
तुम जीवन हो
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शिक्षक दिवस : रचनात्मकता को नवल आयाम देते नवाचारी शिक्षक
शिक्षक दिवस विशेष: समाज जीवन में आजीविका के विविध साधन क्षेत्र दिखाई देते हैं। लेकिन इनमें से बहुत थोड़े से ही क्षेत्र हैं जहाँ कार्यरत व्यक्ति अपनी रचनात्मकता एवं नवाचार से कार्य को आकर्षक, सुगम सम्प्रेषणीय, सहज ग्राह्य एवं सौंदर्यपरक बना देते हैं; जहाँ नित नये निर्माण के अवसर होते हैं, जिनसे समाज जीवन को गति मिलती है। शिक्षण एक ऐसा ही क्षेत्र है जहाँ काम करते हुए व्यक्ति अपनी कल्पना, सोच-विचार और नवाचारी जीवन दृष्टि से रचनात्मकता को नवल आयाम देते हैं। शिक्षा ही वह क्षेत्र है जहाँ शिक्षक बंधी-बंधाई नीरस कार्य प्रणाली से बिलकुल अलग प्रकार की एक सरस, प्रेरक एवं आनंदमय कार्यपद्धति और व्यवस्था का हिस्सा बनते हैं, जहाँ अभिव्यक्ति एवं नवल सर्जना के लिए सहज अवसर सर्वदा उपलब्ध होते हैं। विद्यालय में शिक्षक व्यक्ति का निर्माण करते हैं, ऐसे व्यक्ति का निर्माण जिनका हृदय संवेदना, सहकार, सहानुभूति, न्याय, विश्वास, करुणा, प्रेम, अहिंसा और बंधु-भगिनी भाव से ओतप्रोत हो, जो क्षेत्र, पंथ, मजहब, भाषा, लिंग, वेश, रंग, नस्ल से परे परस्पर मानवीय सम्बंधों की आत्मीयता और मधुरता की ऊष्मा को अनुभव करते हुए तदनुरूप व्यवहार करते हैं। शिक्षण का क्षेत्र ही ऐसा एकमात्र क्षेत्र है जहाँ बच्चों के मन-मस्तिष्क के साथ हृदय और हाथ के समन्वयन के लिए कार्य किया जाता है। सहृदय व्यक्ति ही दुनिया को सुंदर और रहने लायक जगह बनाये रख सकते हैं। कह सकते हैं, शिक्षा विश्व को संवेदना, सौंदर्यबोध, सहकारिता, सहानुभूति एवं सामूहिकता के साथ जीने का पथ प्रदर्शित करती है। शिक्षा ही मनुष्य में मनुष्यता का भावारोपण कर देवत्व की ओर अग्रसर करती है। इसलिए शिक्षा क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को साधारण नहीं समझा जा सकता क्योंकि वह समाज और देश-दुनिया का भविष्य गढ़ता-रचता है। वह बच्चों की आंखों में सुंदर सुरभित सुनहरे भविष्य के स्वप्नों के बीज बोता है। शिक्षक साधारण दिखता हुआ भी अपनी साधना, संघर्ष, सत्कर्म एवं सात्विकता से असाधारण कार्य सिद्ध कर लोक जीवन में समादृत होता है।
शिक्षक के कार्यक्षेत्र की चुनौतियाँ बिलकुल अलग प्रकार की होती हैं। वह निर्जीव मशीनों के साथ काम नहीं कर रहा होता बल्कि भावप्रवण संवेदनशील कोमलमना बच्चों के साथ हर पल जीता है, जो समाज की धरोहर हैं। बच्चों का कलरव विद्यालय प्रांगण में खुशियों की वर्षा करता है। परिवार, समाज एवं ग्राम का भविष्य कैसा होगा, यह शिक्षक की कक्षा और उसका व्यवहार देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। शिक्षक केवल पुस्तकें ही नहीं पढ़ते-पढ़ाते, बल्कि बच्चों के मन को भी पढ़ते हैं। वे बच्चों के हाथों में केवल लेखनी नहीं सौंपते अपितु एक लेखनी की सकारात्मक शक्ति एवं अपरिमित ऊर्जा से भी परिचय कराते हैं। शिक्षक के लिए विद्यालय एक कार्यालय भर नहीं होता बल्कि वे उसे बच्चों के ज्ञान निर्माण की सहज जगह बनाते हैं, जहाँ बच्चे निर्भय होकर अपने सपनों की फ़सल उगाना सीखते हैं। शिक्षक न केवल बच्चों के साथ बल्कि अभिभावकों और समुदाय के साथ भी