
क्योंकि वह बाप था
क्योंकि वह बाप था: शून्य में निहारते हुए श्याम न जाने कहां खो गया था। ऐसा लगता था अब वह कभी भी नहीं मुंडी नीचे करेगा। ऐसा हो गया था जो श्याम भी नहीं जानता था। अब श्याम कभी भी नहीं किसी से बोलेगा। जीवन का हर लम्हा संग्रहणीय है, अच्छा भी, बुरा भी; सुख भी, दुख भी! श्याम का जीवन भी वही जीवन था। श्याम के जीवन की किताब का हर पन्ना पढ़ने लायक है, पढ़कर सीख लेने लायक है। श्याम ने अपने जीवन की किताब को बंद नहीं रखा, गोपनीय नहीं रखा था। मैंने श्याम को करीब से देखा था, श्याम के जीवन रूपी किताब को पढ़ा था।
श्याम की भारती से शादी उसका सौभाग्य था। श्याम का भारती से बिछुड़ना उसके जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य था। श्याम आज इस जीवन को अलविदा कह दिया है। श्याम के बीते जीवन की किताब का एक – एक पन्ना, एक – एक शब्द, एक – एक घटनाएं मेरे मानस पटल पर सिनेमा के सीन की तरह आने लगीं थीं! बारह पत्थर पूजने के बाद औलाद का मुंह देखने को मिला था, श्याम को! श्याम की पत्नी भारती भी बहुत खुश थी। जैसा कि अक्सर होता आया है। जीवन के छः सुखों में एक सुख पुत्र के जन्म लेने पर होता है। एक बार नहीं, चार बार पुत्र जन्म का सुख मिला था श्याम – भारती दंपति को!
बच्चों को पढ़ाया – लिखाया, अपनी हैसियत अनुसार काम में लगवाया। मनुष्य जीवन के छः सुखों में एक सुख पुत्र के विवाह में भी मिलता है। यह सुख भी चार – चार बार श्याम, भारती को मिला था। श्याम को भारती ने छहों सुख दिया था। छोटे – छोटे पोते – पोती भरा परिवार था श्याम का! सब दिन बराबर नहीं होते हैं। भारती अचानक एक दिन मौत का शिकार हो गई थी। चार बहुएं, चार बेटे सभी ने बाप को ढांढस बंधाया था कि, ‘चिंता नहीं करना हम सेवा करेंगे तुम्हारी पापा!’ श्याम अकेला हो गया था। बेटे समाज में, भीड़, गांव के सामने ऐसा प्रदर्शन किया करते थे कि, पूरा गांव उनकी प्रशंसा करता था।
गांवों-कस्बों में एक दो आदमी ही ऐसे होते हैं, जो बहुत अच्छे होते हैं। श्याम भी अपने गांव का अच्छा आदमी था, सदा गांव के हित के बारे में सोचता था; करता था। परहित में सदा अच्छा काम किया करता था। श्याम अच्छा था भारती भी बहुत अच्छी थी, तभी तो भारती को समय से पहले उठा लिया था ऊपर वाले ने! जोड़ी क्या टूटी श्याम की किस्मत रूठी, समय से खाना, समय से सोना श्याम का छूट गया था। जब भी, जो भी बेटा या बहू बुला देती, श्याम चला जाता, भूखा है तो भी खाता नहीं भूखा है तब भी खाता! बहुएं अपने लिए दूसरा बनातीं, श्याम के लिए दूसरा बनातीं, बासी भी देने में कभी वह हिचकिचाते नहीं थे। अकेले अपने आगे श्याम आंसू बहा लेता था। वह भारती का कहना याद करके, भारती ने आत्महत्या करने के लिए मना किया था; इसलिए आत्महत्या भी नहीं करता था।
चार बहुएं, एक ससुर; चारों अपने – अपने पतियों के साथ जब जी करता, जहां मन करता चली जाती थीं। श्याम इस उम्र में क्या कर सकता था, खाना बनाते नहीं बनता था। भारती दूसरों को खिलाती थी, श्याम तो उसका पति था। भारती के जाने के बाद श्याम को समय से, सुंदर स्वादिष्ट, प्रेम से किसी ने भोजन नहीं दिया था। श्याम भूखा मर सकता था पर किसी से मांग नहीं सकता था। जब कोई उसके लिए खाना लाता था, तब श्याम को बहुत तकलीफ होती थी। श्याम संकोचवश कुछ भी नहीं कह पाता था। ‘जितना बाप ने दान किया, बेटा उतना भीख मांग लिया!’ यह कहावत श्याम सोचता था कि, भारती के साथ जो दूसरों की सेवा की थी आज वह लौट रही है ब्याज सहित!
जिस श्याम ने पानी में हींग नहीं घोला था, आज उसी श्याम के बेटे, बहुएं कहती हैं, “पापा, यह काम कर लीजिए, आखिर बैठे ही तो हैं, फुर्सत!” हर जुर्म सहता था, क्योंकि वह बाप था, बाप इन्हीं औलादों की खातिर कितने खुद कष्ट उठाकर इनको पालता है। बाप – महतारी यही आशा लगाए रहते हैं कि, मेरा बेटा बड़ा होकर हमारे लिए बहुत कुछ करेगा। बुढ़ापे की लाठी बनेगा, तीर्थ यात्रा करने भेजेगा, हमारा ख्याल रखेगा, हमें कोई तकलीफ नहीं होने देगा!
