम है। वकार फातिमा अख्तर जायसी, अनीस बानो अनीस लखनवी, परसा लखनवी, सैयदा खैरुल नसाई बत्तर, मासूमा तसनीम मलीहाबादी, जानी बेगम, जाफरी लखनवी, दुल्हन फैजाबादी, खुर्शीद लखनवी, नौकरानी फातिमा हया लखनवी, हूर लखनवी, हुस्र मा खैर, आबादी, शीबा लखनवी अवध के कवियों के इतिहास में शिरीन लखनवी, ज़ीनत ज़हरा खैराबादी, ज़ेबा काकोरी, महक लखनवी, नाज़ एज, नेहा रादोलवी, नाज़ लखनवी आदि के नाम मिलते हैं।
उर्दू साहित्य के प्रारम्भ में स्त्री काव्यों का विशाल संग्रह है। फिक्शन लेखन की शुरुआत २०वीं सदी में हुई। भारतीय साहित्य का परिदृश्य महिला कथाकारों को नहीं भूल सकता डॉ. राशिद जहाँ को उर्दू की पहली महिला कथाकार माना जाता है। उनके बाद उर्दू में हिजाब इस्माइल और नज़र सज्जाद हैदर की कहानियाँ छपी। उर्दू कथा लेखन में इस्मत चगताई का नाम महत्त्वपूर्ण है। शादिका बेगम शिवहरवी ने कई उर्दू उपन्यास भी लिखे। शकीला अख्तर की उपन्यास “दर्पण” उर्दू कथा साहित्य में एक मील का पत्थर है। ज्ञानपेठ पुरस्कार जीतने वाले अद्वितीय उर्दू कथाकार क़रातुल ऐन हैदर ने उर्दू ही नहीं, भारतीय साहित्य के कथा साहित्य में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया है।
रजिया सज्जाद ज़हीर के उपन्यासों में प्रगतिशील विचार हैं। सालेहा आबिद हुसैन एक प्रमुख उर्दू कथा लेखक हैं। सल्मी सिद्दीकी ने मध्यम वर्ग के जीवन पर कथा लिखी। उनके अलावा हैदराबाद के फरखुंदा बाद की बानो नकवी, जीनत सजदा, नजमा निघत का नाम सामने आता है। जिलानी बानो प्रगतिशील आंदोलन की जननी हैं। हैदराबाद की मशहूर फिक्शन राइटर वाजदा तबस्सिम चर्चा का विषय बनी रहीं। इफत मोहानी, अमीना अबुल हसन, राफिया मंजूरुल अमीन, अल्ताफ, कौसर जहाँ, वसीम बानो किदवई, फरहत जहाँ, किशोर जहाँ, सईदा सालमी, डॉ. शमीम निखत, हमिरा इकबाल, हसन बानो, साइमा जिओर, मेहनाज आदि हैं।
इस तरह की तकनीक की मदद से आज महिलाएँ जिस साहित्य को पढ़ रही हैं, वह निस्संदेह उच्च कोटि का साहित्य है। परन्तु साहित्य का वर्गीकरण साहित्य समीक्षकों का कार्य है। यदि महिलाओं में उच्च साहित्य, लोक साहित्य, मनोरंजन साहित्य, जासूसी साहित्य, श्री साहित्य, लोकप्रिय साहित्य या कोई भी साहित्य पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो यह स्वागत योग्य बात है। जितनी तेजी से महिलाओं में उर्दू साहित्य पढ़ने का चलन बढ़ेगा, उतनी ही तेजी से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा। उर्दू साहित्य की विधाओं में ग़ज़ल, नॉवेल और फिक्शन ऐसी विधाएँ हैं जिन्हें स्त्रियाँ रुचि के साथ पढ़ती हैं।
कसीदा, मर्सिया, मुसनवी या सफरनामा शैलियों को आमतौर पर महिलाओं द्वारा पढ़ा जाता है जिन्हें कॉलेज या विश्वविद्यालय की पाठ्यचर्या सम्बंधी आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। कथा और उपन्यास की बात यह है कि बानो कुदसिया, इस्मत चुग़ताई, वाजदा तबसीम और रजिया बट जैसे कथाकारों की पुस्तकें आज भी हजारों की संख्या में बिक रही हैं। हाँ, इतना तय है कि उर्दू में उपन्यास लेखन की शुरुआत करने वाले डिप्टी नजीर अहमद और कसीदा के कलाकार की उपाधि से नवाजे गए राशिद अल खैरी महिलाओं के सुधार के लिए उपन्यास और फिक्शन लिख रहे थे, आज इसकी ज़रूरत नहीं है।
आज के समाज में महिलाओं के लिए वैसी सोच नहीं है जैसी राशिद अल खैरी के समय में थी। आज की महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और अपने जीवन की दिशा और गति निर्धारित करने की ताकत और क्षमता रखती हैं। उर्दू साहित्य के निर्माण में महिलाओं द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों की अक्सर चर्चा हुई है, लेख और पत्र लिखे गए हैं, किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। उर्दू साहित्य इतिहास के हर दौर में महिलाओं की भूमिका रही है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस शेयर का अनुपात बहुत कम रहा है। जब उर्दू शायरी में महिलाओं की बात आती है, तो मह लक़ा बाई चंदा से लेकर परवीन शाकिर तक सैकड़ों नहीं तो दर्जनों नाम याद आते हैं।
