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आंसू मेरे अपने
आंसू मेरे अपने हैं इनके कोई
नहीं है छलावा
दुःख पीड़ा की चोट है इनमें
नही इसमें कुछ भी इसके अलावा
मुझको ठुकराने वाले
कहा मोल जाने इसके
वो तो चले उस नगरी जहाँ
दौलत के इंसान मिले हैं
हम तो पग पर जाने कितने बारे छले है
मगर देख आंसू आंखों में मेरी
कौन यहाँ तुम से है कहने वाला
मेरी पीड़ा अपनी नहीं है नहीं गैर
से उसको कहूँ गा
ये बस्ती ऐसी है अगर तो
मैं भी अब चुप ही रहूँ गा
पर पीड़ा पर हंसने वाले लोग
यहाँ अक्सर देखें हैं
मैं जो ये जानकर कुछ भी न
उनसे कहूंगा
उत्साह
चोट शरीर को तोड़ सकती है
इरादों को नहीं तोड़ती है
मन का विश्वास अटल तब जीत होती है
जोखिम से न जो घबराए
चोट सीने पर जो खाए
ऐसे ही जांबाजों
की कोशिश ही तो
सफल होती है
अनुभव का बखान न करके
जो युवा आगे आते हैं
जोशीला अंदाज़ को
देख शत्रु देख-देख उनको
घबराते हैं
हर योजना उनकी पल भर
में विफल होती है
मन का हो विश्वास अटल
तब जीत होती है
कहाँ रह गये
कहाँ रह गए है वो यार
जो अक्सर शाम के होने पर आ जाते थे
गूंजा करती थी गलियाँ उनके शोर से
उनमें अब सन्नाटा पसरा है
दुकाने सारी बंद पड़ी है।
लोग घरों में बैठे हैं, जिनके बाहर होने से
बाजार गुलजार थे, रौनकता से
वहीं पुलिस के वाहन का शोर होता है
जो सूचना देता है, घर पर रहने की
क्योकि बाहर अभी आना मना है
और घर पर रहने के वह आदी नहीं है क्योंकि
घर पर रहकर वह नहीं सामना कर पाते हैं
बहुत से सवालों का, जिनका ज़बाब
वो छुपा रहे थे, बहुत सालों से अपनी पत्नी से
जिनकी पोल खुल रही है और झगड़ा के साथ
बर्तन और झाड़ू चलने के बाद कराहने की आवाजें
अक्सर दरवाजे के बाहर आ ही जाती है
बुद्ध होना आसान नहीं था
पहले देखी उन्होंने
जिंदगी की सच्चाई को
परखा इंसानी रिश्तों को
जाना जीवन को
देखा बुढ़ापे को
और उस असारता को भी देखा
जिसे दुनिया देखती तो है
और भोगती भी है
और मरना फिर भी नहीं चाहतीं
उम्मीदें बाँधती है
और टूटने पर भोगती है
असहानीय दुःख को
तुम तो मौजूद हो
उस शान्ती के रास्ते पर जहाँ हम
अभी पहुँचे ही नहीं है
और ख़ुद को बतलाते आएँ हैं
बुद्ध का सच्चा अनुयाई
पर जब तक मन से ईर्ष्या
एवं बदले की भावना खत्म नहीं होगी
तब तुम्हें हम पा ही नहीं सकते क्योंकि
बुद्ध का अर्थ ज्ञानी, जो संसार
को जान चुका था
इसालिए छोड़ दिया इक पल में
सारा सुख वैभव
जो संसार में सदा दुःख के
सिवा कुछ भी नहीं देता है
गीत लिखना तुम
गीत लिखना तुम प्रशंसा वाले
उसमें चुभने वाली बात न कहना
वरना उनको गढ जाएंगी
बात बहुत फिर बढ़ जाएगी
छीन जाएगी आज़ादी तुम्हारी
सब कुछ सहना
चुप ही रहना
बात चुभने वाली न कहना
कोई अगर पूछें
तो टाल जाना
उसमें बचना कोई पहलू निकाल जाना
बात को बिगाड़ने से
पहले संभाल जाना
मुसीबत अपनी बढ़ने से
कुछ नहीं होगा
ऐब उनके गिनाने से कुछ नहीं होगा
सभी से बनाकर चलना पड़ेगा
ज़माने को नहीं तुमको बदलना पड़ेगा
राजनीति से दूर रहना पड़ेगा
कुछ भी नहीं अब कहना पड़ेगा
आंखों को बंद कर लो
कुछ भी नहीं देखो
प्रशंसा में चाहें उनकी।
लंबी लंबी फेको
उनकी नज़र में नहीं आना तुम
ऐसे से अपनों को बचाना तुम
कुछ कमाना चाहिए
सारे काम तुमको आना चाहिए
खाना भी तुम्हें बनाना चाहिए
सिर्फ रोटी खाते हो तुम और
कमाता कोई और है
तुमको भी अब पैसा कमाना चाहिए
काम आओ तुम सभी के तो
रिश्ता ये क़ायम रहे
मुसीबतों में सभी के काम आना चाहिए
यूं अगर रोते रहोगे तो
कौन देगा साथ
कभी कभी प्यारे तुम्हे भी मुस्कुराना चाहिए
घर से बाहर ही निकलकर
जान पाओगे ज़िन्दगी को
अब तुम्हें भी अपने घर से बाहर जाना चाहिए
खुदकुशी अच्छी नहीं है बुजदिली है ये यहाँ
अब जरा-सी बात पर नहीं मरने जाना चाहिए
ये इबादत से बढ़कर के बड़ी बात है
तुम्हे अब पंक्षी का घर बचाना चाहिए
जिंदगी कुछ न कुछ तो सिखलाई तुम्हे
बस तुम्हे उसको यहाँ शिक्षक बनाना चाहिए
अब यहाँ से तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा
अब तुम्हें दूझो घरों के पास जाना चाहिए
नशा ठीक नहीं
तुमको नशे से ख़ुद को बचा लेना चाहिए
और ज़िंदगी का भरपूर मज़ा लेना चाहिए
सफलता उसके क़दम को चूमने को मजबूर हैं
जो लोग जिदंगी में इस नशे से दूर है
बीड़ी सिगरेट की ये आदत जिसको भी लग जाएँ
देख लेना उसको फिर मौत तक लेकर जाएँ
इस नशे ने ज़िन्दगी कितनी खराब की
ऐसा ग़म मिला जो तुमने ये शराब पीए
खैनी गुटका और तंबाकू जो खाते रहोगे
कब तक बेसकीमती ज़िन्दगी गंवाते रहोगे।
चैन कैसे पाओगे इस नशे की क़ैद में।
मौत तक आ जाओगे इस नशे की क़ैद में
जिंदगी भर का दुःख और परिवार को तकलीफ़ है
और आख़िर में सबकुछ बिक जाता है
जाने क्यों आदमी नशे तक जाता है
अभिषेक जैन
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