Table of Contents
हिंदी मेरे अंतस की अभिव्यक्ति
हिंदी मेरे अंतस की अभिव्यक्ति: पूनम मेहता
हिन्दी, मेरी मातृभाषा मेरी माँ मेरी सखी, मेरी सहयोगिनी जब से इस धरती पर पाँव धरा, तब से तू ही मेरे साथ रही, एक सपना है मेरे मन का कि मैं मरते दम तक तेरा हाथ पकड़ कर चलूँ l जीवन के हर मोड़ पर, हर मुश्किल में हर हार में, संघर्षों के प्रहार में मेरी मातृभाषा तुम दिल और आत्मा से मेरे साथ थी l मेरी तुतलाती भाषा में भी तेरी ही आवाज़ थी l
जीवन के भिन्न-भिन्न पड़ाव पर कभी प्रसाद पंत निराला, कभी महादेवी वर्मा, कभी कबीर, रहीम, रसखान तो कभी मुंशी प्रेमचंद जीवन को हर पग पर प्रभावित करते चले l मेरे जीवन की दिशा व दिशा हिन्दी, हिन्दी के साहित्यकारों और हिन्दी साहित्य की ही देन है l मेरा जीवन सदा ही हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य और हिन्दी साहित्यकारों का सर्वदा ऋणी रहेगा l
हिन्दी भाषी होने के नाते मैं सदा गौरवान्वित रहूंँ और अपनी मातृभाषा के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति में खरा उतर सकूंँ, यही मेरी हृदयी कामना है l जीवन के बीहड़ जंगलों में जब भी ख़ुद को अकेला पाया कभी प्रेमचंद को पढ़ा, कभी अज्ञेय को जीवन में उतार लिया, कवि सुमित्रानंदन पंत की तरह रहस्यवाद मैं ख़ुद को भूल गई, प्रकृति के भीतर परमात्मा को पा लिया, तो कभी महादेवी के संग जीवन के विरह में आंसू बहा लिए और पीड़ा में परमात्मा प्रियतम को ढूँढ लिया।
अपने आसपास के ज़िन्दगी को जब संघर्षों से जूझते पाया तब मुशी प्रेमचंद का हर पढ़ा हुआ उपन्यास याद आया, मैंने पढ़ा जब निराला को जीवन की विसंगतियों के प्रति मन में पीड़ा के साथ एक क्रांति भी जाग उठी, कभी पढ़कर दुष्यंत जी को उस क्रांति को एक मशाल-सी चेतना मिली कि सोचो सिर्फ़ अपने लिए नहीं सारा जहाँ ही अपना है l मृदुला गर्ग को पढ़कर जीवन की परेशानियों को सरलता से काग़ज़ पर लेखन द्वारा उतारने की कोशिश की कभी हंसना, मुस्कुराना, रोना-धोना न जाने क्या-क्या साथ-साथ किया l
अमृता प्रीतम जी से उन्मुक्त प्रेम की परिभाषा को समझा और मन आश्चर्यचकित हुआ, यह भी जाना कि प्रेम को किसी सीमाओं में बाँधा ही नहीं जा सकता l कृष्णा सोबती जिन्होंने अपना सारा जीवन हिन्दी को ही समर्पित कर दिया, कैसे भूलूँ मैं उन्हें l
हम हशमत, मित्रो मरजानी…से चलते-चलते गुजरात से पाकिस्तान तक जीवन की अंतिम सांस तक जो लिखती गई… बस लिखती ही गई मैं हमेशा गौरवान्वित रहूंँगी एक ऐसी धरती पर मैंने जन्म लिया जहांँ हिन्दी मेरी साथिन है, मेरे भावों की भाषा है मेरे उदगारों की वाणी है मेरे जीवन को सहजता मेरी मातृभाषा ने मुझे दी है, शब्द हमेशा कम पड़ेंगे l हिन्दी भाषा माँ का, मातृभाषा का आभार जताने के लिए भी नमन मेरी माँ मातृभाषा।
पूनम मेहता
सीवन, कैथल, (हरियाणा)
यह भी पढ़ें-
3 thoughts on “अंतस की अभिव्यक्ति”