Table of Contents
आठवाँ सुख
आठवाँ सुख: राजकुमार अरोड़ा
आज अमृता की शादी है। पापा को अपनी लाडली की विदाई का सोचते ही उदासी हो आई। चौबीस वर्ष उसके आँगन में रही बुलबुल फुर्र हो जाएगी। पत्नी सुशीला डायबिटीज से इतनी परेशान रहती थी थकावट व घबराहट से तरबतर उसका ज़्यादा समय बिस्तर पर ही गुजरता था, ऐसे में पहले पढ़ाई व बाद में नौकरी में उसकी प्यारी अम्मू ने ऐसा सामंजस्य बिठा रखा था कि उन्हें कोई समस्या ही नहीं आने दी। सब काम मिनटों में ही हो जाते थे।
बेटा आर्यन चेन्नई में एक बड़े इंस्टीट्यूट में एम टेक के आखिरी वर्ष में था। वह तो छह साल से बाहर ही था, घर तो अम्मू ने ही पूरा सम्भाल रखा था, पानी, बिजली, फोन, दूध आदि सब के बिल कब भरे जाते मुझे तो पता ही नहीं चलता था, डी-सी आफिस में चीफ एकाउंट्स ऑफिसर की मेरी नौकरी में देर रात हो जाया करती थी। यह तो प्रभकृपा से २० साल पहले शहर की पाश कॉलोनी में दोमंजिला मकान बना लिया था, ऊपर का पोर्शन किराये पर दिया हुआ था।
अब सब कैसे होगा, यह सोच मेरा मन अकुला रहा था, तभी एकाएक कानों में आवाज़ पड़ी-लो बारात आ गई! मैं जैसे सकते से बाहर आ गया। चेन्नई से आ कर शादी की सारी व्यवस्था तो आर्यन ने अपने हाथों में ले ली थी, बीमार सुशीला के चेहरे पर भी ख़ुशी की चमक थी, सकून था। वह सुबह भी आ गई जब हमारी अम्मू हमेशा के लिये पराई हो रही थी, आर्यन बहन के गले लग कर रो ही पड़ा, तूने तो पूरा घर ही अपने सिर पर ले लिया था, मैं तो तुम्हारे साथ रह भी नहीं पाया, सुशीला के आँसू भी थम नहीं रहे थे, मैं आँखों की नमी को पोंछ ही रहा था कि सहसा अम्मू मुझसे आ कर लिपट गई और मेरी भी अश्रुधारा बह निकली जिन्हें कब से रोक रखा था, रोते हुए बोली मैं वहाँ रह कर भी तुम्हारे ही साथ हूँगी, दामाद रोहन जिसने अपना एक इंजीनियरिंग यूनिट लगाया हुआ था, बोला-चिंता मत करो पापा, मैं भी तुम्हारे आर्यन जैसा ही तो हूँ, आते जाते रहेंगे। बस समय यूँ ही गुजरता गया, अम्मू की शादी को भी अब तो तीन साल गुजर चुके थे, अम्मू एक बेटी की माँ बन चुकी थी।
सुशीला की सेहत भी अब ठीक नहीं रहती थी। दो साल बाद मेरी रिटायरमेंट थी, आर्यन एम टेक के बाद एक एम एन-सी में सीनियर मैनेजर हो गया था, उसकी शादी के ही सिलसिले में सुशीला की मौसी के समधी अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आ रहे थे, अम्मू व रोहन भी आये हुए थे, नन्हीं पलक नाना-नाना कहती मुझ से लिपट गई, मुझे सहसा अपनी अम्मू का बचपन याद आ गया। आर्यन व रोहन बाज़ार से सामान लेने गये हुए थे। पलक थक कर सो गई थी।
अम्मू मेरे पास कंधे पर सिर रख कर लेटी थी, सामने दूसरे सोफे पर सुशीला बैठी थी, एकाएक अम्मू बोली-मैनें क्या तुम्हें कभी रुलाया है! मैं बोला एक बार जब तुम चार साल की थीं-हमने एक टेबल पर एक ढेरी खिलौनों की, एक चॉकलेट की, एक रेज़गारी की लगा दी थी। यह सोचा था कि इससे तुम्हारे भविष्य के स्वभाव का पता चलेगा! खिलौने से खिलन्दर ओर चॉकलेट से पेटू, तीसरे से लालची होने का पता चलता! पता है, तुमने क्या किया? तुमने कुछ नहीं उठाया, तुम मुझ से आ लिपट गईं, बोलीं-मुझे मेरे पापा चाहिये, बस! उस दिन ही तुमने मुझे रुलाया था और जानती हो तब दो साल के नन्हें आर्यन ने क्या किया था, चॉकलेट मुँह में डाल, एक