एकात्मकता और परस्पर पूरकता का सेतु निर्मित करते हैं। समुदाय के लिए विद्यालय को शैक्षिक संसाधन के साथ ही एक साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी विकसित करते हैं जहाँ समुदाय अपनी भूमिका निर्वहन् हेतु आवश्यक ऊर्जा और मार्गदर्शन प्राप्त करता है। शिक्षक बच्चों के माध्यम से लोक में रचे-बसे कला-कौशल, संस्कृति, साहित्य, इतिहास एवं परम्परागत ज्ञान-सम्पदा के संरक्षण का भी कार्य करता है। शिक्षक प्रतिदिन अनेकानेक चुनौतियों, बाधाओं और अवरोधों से जूझते हुए अपने नवाचार से कल्पना एवं रचनात्मकता को अभिव्यक्त करता है। शिक्षक दिवस के अवसर पर देश के लाखों शिक्षकों को नमन करते हुए कुछ नवाचारी प्रयासों को साझा करता हूँ जो बच्चों के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को गति देते हुए सहज बनाते हैं, जो समुदाय को प्रकृति के साथ जीने की राह दिखाते हैं। ये शिक्षा सारथी शिक्षक विद्यालय को बच्चों के लिए एक आनंदमय जगह बनाते हैं जहाँ बच्चे खुशी-खुशी सीखते हुए हर दिन कुछ नया रचते-बुनते हैं।

पिथौरागढ़, उत्तराखंड के शिक्षक एवं शैक्षिक दखल पत्रिका के सम्पादक महेशचंद्र पुनेठा ‘दीवार पत्रिका’ के माध्यम से विद्यार्थियों में लेखन कौशल के विकास हेतु एक अभियान के रूप में कार्य कर रहे हैं। ‘दीवार पत्रिका अभियान’ से देश के सैकड़ों शिक्षक जुड़कर अपने विद्यालयों में नियमित पाक्षिक एवं मासिक पत्रिकाएँ बच्चों से बनवाकर प्रकाशित कर रहे हैं। महेशचंद्र पुनेठा झोला पुस्तकालय के अभिनव प्रयोग से पढ़ने-लिखने की संस्कृति विकसित कर रहे हैं। बांसवाड़ा, राजस्थान के शिक्षक विजयप्रकाश जैन सामुदायिक पुस्तकालय ‘सोपड़ा नू घेर’ के माध्यम से वनवासी बच्चों एवं समुदाय को स्वाध्याय से जोड़कर उनकी भाषा-बोली के संरक्षण पर काम कर रहे हैं। फतेहपुर, उत्तर प्रदेश की शिक्षिका आसिया फारूकी खंडहर और कूड़ा का डंपिंग प्लेस बन गये विद्यालय को आदर्श विद्यालय में परवर्तित कर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करती हैं। छत्तीसगढ़ में अबूझमाड़ के घने जंगल में वनवासी समुदाय को शिक्षा के महत्त्व से परिचित कराने हेतु देवेंद्र देवांगन द्वार-द्वार दस्तक देते हैं। पौढ़ी गढ़वाल, उत्तराखंड की इंदु पंवार बच्चों के बीच डायरी लेखन पर काम कर अभिव्यक्ति के अवसर बना रही हैं। तो उत्तर प्रदेश से ज्योति जैन (आगरा) गाँव को प्लास्टिक मुक्त बनाने के अपने प्रयास के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ से सम्मानित हैं। बांदा के रामकिशोर पांडेय बाल संसद और मीना मंच के माध्यम से बच्चों में लोकतांत्रिकता एवं सामूहिकता का भाव भर रहे हैं। आभा त्रिपाठी (मऊ) बाडी शेमिंग मुद्दे पर जागरूकता का प्रसार कर रही है और हिना नाज़ (जालौन) कक्षा की दीवारों पर दर्जन भर एक्टिविटी ब्लैक बोर्ड बनाकर बच्चों को मन की बात लिखने का मंच उपलब्ध करा रही हैं। शाहजहांपुर के शिक्षक प्रदीप राजपूत बच्चों में वैज्ञानिक चेतना के विकास के लिए काम करते हुए कबाड़ और परिवेशीय वस्तुओं से विज्ञान के प्रयोग हेतु संसाधन जुटा लेते हैं। नवाचारी प्रेरक शिक्षकों के इस माणिक्य माल में असंख्य जगमगाते मोती आभा बिखेर रहे हैं। समुदाय शिक्षा के प्रति समर्पित शिक्षकों की पहचान कर न केवल सम्मानित करें, बल्कि साथ मिलकर विद्यालय को आनंदघर बनायें, शिक्षक दिवस का यही उद्देश्य है।
