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इंकलाब जिंदाबाद
इंकलाब जिंदाबाद
भगत सिंह की भक्ति का,
भारत माता की शक्ति का
मैं जज़्बा लेके बेटा हूँ,
कोई नहीं जानता उसको
मैं आज बताने वाला हूँ
खून खोलता मेरे दिल का
वह खून उबरने वाला है
आज देश के गद्दारों को
मैं औकात दिखाने वाला हूँ
इंकलाब के जयकारों से
आवाज उठाने वाला हूँ
उठो जवानो में तुमको
वो मैदान दिखाने वाला हूँ
जहा भगत सिंह ने अपनी मां
को गले लगाया था।
मां लेकर आई थी आशा
बोलेंगे सब एक ही भाषा
लेकिन अपने ही राष्ट्र के गद्दारों ने
हिन्दी को इंग्लिश बना दिया
फिर क्यों कहते हो तुम सब
की मातृभाषा को भुला दिया
इसी बात का दर्द है मुझको
की देश द्रोह गद्दारों को
फिर से उनको क्यों तुमने
राष्ट्रवाद का दर्जा दिला दिया
जिसने ही उन तीन मासूमों को
फांसी के फंदे झूला दिया
जागो तुम मेरे वीर जवानों
हक़ तुम्हारा छीना हे
राष्ट्रभाषा को फिर से पाओ
यह भगत सिंह का वादा है
दहेज
एक पिता के दर्द को तुम क्या जानो,
टूटे उस के दिल की मर्ज तुम क्या जानो।
गुजरेगा कभी ना कभी फिर वह मेरे दिल से,
नाम तुम्हारा ही है दर्ज तुम क्या जानो।
बेटी भी दे दी उस गरीब ने दहेज के साथ में,
होता क्यो गरीब पर कर्ज़ तुम क्या जानो।
खेल खेलते है कुछ मतलबी लोग जिस्मो का,
एक लड़की की इज़्ज़त क्या होती तुम क्या जानो।
हंसते हंसते ना जाने कितने जान गवा बैठे,
हाढ़ा टेक की बीमारी में लाखो जान गवां बैठे
वतन का क्या होता फ़र्ज़ तुम क्या जानो।
दवा मिली ना “Op Merotha” कहीं टूटे दिल की,
टूटे दिल का दर्द तुम क्या जानो
उस पिता की दर्द भरी कहानी को तुम क्या जानो
मर-कर भी तरहस रही है वह आत्मा
तुम ख़ुद को भी पहचान सखे नहीं तो
उस पिता की आत्मा को क्या जानो
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाना तुम क्या जानो
कभी मलहम नहीं की है तो
तुम दवा लगाना क्या जानो
माँ
जब मैं छोटा था तो माँ कहती थी
की जब बिल्ली रास्ता काटे तो बुरा होता है
वही रुक जाना चाहिए,
मुझे आज भी ख़्याल आ जाता है।
जब बिल्ली रस्ते में आ जाती है,
तो में वही रुक जाता हूँ,
क्योंकि मुझे माँ याद आ जाती है।
में शुगुन अपशुगुन को नहीं मानता
मगर में माँ को मानता हूँ …
जब में स्कूल जाता तो माँ कहती थी
की ‘ बेटा माता-पिता का आशीर्वाद लेकर जाया करो
तुम क्लास में फस्ट आओगे,
वही बात मुझे आज भी याद आ जाती है
जब में घर से बाहर जाता हूँ तो
मेरी “माँ” याद आ जाती है,
ओर जब मुझे नींद नहीं आती थी तो
मां नहीं सोती थी, मेरे साथ जागती रहती थी
बेटी रहती थी, लोरिया सुनाया करती थी।
मुझे आज भी माँ की याद आ जाती है,
जब मेरी आँख नहीं मिचती हे,
होती है क्या चीज माँ ये भला कौन जाने,
ये तो उस छोटे बच्चे से पूछो
जिसे माँ का प्यार कभी नसीब नहीं हुआ हो…
बड़े होकर भूल गए सब, माँ होती है क्या
हरे, याद करो उस रात को,