जेब में रेज़गारी भर ली, खिलौने बड़े थे, दूसरी ज़ेब में कैसे आते, यह कह हंसते हुए अम्मू को फिर से कस कर गले लगा लिया और पापा बोले-तुम्हारी मम्मी ने क्या कहा था तब-‘ सात सुख होते हैं-निरोगी काया, घर में माया, पुत्र आज्ञाकारी, सुलक्षणी नारी, राजयोग तक पहुँच, अच्छा पड़ोसी, मात पिता का साया आठवाँ सुख और जोड़ दो-बेटी का साया, यह सुनते ही अम्मू उठी और माँ के गले लग गई, सुशीला बोली-अम्मू तू सचमुच अम्मू है, अम्मू की तरह मेरे बाद पापा का ध्यान रखना! अम्मू कुछ न कह पाई बस सुबकती रही।
तभी आर्यन व रोहन बाज़ार से सामान ले कर आये थे, उनके भी आने का समय हो गया था, कुछ ही देर में तीनों ने मिल कर सारी व्यवस्था चकाचक कर दी थी। एक घँटे बाद वह भी आ गये, सारी जानकारी तो उन्हें पहले से ही थी, बस आर्यन को नहीं देखा था, कामिनी, हाँ, यही नाम था उसका, दूसरे कमरे में भेज कर दोनों की बात करा दी! सहमति होने की ख़बर पाते ही बाहर बैठे सब ख़ुशी से झूम उठे, वह तो जैसे मन ही मन तैयार हो कर आये थे, दोनों की अँगूठी वही ले आये थे। इस रस्म अदायगी के बाद अगले महीने के पहले रविवार के शुभ महूर्त का दिन निश्चित हो गया।
अब कामिनी के घर आने के बाद अमृता की चिन्ता भी कम हो गई थी। सुशीला भी कहती कि मैं तो अब कामिनी को कम्मू कह कर बुलाऊंगी। मेरी अम्मू कम्मू की जोड़ी हो गई। ऐसे ही डेढ़ साल कब गुज़र गया, पता ही नहीं चला। पिछले ही माह मैं भी रिटायर हो कर घर आ चुका था। एक रात सुशीला की शुगर थोड़ी बढ़ी तो घबराहट ज़्यादा होने के कारण तुरन्त आर्यन बड़े हॉस्पिटल ले गया, पर डॉक्टरों की बहुत कोशिश के बाद भी वह सुबह नहीं देख पाई। सहसा हुए इस वज्रपात से सब सकते में आ गये अमृता व रोहन भी ख़बर मिलते ही आ गये। दोपहर में ही सुशीला की काया पंचतत्व में विलीन हो गई।
अब पापा अकेले थे, अंदर ही अंदर बहुत उदास रहते थे, कामिनी व आर्यन पूरा ध्यान रखते थे, जीवन साथी की कमी कौन पूरी करता! अम्मू रोज़ हाल पूछ लेती थी, नन्हीं नातिन पलक की तोतली बातें सुन ग़म भूल जाते थे। तभी उन दिनों शहर में दंगो के कारण कामकाज ठप्प रहा, लेबर की भी दिक्कत हुई, रोहन की इंजीनियरिंग यूनिट घाटे में चली गई, पुराने ऑर्डर की पेमेन्ट नहीं मिली, नये मिलने बन्द हो गये थे। पैसे की कमी घर में तनाव का वातावरण हो गया था, गुस्से में अमृता को किसी बात पर थप्पड़ भी जड़ दिया था और जाओ अपने पापा से पांच लाख ले कर आओ, वरना…कह चुप हो गये। रोहन के माता पिता भी यह सब देख चुप थे, उनका मौन इसकी स्वीकृति का संकेत दे रहा था। कुछ दिन अमृता चुप रही, पर जब कोई बदलाव नहीं दिखा तो एक सुबह उसने पापा को सारी बात बताई उन्हें भी रोहन से ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं थी वे सकते में रह गये, बोले अम्मू घबरा मत, मैं जल्द ही कुछ करता हूँ, तेरी माँ अब नहीं है, किससे कहूँ, बोलते हुए कांप रहे थे, फ़ोन हाथ से छूट गया पर कटा नहीं था, तभी कामिनी आ गई, उसने फ़ोन उठा लिया, उधर से अम्मू की आवाज़ थी-भाभी, मुझे बचा लो, ये लोग मार डालेंगे, रोते-रोते सारी बात बता डाली। कामिनी रोते हुए बोली-आप ने अपने को अलग कैसे समझ लिया, मैं भी तो आपकी बेटी हूँ, अम्मू कम्मू की जोड़ी, कल मैं और आर्यन दोनोँ वहाँ जा कर बात करते हैं!