जीवन की शुभता का प्रतीक श्रीफल नारियल
लेख का आरम्भ मैं संस्कृत नीति ग्रंथ ‘हितोपदेश’ के एक श्लोक से करता हूं-
नारिकेल समाकारा दृश्यन्ते खलु सज्जना:।
अन्ये च बदरिकाकारा बहिरेव मनोहरा:॥
भावार्थ है, सज्जन व्यक्ति निश्चित ही नारियल के समान दिखते हैं। ऊपर से कठोर किंतु अंदर से कोमल, तरल और मधुर। जबकि अन्य व्यक्ति बेर की भांति ऊपर से आकर्षक दिखते हैं, किंतु अंदर से आम्ल-कषाय। यह श्लोक नारियल के माहात्म्य को प्रकट करता है। ऐसे ही बचपन के आनंद में खुश बच्चे परस्पर नारियल के संदर्भ में एक पहेली बूझते हैं-कटोरे के अंदर कटोरा, बेटा बाप से गोरा। तात्पर्य है कि नारियल भले ही ऊपर से अनाकर्षक भूरा जटायुक्त है किंतु अंदर मिठासयुक्त ज्योत्स्ना सम श्वेत गिरी-गोला की उपस्थिति-प्राप्ति है। चरक संहिता में नारियल के औषधीय उपयोग का विस्तृत वर्णन है। मानव जीवन में नारियल न केवल दैनंदिन उपभोग का एक घटक है अपितु व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य, पोषण, अर्थोपार्जन तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन का दृढ आधार भी है। इसीलिए उष्णकटिबंधीय फल नारियल के महत्त्व से सामान्य जन को परिचित कराने, वैश्विक जागरूकता के प्रसार एवं नारियल कृषि को बढ़ावा देने के लिए सन् १९६९ में स्थापित अंतरराष्ट्रीय नारियल समुदाय द्वारा वर्ष २००९ से प्रतिवर्ष २ सितम्बर को विश्व नारियल दिवस मनाया जाता है।
नारियल जीवन में शुभता एवं संस्कृति का प्रतीक है। सुख, समृद्धि, सिद्धि एवं स्नेह का मंगल स्वरूप नारियल जीवन को ऊर्जा, ओज और औदार्य से तृप्त करता है। नारियल मनोकामनाओं को पूर्ण कर जीवन सामंजस्यपूर्ण और श्रीयुक्त करने के कारण श्रीफल नाम से लोक स्वीकार्य एवं व्यवहार्य है। नारियल का कठोर आवरण मानव के अहंकार एवं जीवन की नकारात्मकता तथा सांसारिक नश्वरता को व्यक्त करता है तो वहीं शीतल नारियल जल एवं गिरी व्यक्ति की आंतरिक शुचिता, शुभता, शुद्धि, संस्कार, सम्मान तथा मधुरता, तरलता एवं स्निग्धता का परिचायक है। इसलिए देवस्थान में नारियल फोड़ना या किसी को श्रीफल भेंट करना वास्तव में व्यक्ति के अहंकार के त्याग एवं समर्पण का शुभ संकेत है। नारियल सम्मान है, प्रतिष्ठा है, आस्था का उच्च घोष है और विश्वास एवं आत्मीयता का प्रकटन भी। सौभाग्य, समृद्धि एवं आध्यात्मिक जागृति का हेतु नारियल संकल्प-सिद्धि की साधना की सतत प्रेरणा है, अनन्त ऊर्जा है। नारियल मानव के उत्थान के सर्वोत्कृष्ट रूप का मृदुल उपहार है। नारियल वृक्ष आकाश एवं वसुधा की प्रीति का स्नेहिल सूत्र है। वस्तुत: नारियल संस्कृति के विशाल भवन में मलय वात संवहन के गवाक्ष हैं।