जब ख़ुद गीले में सोई थी, ओर सूखे में तुम्हे सुलाया था।
मां:
मेरा पहला प्यार, मेरी मां
मेवाड़
राणा की वीर भुजा पर बलिदान दिखाई देता था
चेतक के स्वामी भक्ति पर अभिमान दिखाई देता था।
रण बन्कुर में रण डेरी जब-जब बजाई जाती थी।
राणा के संग चेतक की पीठ सजाई जाती थी।
युध्द भूमि में जब राणा सिंहो से गरजा करते थे।
दुश्मन के ऊपर जब मेघों से बरसा करते थे।
शत्रु राणा को देख पहले ही डर जाता था
पल भर में राणा का भाला छाती में धस जाता था।
रण भूमि में केवल तलवारो की टंकार सुनाई देती थी ।
कटते दुश्मन की मुण्डो की चित्कार सुनाई देती थी
पवन वेग से तेज सदा चेतक दौडा करता था।
दुश्मन देख उसे रण को छोडा करता था।
राणा और चेतक जहा से निकल जा जाया करते थे
शत्रु के पौरुष वही धरा पर गिर जाया करते थे।
रण बीच घिरे थे राणा दुश्मन भी भौचके थे
देख चेतक की ताकत को सब के अक्के बक्के थे।
युद्ध भूमि में जब शंख नाद हो जाता था
राणा के अन्दर काल प्रकट हो जाता था
राणा का वक्षस्थल जिस दिशा में मुड़ जाता था।
चेतक उसी दिशा में हिम गिरि-सा अड जाता था।
विश्व पटल पर तेरी चर्चा अब हर कोई गायेगा।
चेतक की स्वामी भक्ति पर जन-जन शिश नवायेगा ।
इन्क़लाब क्या है
नसों में गर्म खून हर जवान, इन्क़लाब है
जो खींच ले ज़मीं को आसमान, इन्क़लाब है
दमन के ठोकरों से उठ के आधियाँ जो बन गयी
वो दर्द और सितम की दास्तान इन्कलाब है
जमीन बंजारों की है तो हौसले का हल चला
उगा दे इक नयी फ़सल किसान इन्क़लाब है
ये आग ज़ुल्म की है पर हमे जला न पायेगी,
के जिश्म पर पड़े हर इक निशान इन्क़लाब है
महल तेरे ही हाथ से खड़े हुए है भूल मत
तू याद रख तेरा भी ये मकान इन्कलाब है
खामोश हैं जो लब तो तू तूफान सामने समझ
हक़ों की चाह में तो ये ज़बान इन्कलाब है
सियासी सरहदों की सारी बंदिशों को तोड़ के
निकल पड़े जो घर से तो अवाम इन्क़लाब हे।
फैशन
आजकल की फैशन न देखो
फैशन ही तो छा री च
नी फैशन का चक्कर में
ये यह छोरिया घणी इतरारी च
आदा-सा छोरि लता पेरह
सारो ही ड्डिल दिकावे च
अरे रुपया का चक्कर में
या नंगा नाच दिखावे च
बुड्ढा क भी जवानी आगी
नी छोरियाँ का चक्कर में
माथा में गोबर लगवावे
नई फैशन का चक्कर में
जरा-सी हस गी तो गोरी
फस ग्यो उकहा का चक्कर में
डंका भी लता नहीं पेरह,
नी छोरियाँ के चक्कर में
आज-काल का छोरा पागल हो गया
नहीं फैशन का चक्कर में
अरे थोड़ा सो मुस्कायो तो छोरो
या फस गि उकह चक्कर में
आख्या मैं देखह तो छोरो
या आसमान में देखह च
ज्यू-ज्यु पास जावे छोरा
उड़ान घणी या भर री च
रुपया का लालच में देखो
या हनिप्रीत ही बन री च
नंगा नाच बतावे या तो,
GTV का चक्कर में
माई-बाप सब बूढ़ा होगया,
नी फैशन का फक्कर में
हाथ जोल्ड मु करू विनंती
या पर देलियो ध्यान
मारे अलावा तानह अस्यो
कई न मिलेगो ज्ञान
ओम प्रकाश मेरोठा
छबड़ा ज़िला बारां (राज०)
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