अगले दिन दोनों वहाँ पहुँचे, रोहन भी घर पर ही था, कामिनी भी अपनी हँसती चहचहाती ननद की हालत देख परेशान हो उठी, तभी आर्यन ने कहा ये लो रोहन! पांच लाख का चेक, पापा ने मकान गिरवी रख कर भिजवायें हैं, तब तक रोहन को उस दिन की गलती का एहसास हो गया था, वह बोला-‘मैं क्षमा चाहता हूँ, लगातार बढ़ते घाटे से मैं तनाव में था, खीझ व गुस्से में सब हो गया! पापा मेरे बारे में क्या सोचते होंगे! मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ। एक काम करोगे, आर्यन! ये चेक मुझे नहीं चाहिये! बस मुझे अपने साथ घर ले चलो, मैं पापा से अभी मिलना चाहता हूँ।’
अब वातावरण पहले की तरह नहीं रहा था, दोनों की हँसने की आवाज़ों ने अम्मू को भी हैरान कर दिया था, जो कामिनी के साथ चाय की ट्रे ले कर आ रही थी। चाय पीने के बाद सभी एक ही गाड़ी में घर के लिये चल पड़े थे, तभी अम्मू बोली भैया, पापा को अभी फ़ोन कर दो, चिंता कर-कर के हलकान हो रहे होंगे, तभी कामिनी बोली-लाओ, मैं करती हूँ और पापा को सब के साथ आने की ख़बर सुना दी। घर पहुँचते ही पलक तो नाना से लिपट गई, उसके लिये ख़बर मिलते ही चॉकलेट ले आये थे, बच्चों के लिये मिठाई! तभी रोहन ने पापा के पैर छुए और वह चेक उनके चरणों में रख दिया। दोनों को गले मिलते देख अम्मू का दिल भर आया। पापा बोले-ये चेक हमारी तरफ़ से प्रेम से दिया उधार समझ कर रख लो, अपना व्यापार अच्छे से चलाओ, जब सब कुछ पूरी तरह से ठीक हो जाये तो धीरे-धीरे लौटा देना, तुम्हारे मन पर भी कोई बोझ नहीं रहेगा।
अब आर्यन ने कम्पनी में लोन के लिये अप्लाई कर दिया है, वो वेतन से चुकता होता रहेगा और यह घर भी रहन नहीं होगा! तभी दोनों भाभी ननद खाना ले कर आ गई, सब को इकट्ठे बैठ खाना खाते देख पापा के चेहरे की ख़ुशी साफ़ नज़र आ रही थी, तभी सामने लगी सुशीला की फ़ोटो की ओर देख कर बोले-“देख कहती थीं न, बेटी का साया आठवाँ सुख होता है, अब मेरी एक नहीं दो बेटियाँ-अम्मू ओर कम्मू, हमारा आठवाँ सुख दो गुणा हो गया है”
– राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
सेक्टर २, बहादुरगढ़ (हरि०)
यह भी पढ़ें-
4 thoughts on “आठवाँ सुख”