मुझे अच्छी तरह से याद है, एक बार श्याम की चारों बहुएं, अपने पतियों के साथ छोटी बहू के मायके में अपना घर छोड़कर वहां पार्टी करने गईं थीं। श्याम घर में अकेले तीन दिन गुड़, पानी में रहा आया था। बहुओं को तो फिक्र नहीं होना स्वाभाविक था, जिन बेटो के लिए सबकुछ सहा वह बेटे भी कभी याद नहीं किया था अपने बाप की! अपने-आपको पित्र भक्त मानने वाले बेटे से किसी ने कहा था कि, “बाप को यहां कौन खाना देगा? बाप को भी लेकर जाइए न!” जानते हो वह कलयुगी श्रवण कुमार ने क्या कहा था? उसने साफ कहा था कि, “हमें वहां पार्टी करना है, हमारे सभी रिश्तेदार भी आएंगे, पापा वहां क्या करेंगे, इनका वहां क्या काम है? यहां घर की रखवाली करते रहेंगे, हम दो दिन बाद आ ही जाएंगे!”
आज तो जेठ की दुपहरी अपने रंग में थी। बहू – बेटे कहीं ठंड जगह पर गए थे, पिकनिक मनाने के लिए! श्याम इतने बड़े घर में अकेले भारती की याद में खोया था। उसे लग रहा था कोई किसी का नहीं होता है, वह किताबों में लिखी कहानियां श्याम को कल्पना मात्र लग रही थीं। श्रवण कुमार की कल्पना से हंसी आती है, श्याम को! अगर रहा भी होगा श्रवण कुमार तो वह किसी युग में रहा होगा। चार युगों में एक श्रवण कुमार, तो कहानी बननी ही चाहिए, क्योंकि फिर दूसरा श्रवण कुमार संभव नहीं है। आज के समय में तो नामुमकिन है। श्याम ने कैसी उम्मीदें दिल में पाल रखी थीं, क्या भोग रहा है वह!
वह कोई भी श्राप, कोई भी ऐसी कल्पना जिससे बेटों का नुकसान हो सकता था कर नहीं सकता था, क्योंकि वह बाप था। बाप तो ऐसा ही है जैसा वह पेड़ जेठ की तपती दुपहरी में खुद धूप सहता है लेकिन अपने नीचे बैठे पथिक को शीतल छाया देता है। वह पथिक, वह बेटा भलाई उसे काटने का प्लान बना रहा हो परन्तु वह पिता, वह पेड़ उसके ऊपर छाया ही किए रहता है।

आज की रात नींद नहीं आई थी श्याम को; वह भारती के साथ किए गए काल्पनिक ताने – बाने को तार – तार होते, टूटते देख रहा था। मैंने देखा कि, श्याम ने कभी भी अपने बेटों को कोसा तक नहीं था। भूख तो सह सकता था श्याम, बेवफा औलाद की बेवफाई से उसकी सहन शक्ति जवाब दे गई थी। ऐसा दर्द दिल में उठा जिसे श्याम सह नहीं सका था। जिस पोजीशन में उसके प्राण – पखेरू उड़े थे, श्याम उसी पोजीशन में पड़ा था। कुछ हमदर्द, दोस्त, रिश्तेदार सचमुच के आंसू बहा रहे थे; सचमुच रो रहे थे। कुछ बनावटी आंसू बहा रहे थे। कुछ लोगों ने लपट – झपटकर रोना शुरू कर दिया था जैसे, श्याम के बहुत हमदर्द हों!
बेटों में भी यही हाल था, बहुओं में भी यही हाल था। जेठ की तपन अंगार बरसा रही थी। बहुएं किसी से कह नहीं रही थीं बशर्ते, बहुओं को यह दुख कि, बुढ़वा दस दिन तक रुक जाता तो ठीक रहता, इस समय नहाने में लू लगने का डर था। बेटे – बहुओं को तो दिखावटी कुछ न कुछ करना पड़ेगा, इस बात की चिंता खाए जा रही थी। इसलिए ही बेटे – बहुएं रो रही थी।
‘उठिए!’ कहकर किसी ने मुझे झकझोरा, मैंने देखा वह मेरा पोता था। श्याम का पोता दहाड़ें मार – मारकर रो रहा था, शायद वह समझ गया था कि, मेरे सच्चे दोस्त दादू की मौत हो गई है। मैंने अपने पोते को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। मेरी आंखों में बह आए आंसुओं को अपने छोटे – छोटे हाथों से पोंछकर मेरे पोते ने कहा था कि, “उठिए दादू, कहां खो गए हो तुम! अपने श्याम दोस्त को बिदा नहीं करोगे क्या?”
मैं झटपट उठा, दौड़कर श्याम की अर्थी को अपना कंधा दिया था। तब मैं यही सोचता था कि, यही हाल सबका होना है, आज श्याम को जला दिया जाएगा, कल यह राख हो जाएगा! राख भी किसी काम की नहीं रहने देंगे यह हमदर्द बेटे, परिवारजन! थोड़ा सा भाग गंगा में ले जाएंगे, बांकी बहा देंगे!
कब श्मशान आ गया मैं जान नहीं पाया, श्याम को रखकर कुछ क्रियाएं होंगी, चिता तैयार था। चिता में रखकर जला दिया जाएगा, श्याम किसी – किसी के लिए स्मृति शेष रहेगा, बांकी भुला दिया जाएगा!
डॉ. सतीश “बब्बा”
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