हम अपने परिवेश का अवलोकन करें तो पाते हैं कि परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर विद्यार्थी मंदिर में भगवान की मूर्ति के सम्मुख नारियल चढ़ाते हैं, किसी ने नया वाहन लिया या कोई कल-कारखाना खोला तो नारियल फोड़ कर ही शुभारम्भ करते हैं, धार्मिक आयोजनों में कलश स्थापना एवं हवन की पूर्णाहुति में नारियल का ही प्रयोग किया जाता है। लोक जीवन में किसी व्यक्ति या परिवार में दैवीय संकट आने पर तीन बार नारियल उतार कर किसी सतत प्रवाही सरिता-जल में प्रवाहित कर देते हैं। कोई सिद्धि या मनौती मानने पर लाल, पीत या श्वेत वस्त्र में नारियल को बाँधकर किसी देवस्थान में रख या वासुदेव स्वरूप पीपल के वृक्ष में टांग देते हैं। जन्मदिन, विवाह, किसी व्यक्ति की षष्ठिपूर्ति तथा साहित्यिक समारोहों में सम्मान हेतु श्रीफल भेंट करते हैं। कह सकते हैं, नारियल हमारे दैनंदिन जीवन में रचा-बसा एक ऐसा फल है जिसका उपयोग धनी-निर्धन समभाव से करते हैं। नारियल जीवन में जल तत्व का संरक्षक है। नारियल श्रीलक्ष्मी का उपहार रूप माना जाता है, इसलिए इसका एक नाम श्रीफल भी प्रयुक्त होता है। निश्चित रूप से नारियल व्यक्ति एवं देश की आर्थिकी को भी प्रभावित करता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रेरणा से १९६९ में स्थापित अंतर सरकारी संगठन एशिया और प्रशांत नारियल समुदाय ने २००९ से २ सितम्बर को विश्व नारियल दिवस मना कर जन-जन को नारियल के लाभ और महत्त्व से परिचित कराने, नारियल की खेती को बढ़ावा देने और उसके आर्थिक पक्ष को समझाने हेतु वैश्विक जन जागरूकता का महनीय कार्य प्रारंभ किया है। यह संगठन किसी एक थीम पर आयोजित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से नारियल से पोषण एवं औषधीय लाभ, उसके बहुमुखी उपयोग, कृषि क्षेत्र में विस्तार एवं नारियल उद्योग को बढ़ावा देकर रोजगार के संसाधन सृजित करना और नारियल को किसी न किसी रूप में अपने दैनिक आहार में शामिल करने के लिए प्रयासरत है। वर्ष १९६९ में स्थापित एशियाई और प्रशांत नारियल समुदाय वर्ष २०१८ से अंतरराष्ट्रीय नारियल समुदाय के नाम से जाना जाता है, जिसके सदस्य देशों की संख्या २१ है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में इसका मुख्यालय है। भारत इसका संस्थापक सदस्य है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय नारियल समुदाय के २१ सदस्यों में इंडोनेशिया, फिलीपींस, भारत, श्रीलंका, ब्राज़ील, मलेशिया, थाईलैंड, केन्या, वियतनाम, पापुआ न्यू गिनी, फिजी आदि सम्मिलित हैं। विश्व का ७२% उत्पादन इंडोनेशिया, भारत और फिलीपींस द्वारा किया जाता है। नारियल के उत्पादन में प्रथम पांच देश भारत इंडोनेशिया, फिलीपींस, श्रीलंका और ब्राजील हैं। भारत में नारियल का सर्वाधिक उत्पादन केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में होता है।
ताड़ परिवार के सदस्य नारियल का वैज्ञानिक नाम कोकोस न्यूसीफेरा है। नारियल का उपयोग विविध क्षेत्रों में प्रचुरता से किया जा रहा है। भोजन, सौन्दर्य उत्पाद, सजावटी वस्तुओं, औषधियों एवं भवन निर्माण में नारियल और उसके अंगोपांग का उपयोग किया जाता है। नारियल की भांति हमारा जीवन रसमय एवं मधुमय हो। हमारे मन-मस्तिष्क में मानवीय मूल्यों तथा पारिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों-सम्बंधों की तरलता, सरलता एवं शीतलता की भावधारा का अविचल प्रवाह बना रहे, ऐसी शुभेच्छा है।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ।प्र। के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा.-९४५२०८५२३४
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