
सुहाना सावन
सुहाना सावन: लक्ष्मी की शादी इस साल फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में हुई। अभी वह अपने पति के साथ हनीमून भी ठीक से नहीं मना पाई की “कोरोना” महामारी के कारण पहले जनता कर्फ्यू और बाद में सम्पूर्ण लॉकडाऊन का दंश झेलना पड़ गया। खैर… कोरोना से बचने के लिए वह और उसका पूरा परिवार आवश्यक सावधानी बरत रहे थे। समय तो जैसे कोरोना तक ही सीमित हो गया। घर से बाहर निकलने की पाबंदी, तो कहीं बढ़ते कोरोना मरीजों का भय। लक्ष्मी लॉकडाऊन लगने के ठीक पहले ही अपने पीहर आई थी। लक्ष्मी का पीहर इंदौर है और ससुराल राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में। इंदौर में कोरोना ने अपने पैर फैला दिए थे। घर से बाहर निकलना, जान जोखिम में डालने जैसा था। लक्ष्मी को पीहर आए लगभग चार महीने बीत गए थे। न ससुराल से और न ही पीहर से कोई लेने या छोड़ने आ-जा, सकता था।
सावन का महीना पास आ रहा था। लक्ष्मी का यह पहला सावन मास था। अपने पति के विरह की वेदना वह पहले से ही झेल रही थी और ऐसे में यह दूरी आग का काम कर रही थी। इस वर्ष इस सावन को किसकी नज़र लग गई। न बागों में झुले, न ही मेले लगे। यह रंग बिरंगे, पंचरंगी लहरिए, आख़िर पहन कर, वह कहाँ जाएँ। साज-श्रृंगार करके वह किसको दिखाएँ। लक्ष्मी बहुत उदास थी, सावन की रिमझिम-रिमझिम बूंदें, उसके जलते बदन को और भी जला रही थी। कुछ बूंदें आंखों से निकल कर, उसके भीगे गालों पर ठहर कर, मानों उसे और भी चिढ़ा रही थी। एक तो यह “सुहाना-सावन” दूजा यह “कोरोना” का है रोना। हाय, मिलन के रास्ते में यह बैरी “कोरोना” क्यूं आया। लक्ष्मी यह सब सोच-सोच कर बारिश की बूंदों में अपनी अश्रुधारा पोंछ रही थी कि एक हाथ उसके कंधे पर आता है। लक्ष्मी एकदम चौंक कर मुड़कर देखती है, कोई और नहीं बल्कि मनोज (लक्ष्मी का पति) था। लक्ष्मी को विश्वास ही नहीं हुआ। वह एकदम चौकी और सहम भी गई। आख़िर मनोज कैसे लेने आ गए,। मनोज अपने जीजा के साथ अपनी कार से लेने आए थे।
हेमा पालीवाल उदयपुरी
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