लेकिन उर्दू शायरी के इतिहास में क्या मीर, ग़ालिब और इकबाल की कोई शायरा है? शायद नहीं। इसके ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं लेकिन वास्तविकता को बदला नहीं जा सकता। उर्दू कथा साहित्य में महिलाओं की उपलब्धियाँ कविता की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। लोकप्रिय साहित्य हो या उच्च साहित्य, दोनों ही स्तरों पर महिलाओं ने अपनी अविस्मरणीय उपस्थिति दर्ज कराई है। रज़िया बट, बुशरा रहमान, इफत मोहानी और वाजदा तबसीम जैसी महिला कथा लेखकों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। इनके पाठक लाखों में हैं। यदि उर्दू उपन्यासों और उपन्यासों में केवल इस्मत चगताई और क़ुरतुल ऐन हैदर के ही नाम लिखे जाएँ तो इतिहास के पन्ने चाँद और सूरज की तरह नज़र आने लगेंगे।
हालांकि हैदराबाद डेक्कन की रहने वाली तैयबा बेगम ने २०वीं सदी के पहले दशक में तीन उपन्यास लिखे, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि नरेंद्रनाथ बुर्ज कमान की बेटी तैयबा बेगम के बताए रास्ते पर चलकर महिलाओं ने उर्दू साहित्य के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कीं हिजाब इम्तियाज अली और नज़र सज्जाद हैदर हिब्स महिलाओं द्वारा पहने दिया जाए तो इतिहास के पन्ने चाँद और सूरज की तरह दिखने लगेंगे। हालांकि हैदराबाद दक्कन की रहने वाली तैयबा बेगम ने बीसवीं सदी के पहले दशक में तीन उपन्यास लिखे थे, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि महिलाएँ उर्दू कथा साहित्य के क्षेत्र में महान उपलब्धि हासिल करेंगी। तैय्यबा बेगम के नक्शेकदम पर चलते हुए बिंत नरेंद्रनाथ बर्ज कुमारी, हिजाब इम्तियाज अली और नज़र सज्जाद हैदर जैसी महिलाओं ने उर्दू उपन्यास को कुछ नए विषय दिए। उर्दू में प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलन ने महिलाओं को एक नया मंच दिया। लखनऊ में प्रगतिशील आंदोलन की पहली बैठक में अध्यक्ष के रूप में मुंशी प्रेमचंद द्वारा दिए गए भाषण ने कुछ हद तक उर्दू साहित्य की दिशा और गति को निर्धारित किया। यहाँ मुंशी प्रेमचंद के सौन्दर्य के मानक बदलने वाले ऐतिहासिक मुहावरे ने महिलाओं को आगे बढ़ने का हौसला दिया।
प्रगतिशील आंदोलन ने महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा किया। इसने उन्हें साहित्य की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी साहस के बल पर डॉ राशिद जहाँ ने वे कल्पित रचनाएँ लिखीं, जिन्हें पढ़कर समाज का एक वर्ग जागृत हो उठा। डॉ. राशिद जहाँ, रजिया सज्जाद जहीर, इस्मत चुगताई और वाजदा तबसीम जैसे कथाकारों ने समाज को आइना दिखाने का काम किया। शजर ने वर्जित वृक्ष को छूने का साहस दिखाया। उनके साथ, क़ुरतुल ऐन हैदर अपनी एक अलग दुनिया में बसती है। “ये गाज़ी ये तेरे पर असर बंदे” और “फ़ोटोग्राफ़र” जैसी कालातीत और उत्कृष्ट रचनाएँ लिखकर क़रातुल ऐन हैदर ने उर्दू फ़िक्शन को विश्व कथा साहित्य में जगह दी। जिलानी बानो, हाजरा मसरूर, खदीजा मस्तूर, बानो कुदसिया, जमीला हाशमी और सल्मी सिद्दीकी जैसे हाई-प्रोफाइल फिक्शन लेखकों के नाम भी इस सूची में जोड़े जा सकते हैं। ये सभी २०वीं सदी के महत्त्वपूर्ण उर्दू लेखक हैं जिन्होंने उर्दू साहित्य के क्षेत्र को समृद्ध किया है।
२१वीं सदी के दो दशकों पर नज़र डालें तो महिलाओं में उर्दू साहित्य के प्रति जो रुझान बढ़ा है, उसमें आधुनिक विषयों पर लिखने वाली महिलाओं की बड़ी अहम भूमिका है। ज़किया मशहदी, सरबत ख़ान, सबिहा अनवर, तरनम रियाज़ और निगार अज़ीम जैसे उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों और उपन्यासों में नए विषयों को जगह दी है। नई पीढ़ी की महिलाओं में उर्दू साहित्य पढ़ने की प्रवृत्ति का मुख्य कारण यह है कि ये महिलाएँ कथाकार हैं। इन्हीं समस्याओं को केन्द्र में रखकर लिखी जा रही कथा लोकप्रिय भी हो रही है और उसका अर्थ भी दिख रहा है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उर्दू साहित्य में महिलाओं की बढ़ती प्रवृत्ति एक स्वागत योग्य बात है। महिलाएँ आज सृजन, अनुसंधान और आलोचना के स्तर पर पहले से कहीं अधिक सक्रिय हैं। भारत सरकार ‘खड़ी दुनिया’ जैसी पत्रिकाएँ प्रकाशित करती है। महिला लेखिकाओं का उनका अपना संगठन उर्दू साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय है। पाठकों के रूप में महिलाओं का कार्य सराहनीय है। इस गति को थोड़ा और बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि उर्दू साहित्य में महिलाओं का यह बढ़ता रुझान कम न हो।
खान मनजीत भावड़िया मजीद
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